गोमती जी आज अपने बेटे के व्यवहार से, जो उसने अपनी पत्नी के साथ किया था क्षुब्ध थीं। देख तो बहुत दिनों से रहीं थीं किन्तु आज उन्हें कोई पुरानी तस्वीर याद आ गई जो उनकी और तपन की थी। बर्षों बाद वही कहानी दोहराई जा रही थी जो उनकी शादी के बाद घटित होती थी।
वे बालकनी में पड़ी कुर्सी पर चुपचाप बैठी ध्यान मग्न थीं।सोच रहीं थीं कि इतना पढ़ा-लिखा होकर भी कैसा असभ्यों जैसा व्यवहार अपनी पत्नी के साथ करता है। उसे अपनी पत्नी के मान-सम्मान, भावनाओं का जरा भी ख्याल नहीं है ।क्या मैंने इसे ऐसे ही संस्कार दिए थे। मैंने तो इसके पालन- पोषण में कोई कमी नहीं रखी थी, हमेशा अच्छी बातें ही सिखाईं थीं। फिर ये मर्यादाहीन व्यवहार कैसे करने लगा।वे सोचने लगीं बच्चे सिखाने के अलावा जो व्यवहार, वातावरण देखते हैं उससे भी तो
सीखते हैं। उसे सिखाने की जरूरत नहीं होती ,वह तो अदृश्य रूप से अपने आप उनके मस्तिष्क पर अंकित हो जाता है। शायद यही तो हुआ है अंशुल के साथ। इसके पापा जो मेरे साथ करते थे अप्रत्यक्ष रूप से उसके मन पर छप गया और अब वही उसके व्यवहार में परिलक्षित होता है।आज उसने छोटी सी गल्ती के लिए उसे सबके सामने कितना लताड़ा। कितने अपशब्द चिल्ला चिल्ला कर कहे। पति है
तो क्या उसे पत्नी को प्रताड़ित करने का अधिकार मिल गया। अभी शादी को दो बर्ष भी पूरे नहीं हुए हैं कैसी हंसती खेलती बोलती थी और अब कैसी कुम्हला सी गई है।हर समय आंखों में भय समाया रहता है कि कहीं कोई गल्ती न हो जाए सब्जी में थोड़ा नमक कम हो गया तो और डाला जा सकता था। प्रेम से भी कह सकता था इसमें इतना चिल्लाने की क्या आवश्यकता थी। नहीं अब मैं उसके साथ और
अन्याय नहीं होने दूंगी। इतिहास दोहराया नहीं जाएगा। इस निर्णय के बाद उनका मन थोड़ा शांत हुआ। वे बहू शुभि के कमरे में गईं।देखा वह पलंग पर लेटी सिसक रही थी। उसकी हालत देख उन्हें उस मासूम बच्ची पर तरस आ गया और वे उसके सिरहाने बैठकर प्यार से उसका सिर सहलाने लगीं। प्यार का स्पर्श पा वह फूट-फूट कर रो पड़ी। उन्होंने उसे अपने गले लगा कर चुप कराया।
वह बोली मम्मी जी क्या मेरी इतनी बड़ी गल्ती थी जिसके लिए अंशुल ने मुझे इतना सुनाया। मम्मी जी मुझे ये किस अपराध की सजा मिल रही है। मैं समझ नहीं पा रही हूं कि जिस पति का हाथ थाम अपना घर परिवार, मां -बाप, भाई-बहन सबको पीछे छोड़ कर अपने नए नीड़ का निर्माण करने, आंखों में हजारों सपने लिए आई थी वही मुझे प्यार देने के बजाए ऐसे अपमानित करेगा। मैं नहीं समझ पाती कि कब वह किस बात पर नाराज़ हो जाते हैं, मुझे अपनी गल्ती ही समझ नहीं आती।
बेटा तू सब्र रख मैं ही कुछ उपाय सोचती हूं। तेरी तकलीफ मैं अच्छे से समझ रही हूं। तेरी मानसिक स्थिति को मैं अच्छे से अनुभव कर पा रही हूं।चल उठ कुछ खा ले सुबह से भूखी है। बेटा तू दो कप चाय बना ले मैं तब तक नाश्ता लगाती हूं।
दोनों सास-बहू ने साथ बैठकर प्रेम से नाश्ता किया।
चाय पीते पीते शुभि बोली मम्मी जी यहां इस घर में मुझे केवल आपका ही सहारा है।
तू चिंता मत कर बेटा मैं हमेशा तेरे साथ ही खड़ी रहूंगी।जो साथ मुझे नहीं मिला वह मैं हमेशा तुझे दूंगी।
मम्मी जी आप क्या कह रहीं हैं मैं समझी नहीं।
समय आने पर सब समझा दूंगी। अब मैं नहाने जा रही हूं तुम भी अपना काम निबटाओ।
अभी इस वाक्ये को वमुश्किल पांच या छः दिन ही बीते थे कि अंशुल फिर उखड़ गया।
शुभि मेरी शर्ट ले आओ मुझे पार्टी में जाने के लिए तैयार होना है।
हां अभी लाई।आप चाय पीजिए तब तक मैं प्रेस कर देती हूं।
वेवकूफ औरत मैं सुबह कह गया था ना प्रेस करने के लिए।पूरे दिन से पड़ी -पडी क्या कर रही थी।सिवा खाना खाने और सोने के अलावा तू करती भी क्या है जो प्रेस नहीं कर पाई।
वो दिन में बुआ जी आ गईं थीं न तो उनके लिए खाना बनाने एवं साथ बैठने में ध्यान नहीं रहा बस अभी लाई।
