इतना अभियान सही नहीं – विनीता सिंह

पहाड़ों का जीवन बहुत ज्यादा कठिन होता है। कब पहाड़ गिर जाए कब रास्ते बन्द हो जाए। कुछ पता नहीं ऐसे ही दो पहाड़ियों के बीच में एक गांव था उस गांव में नदी थी उस नहीं के ऊपर एक पुल था पता नहीं कब गिर जाए कहा नहीं जाता।उसी गांव में अरूण नाम का एक लडका रहता उसने गांव के नये पुल के लिए डिजाइन बनाई

जिससे नदी के ऊपर मजबूत और टिकाऊ पुल निर्माण हो सके। उसने यह बात अपने गांव के प्रधान को बताइए और अपनी डिजाइन दिखाएं उसे समय तो गांव के प्रधान तैयार हो गए। लेकिन तभी वहां पर एक दूसरा इंजीनियर आया और उसने कम पैसे में अपनी

डिजाइन दिखाई गांव के प्रधान ने सोचा जब काम कम पैसे में चल रहा है। तो ज्यादा पैसे खर्च करने की जरूरत क्या है ।उन्होंने अरुण को अपने पास बुलाया और कहा कि तुम्हारी डिजाइन पुरानी है अब यह नये इंजीनियर आए हैं यही हमारे नये पुल का निर्माण करेंगे ।

अरुण कुछ नहीं बोला और अपनी डिजाइन लेकर गांव छोड़कर दूर पहाड़ी पर एक झोपड़ी बनकर रहने लगा उधर नए वाले डिजाइनर में गांव में नए पुल का निर्माण किया। जो ज्यादा मजबूत नहीं था एक साल के अंदर जब बारिश आई तो वह पुल उस में बह गया अब गांव का सम्पर्क पूरी तरह टूट गया ।

गांव के लोग बड़े परेशान थे क्या करें प्रधान को भी अपनी गलती पर पछतावा हो रहा था। उन्होंने सोचा कि मैं अगर अरुण को यह काम देता तो मैं सही करता सभी लोग अरुण को ढूंढने की कोशिश करने लगे तभी किसने बताया कि हम तो पहाड़ी पर झोपड़ी बनाकर रहते हैं

प्रधान और गांव के लोग उनके पास गए अरुण को उन्हें देखकर खुश होना चाहिए था लेकिन अरुण बहुत शांत का स्वभाव का था मैं अपने गांव के लोगों की मदद करना चाहता था। किसी गांव के लोगों को कहीं जाने आने में परेशानी ना हो गांव के प्रधान ने अरुण से कहा कि बेटा हमसे गलती हो गई ।

अब तुम कुछ करो पूरे गांव की जान खतरे में है। अरूण ने कहा कि आप चिंता ना करें बहुत सारे पत्थर और रस्सी लेकर आए। तब तक मैं यहां अस्थाई एक फूल का निर्माण करता हूं। जिससे गांव के लोगों को सुरक्षित वहां से निकाला जा सके गांव वालों के सहयोग से अरुण एक स्थाई पुल का निर्माण किया

जिसे गांव के लोगों को सुरक्षित निकाला गया। जब गांव के लोग सुरक्षित निकल आए तो सभी गांव के लोग और गांव के प्रधान हाथ जोड़कर खड़े हुए और बोले अरुण बेटा हमें माफ कर दो ।हमने तुम्हारे हुनर नहीं पहचाना ।और कम पैसे के देने के चक्कर में हमने उन्हें वह काम दे दिया ।अब हम चाहते हैं कि तुम हमारे गांव के पुल का निर्माण करो।।

अरुण ने कहा कि मुझे की अपने किसी भी विद्या पर या किसी डिजाइन पर कोई भी अभिमान नहीं है मैं तो अपने गांव वालों की मदद करना चाहता था और ऐसा एक टिकाऊ पुल का निर्माण करता जिससे कि लोगों कभी कोई परेशानी नहीं चाहे कितनी भी बाढ़ आए लेकिन कभी भी हमारा गांव उसका शिकार ना हो सभी लोग उनकी बात सुनकर तालियां बजाने लगे। और कुछ दिनों बाद उन्होंने सभी गांव वालों के साथ मिलकर एक नये पुल का निर्माण किया।

गांव वालों ने उस पुल का नाम अरूण सेतु रखा 

यह उनका अभियान नहीं बल्कि उसकी अपनी डिजाइन और अपनी कला के प्रति सम्मान था 

इस कहानी से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें कभी भी किसी की कला को कम नहीं रखना चाहिए ।कम पैसे के चक्कर में लालच में हमें कभी कोई गलत काम नहीं करनाचाहिए

विनीता सिंह

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