जाहिल औरत यह क्या किया? जरा सी सब्जी मेज पर गिरते ही विवेक इतनी जोर से चिल्लाया कि सिमरन का पूरा शरीर कॉंप गया। “जाहिल” ये तमगा तो जब से विवेक से शादी हुई थी 5 साल से सुनते-सुनते इतनी आदी हो चुकी थी कि कभी-कभी तो उसे लगता कि वह सचमुच जाहिल ही है। जबकि ऐसा नहीं था। सिमरन कम पढ़ी-लिखी जरूर थी। लेकिन सुंदर और घर के काम में पूरी तरह
से होशियार थी। और खाना ,खाना तो वह इतना स्वादिष्ट बनाती कि खाने वाला तारीफ किये बिना रह नहीं पाता था । वह पढ़ने में भी बहुत होशियार थी । उसके मम्मी -पापा ने भी हर मां-बाप की तरह उसे पढ़ा लिखा कर एक बड़ा ऑफिसर बनाने का सपना संजोया था । लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। एक सड़क दुर्घटना में उसके मम्मी -पापा उसे इस निर्दयी दुनिया में अकेला छोड़कर चले गए।
चाचा -चाची ने उसे अपने पास रखने से मना कर दिया,तो मामा उसे अपने साथ ले आए । जो उसकी मामी को बिल्कुल पसंद नहीं आया । कुछ दिन तक तो मामी चुप रही। फिर उन्होंने इतना क्लेश किया कि मामा को उसकी पढ़ाई छुड़वानी ही पड़ी। सिमरन के हाथ में आ गए घर के तवा परांत। जिन आंखों में कुछ बनने के सपने थे वे सपने आंखों से आंसू बनकर बह गए।
एक दिन एक शादी में सिमरन की सुंदरता और सुशीलता विवेक की मम्मी को इतनी पसंद आई कि उन्होंने सिमरन को अपने बेटे के लिए मांग लिया। सिमरन के मामा ने तुरंत हां कर दी क्योंकि बिना कुछ खर्च किए घर बैठे इंजीनियर लड़का मिल रहा था। विवेक ने शादी के लिए मना किया क्योंकि वह एक नौकरी करने वाली लड़की चाहता था। लेकिन उसकी किसी ने नहीं सुनी । विवेक की पत्नी
बनकर सिमरन उसके घर आ गई । पति से उसे सब कुछ मिला। सिवाय सम्मान के । जब देखो कहीं भी किसी के भी सामने विवेक सिमरन को अपमानित करने का कोई मौका नहीं छोड़ता था।
आज भी सिमरन को धमका कर गुस्से में बाइक उठाकर विवेक घर से बाहर निकल गया। गली के बाहर सड़क पर निकलते ही सामने से आते ट्रक से बाइक टकरा गई । विवेक नीचे गिर पड़ा । lदोनो पैर ट्रक के नीचे आ गए। विवेक को हॉस्पिटल ले जाया गया। दोनो पैर ट्रक के नीचे आने से इतने कुचल गए थे कि उन्हें काटना पड़ा। विवेक की जिंदगी पलक झपकते ही बदल गई। सिमरन को पता
चला तो तुरंत अस्पताल पहुंच गई । दुखी होने के बावजूद अस्पताल में उसने पूरी हिम्मत से काम लिया। देवर के आने तक पूरी जिम्मेदारी अकेली ने उठाई। जब विवेक को होश आया तो अपनी स्थिति देख जोर-जोर से रोने लगा। सिमरन ने उसे समझाने की कोशिश की तो बोला मुझे तुम्हारी बद्दुआ लग गई।
दस दिन बाद छुट्टी मिलने पर विवेक घर आ गया। लेकिन अब बात -बात पर गुस्सा करने वाला विवेक बिल्कुल चुप रहता। सिमरन भी उसे ऐसा देखकर बहुत दुखी होती। विवेक की नौकरी भी छूट गई। सिमरन को कुछ नहीं सूझ रहा था । क्या करे।जमा पूंजी भी धीरे-धीरे खत्म होती जा रही थी। उसके
देवर ने कहा भाभी अपने खाना बनाने के हुनर को अपना रोजगार बनाओ।कोई भी परेशानी हो या किसी सहायता की जरूरत हो तो मुझे जरूर बताना। मैं आपके साथ हूँ। इतनी ही दिलासा सिमरन के लिए बहुत थी। संभालना तो सब कुछ अपने आप ही था।
सिमरन ने टिफिन बनाने का काम शुरू कर दिया। शहरों में घर के बने खाने की नौकरी पेशा लोगों को बहुत जरूरत होती है । जो अपने घर से दूर रहते हैं। घर का बना खाना ऊपर से स्वादिष्ट। सिमरन का टिफिन रोजगार खूब चल निकला। सिमरन ने जितना उसका ध्यान रखा। और सब कुछ संभाल लिया था । उसे सिमरन से नजरे मिलाने में भी संकोच होता था। धीरे-धीरे परिस्थितियों को स्वीकार
कर वह भी अपने दुख से बाहर आ रहा था। उसने भी सिमरन की सहायता करना शुरू कर दिया था । जो काम वह बैठ-बैठे कर सकता था कर देता था । सिमरन इस बदले हुए विवेक को देखकर खुश थी। लेकिन इस खुशी के बदले इतनी बड़ी कीमत नहीं चुकाना चाहती थी। एक दिन विवेक ने सिमरन से हाथ जोड़कर माफी मांगी और बोला मुझे तुम्हारा अपमान करने की भगवान ने इतनी बड़ी सजा
दी। हो सके तो मुझे माफ कर दो । मैं तुम्हारी काबिलियत समय रहते नहीं समझ पाया । नहीं विवेक मैं बस दोबारा एक जिंदा दिल विवेक को देखना चाहती हूँ। गलती तुम्हारी नहीं थी ।शायद तुमने जो एक पत्नी का रूप अपने मन में बसाया था। मैं वैसी नहीं थी। लेकिन अब तुम्हारा प्यार और अपनापन
पाकर मैं सब कुछ भूल चुकी हूँ। हम दोनों ही उस अतीत के बेकार पन्नों को अपनी जिंदगी से निकाल
बाहर कर, नई जिंदगी की शुरुआत करेंगे। यह तुम्हारा बड़प्पन है सिमरन। लेकिन मेरी समझ में इतना आ गया है कि जो स्त्रियों का सम्मान नहीं करता। वह कभी सुखी नहीं रह सकता। मैं अपनी तरफ से जितना हो सकेगा समाज को नारी सम्मान के लिए जागरूक करूँगा।
नीलम शर्मा