बदतमीज बहाने बनाना तो कोई तुझसे सीखे।पूरा दिन निकाल दिया और कह रही है कि समय नहीं मिला।
मैं सही कह रही हूं अंशुल।
मुझे जबाब दे रही है तुझे अभी बताता हूं कहते हुए उसका हाथ पकड़ कर लगभग उसे घसीटते हुए अपने कमरे में ले गया। अभी मार-मार कर तेरी अक्ल ठिकाने लगाता हूं बहुत बोलने लगी है शुभि डर से कॉप रह थी। अंशुल ने उसे गाली देते हुए जैसे ही पकड़ा हुआ हाथ मरोड़ा और दूसरे हाथ को थप्पड़ मारने के लिए उठाया तभी गोमती जी ने एक जोरदार थप्पड़ उसको मारा और उठे हुए हाथ को झटक कर नीचे कर दिया। फिर उसका दूसरा हाथ छुड़ाते बोलीं खबरदार जो तूने फिर कभी बहू पर हाथ उठाने की कोशिश की तो तेरा हाथ तोड़कर रख दूंगी। अंशुल इस अचानक हुए हमले से हतप्रभ सा खड़ा मां को देख रहा था कि मां को आज क्या हुआ।
मां आज आपने बहू के लिए अपने बेटे पर हाथ उठाया। आपमें इतना साहस कहां से आ गया।
हां मैंने देर कर दी यह हाथ तो पहले ही उठा देना था तो यहां तक नौबत नहीं आती। क्या मैंने तुझे यही संस्कार दिए थे कि पत्नी को मारना पीटना।
पर मां इसमें गलत क्या है पत्नी को नियंत्रित रखने के लिए यह सब करना तो आम बात है। पापा भी तो आपके साथ यही सब करते थे तब तो आपने विरोध नहीं किया। फिर अब ये सब अचानक क्यों।
क्योंकि तब मुझमें साहस नहीं था तेरे पापा का विरोध करने का।कारण इस घर में मेरा साथ देने वाला कोई नहीं था। तेरी दादी तो पापा को उकसती थीं।वे तो आग में घी डालने का काम कर तमाशा देखती थीं। क्या करती अकेली असहाय थी, तुम लोग भी छोटे थे।पर अब मेरी बहू अकेली, असहाय नहीं है।
मैं उसके साथ खड़ी हूं और वह यह अत्याचार नहीं सहेगी। इसीलिए आज मैंने यह ठोस कदम उठाया है।अब तू सम्हल जा नहीं तो मैं तुझे घर से बेघर करने में भी नहीं हिचकिचाऊंगी।जो मैंने सहा वह शुभि नहीं सहेगी।काश मुझमें इतनी हिम्मत उस समय होती तो मैं जीवन भर नारकीय जीवन नहीं जीती उसी वातावरण का परिणाम देख रही हूं कि तू बिना सिखाये ही देखकर यह सब अपने पापा से सीख गया।आज यह ठोस कदम मैंने एक पत्नी के मान सम्मान को बनाए रखने के हित में उठाया है
। पत्नी जीवन साथी है गुलाम नहीं कि उसे नियंत्रण में रखे जाने के लिए यह सब किया जाए। अरे प्रेम से, आपसी समझ से भी तो रहा जा सकता है।कान खोलकर सुन ले इस घर में न तो इतिहास दोहराया जाएगा और न ही मैं तुझे दूसरा तपन बनने दूंगी। और यदि आवश्यकता पड़ी तो तुझे घरेलू हिंसा के कारण मैं स्वयं जेल की हवा खिलाऊंगी
अतः सम्हल जा।
तपन जी भी न जाने कब के खड़े गोमती जी की बातें सुन रहे थे। आज उन्हें अपनी पत्नी के दुख का अहसास हुआ नहीं तो वे सोचते थे कि खाना,कपड़ा,सिर पर छत देकर वे गोमती जी को सारे सुख दे रहे हैं।आज ग्लानि से उनकी आंखें झुकी हुई थीं। वे गोमती जी का हाथ पकड़ इतना ही बोले अंजाने में, मैंने तुम्हें जीवनभर दुखी रखा। कभी तुम्हारी भावनाओं को समझना ही नहीं चाहा। अपने
पुरूषोचित दंभ में डूबा निरंकुश बना रहा।आज तुमने मेरी आंखें खोल दीं। मुझे क्षमा कर दो। मेरे कारण ही अंशुल भी ऐसा हो गया। तुमने तो जीवन भर मुझे बहुत समझाने की कोशिश की किन्तु मैंने अपने मद में चूर होकर कभी तुम्हारी बातों को महत्व ही नहीं दिया उल्टे तुम्हें ही धमकाकर चुप कराया जिसका परिणाम आज अंशुल के रूप में देख रहा हूं।
मम्मी मुझे माफ़ कर दो जो मैंने पापा को करते देखा तो बचपन से ही मेरे मन में यह बात बैठ गई कि पत्नी के साथ ऐसा ही व्यवहार किया जाता है।अब कभी आपको शिकायत का मौका नहीं दूंगा। कोशिश करूंगा अपने आप को काबू में रखने की और अपना व्यवहार संयत बनाने की।समय लगेगा किन्तु आपसे वादा करता हूं स्वयं को बदल लूंगा।
आज गोमती जी के चेहरे पर बर्षों बाद चिर-परिचित मुस्कान आई थी जो कहीं खो गयी थी।वे बहुत शांति एवं सुकुन महसूस कर रहीं थीं अपनी बहू के हित में खड़े होकर।
शिव कुमारी शुक्ला
स्वरचित एवं अप्रकाशित
बिषय****ठोस कदम