ज़ाहिल कोन- ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

वो सुबह-सुबह बस से उतरी थी — हाथ में छोटा-सा बैग, आँखों में सपना, और सलवार-कुर्ता जो आज की फैशन वाली दुनिया को शायद थोड़ा चुभता था। नाम था उसका शालिनी।यू पी के एक छोटे से कस्बे से आई थी, दिल्ली के नामी कॉलेज में बी.ए. करने।

क्लास के पहले ही दिन उसका मज़ाक उड़ गया।

“अरे देखो, कौन आई है । थोड़े सादे कपड़ो को देख सीनियर्स कुछ ज़्यादा ही रैगिंग करने लगे ।

“तू कॉलेज आई है या कथा वाचन करने?”

“गँवार लगती है यार, उसके साथ दिखेंगे तो लोग समझेंगे गाँव से आए हैं हम!”

शालिनी चुपचाप सुनती रही। उसकी नज़रे झुकी होतीं, लेकिन आत्मसम्मान भीतर चुपके से रोता नहीं था — बल्कि वह अपने समय का इंतज़ार कर रहा था।

 कक्षा में सबसे ज़्यादा जो उसे नीचा दिखाती थीं, वो थीं सान्या, रिया और मीनल — सब मेट्रो की लड़कियाँ।

 उनके ब्रांडेड कपड़े होते , इंस्टाग्राम स्टोरीज़ जैसे उनका हवा पानी ही हो जिसके बिना उन्हें ऑक्सीजन नहीं मिले ।इंग्लिश में बातें करती ।शालिनी को देखती मानो जैसे कोई  अजीब प्राणी देख ली हो ।

पर शालिनी को एक चीज़ आती थी — लिखना। उसकी कलम में भावनाएँ थीं, उसके शब्दों में दर्द भी, गहराई भी। हिंदी में उसने एक निबंध प्रतियोगिता जीती। फिर एक दिन कॉलेज में “सोशल सेंसिटिविटी वीक” रखा गया, जहाँ सबको एक कहानी सुनानी थी — सच्चाई पर।

सबने अपने-अपने अनुभव बताए, लेकिन शालिनी की बारी आई, तो सब हँसने लगे — “अब  ज़ाहिल कहानी सुनाएगी!”

शालिनी खड़ी हुई, और बिना किसी दिखावे के, बहुत सादगी से बोली,,,

“मैं छोटे  क़स्बे से आई हूँ  वो भी अपने दम पर । इस बड़े कॉलेज में दाखिला मुझे मेरी मेहनत के दम पर मिला । अच्छे नंबर आने पर मिला । तो मैं ज़ाहिल तो बिल्कुल भी नहीं हूँ ।लेकिन मेरी माँ ने मुझे सिखाया कि इंसान की इज़्ज़त कपड़ों से नहीं, सोच से होती है।”

“मैंने उन लड़कियों को देखा है जो  सोशल मीडिया पर मीठी बातें करती हैं और पीछे से किसी की इज़्ज़त नोच लेती हैं।”

“मैं साधारण दिख सकती हूँ, लेकिन मैंने कभी किसी की फोटो पर हँसी नहीं उड़ाई, किसी की भाषा पर ठहाके नहीं मारे।”

मैंने कभी भी पीछे से मुंह बना बना कर इन लड़कियों की अंग्रेजी की नकल नहीं की ।

“शहर के कपड़े पहनकर दिल अगर गंदा है, तो असली जाहिल कौन हुआ?”

“मैंने कभी किसी के कपड़ों पर सवाल नहीं उठाया, लेकिन जब मेरे कपड़े देख कर मेरी सोच पर सवाल उठे, तो मुझे लगा शायद हमें फिर से सोचने की ज़रूरत है।”

“भारतीय संस्कृति में कहा गया है — ‘नारी की पहचान उसके वस्त्रों से नहीं, उसके चरित्र से होती है।’ लेकिन आज उल्टा हो रहा है — चरित्र किसी को दिखता नहीं, पर ब्रांडेड कपड़ों की चमक सबको दिखती है।”

“अगर मैंने सादी चोटी बना ली, या सलवार-कुर्ता पहन लिया, तो मैं ‘जाहिल’? लेकिन वहीं अगर कोई  लड़के और मैंने देखा है लड़कियां तक भी हाथ में सिगरेट के कश लेती  हुई गालियाँ दे, और ब्रांडेड कपड़े पहन ले — तो वो ‘कूल’? यही तो असली जाहिलपन है!”

“मुझे मॉडर्न बनना है, लेकिन दिखावे से नहीं — सोच से। 

मुझे पता है की आज कल आधुनिक कपड़ो का ही ज़माना है जिसमें कोई बुराई नहीं है ।पर सबकी अपनी अपनी चॉइस होती है अगर कोई व्यक्ति साधारण  कपड़े पहन रहा है या  हिंदी में बात कर रहा है ।क्या वो जाहिल और गंवार हो  गया ।ऐसी सोच को बदलने की ज़रूरत है।

अब क्लास में सन्नाटा था। 

प्रिंसिपल ने खड़े होकर ताली बजाई।

 मंच पर आए।

उन्हें बहुत कम बोलते देखा गया था, लेकिन जब भी बोले — कॉलेज में एक हलचल होती थी।

उन्होंने मंच पर माइक लिया।

“मैं आज पहली बार इतना दुखी हूँ |दुखी इसलिए नहीं कि किसी छात्रा का मज़ाक उड़ाया गया — ये तो बाहर की दुनिया है, वहां तो और बदतर होता है।

दुखी इसलिए हूँ कि ये सब हमारे कॉलेज में, हमारे बच्चों के बीच हुआ…”

उन्होंने एक क्षण रुककर शालिनी की ओर देखा |

“जिस लड़की को तुम सब ने ‘जाहिल’ कहा, वो असल में हम सबकी शिक्षक बन गई है।

शिक्षा डिग्रियों में नहीं, कपड़ों में नहीं, और न ही चाल-ढाल में है।

शिक्षा वो है जो किसी को जज करने से रोकती है !

और अगर तुम्हारे पास ये समझ नहीं है,

तो तुम सच में पढ़े-लिखे जाहिल हो।”

हॉल में कोई आवाज़ नहीं आई।

सिर्फ सान्या ,मीनल की आँखों से टपकते आँसू, और शालिनी के चेहरे पर एक हल्की सी नम मुस्कान।

कॉलेज मैगज़ीन के कवर पर उसकी कहानी छपी — “जाहिल कौन?”

शालिनी के शब्दों ने उस दिन सबका आईना साफ कर दिया था।

कपड़े बदलने से इंसान नहीं बदलता, और सोच अगर छोटी है, तो बड़े शहर की हवा भी कुछ नहीं कर सकती।

उस दिन सबको समझ आया,,,

जाहिल वो नहीं थी जो छोटी जगह से आई थी… 

जाहिल वो थे, जो दिल और दिमाग से तंग थे।

 सबसे सुंदर बात ये थी — शालिनी कभी नहीं बदली। वो वैसे ही कपड़े पहनती रही, वैसे ही चोटी बनाती रही।

पर अब कोई उसकी तरफ हँस कर नहीं देखता था। अब सबकी आँखों में इज़्ज़त थी।

क्योंकि अब लोगों को पता चल गया था —

‘मॉडर्न दिखने’ और ‘मॉडर्न सोच’ में ज़मीन-आसमान का फर्क होता है।

दोस्तों उम्मीद है ये कहानी आपको पसंद आयेगी !

ज्योति आहूजा 

Leave a Comment

error: Content is protected !!