इतना अभिमान ठीक नहीं – आराधना श्रीवास्तव

शैलजा बस 19 वर्ष की थी जब रमैया की दुल्हन बनकर आई थी । रमैया सीधा-साधा ग्रामीण अंचल में पला- बढा प्रकृति को ही अपना इष्ट देव मानता और खेतों में लहलहाते  फसलों को अन्नदाता ।

 जी तोड़ मेहनत करता।

 मेहनत तो उसके रंग रंग में बसा था खेती -बाड़ी तथा बीजों का ज्ञान उसे इतना था की मिट्टी में कौन सी फसल होगी मिट्टी की रंगत देखकर बता देता।

 यद्यपि कि वह पढ़ा- लिखा नहीं था लेकिन तर्जुबा एवं ज्ञान बहुत था। 

 पत्नी शैलजा  इंटरमीडिएट की परीक्षा उत्तीर्ण कर आई थी पढ़ने का बेहद शौक था रमैया ने भी हमेशा उसका हौसला बढ़ाया उसको आगे पढ़ने के लिए प्रेरित किया जल्द ही उसने स्नातक की डिग्री हासिल कर ली, उसके सपनों की उड़ान को यथार्थ करने के लिए आर्थिक एवं शारीरिक हर तरह से रमैया ने प्रयास किया।

 शैलजा अपनी मेहनत एवं लगन तथा रमैया के सहयोग से सफलता की सीढीं दर सीढीं चढ़ती गई तथा लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास कर बतौर शिक्षिका पद पर कार्यरत हुई।

 रमैया की खुशी का ठिकाना न था।

 वह गांव की पहली महिला शिक्षिका थी जहां गांव में लोगों की मानसिकता थी की…” लड़कियों को घर का काम सिखाया जाए ताकि विवाह के बाद वह अपनी घरेलू जिम्मेदारियां को अच्छे ढंग से निभा सके  उसी बीच शैलजा ने एक मिसाल कायम कर दिया”।

 समय तेज प्रवाह से बढ़ रहा था। उसे पुत्र पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई ऐसा लग रहा था ईश्वर की कृपा उस पर ही बरस रही हो।

 किंतु समय के साथ शैलजा के व्यवहार में परिवर्तन शुरू हो गया था अपनी पढ़े-लिखे एवं सफल शिक्षिका होने का अभिमान कहीं ना कहीं जन्म ले रहा था, अब उसे रमैया का अनपढ़ एवं गवार होना अखरता था उसे अपनी साथ कहीं भी ले जाने में शर्मिंदगी महसूस होती ।

उसका खेतों पर काम करना गाय- बैल पालन यह सब नागवार महसूस होता, उसको अपनी जीवन स्तर एवं आर्थिक स्थिति रमैया की तुलना में काफी बड़ा एवं सम्मानजनक महसूस होता और सच है जहां अभियान का जन्म होता है वहीं से भी बिखराव की शुरुआत होती है । 

शैलजा में वह अभिमान रूपी बीज वृक्ष बनता नजर आ रहा था आए दिन रमैया एवं उसके बीच इस बात को लेकर तकरार रहती की…” रमैया खेती- बाड़ी एवं 

गाय- बैल पालन छोड़कर उसके साथ शहर चले किंतु रमैया इस बात के लिए बिल्कुल तैयार न था गांव की मिट्टी में उसकी आत्मा बसती थी खेत खलिहान ही उसका जीवन था।

 वर्षों से उसकी पीढ़ी दर पीढ़ी ने खेत में अनाज रूपी सोना उगा कर जीविकोपार्जन किया फिर आज कैसी शर्म 

खेत में अनाज उगाकर हजारों का पेट पालन करना सिर्फ और सिर्फ एक किसान ही कर सकता है एक तरह से वह अन्य देवता हुआ फिर किस बात की लज्जा  ।

किंतु पत्नी शैलजा मानने को तैयार न थी और  उसने रमैया से तलाक ले शहर आ गई ।

शहर में आने के बाद शैलजा ने अपनी पीएचडी की डिग्री पूरी की अपनी शौक एवं पैशन को ध्यान दिया ।

समय तेज प्रवाह से बढ़ता ही जा रहा था।

 किंतु यह सब सम्मान एवं प्रतिष्ठा पाने की लालसा में शैलजा ने अपना बहुत कुछ खो दिया था ।

जब कभी पति रमैया एवं बेटे संतु की याद आती तो बहुत तड़प जाती, एक बार मन करता घर लौट जाए किंतु जिस अभिमान से उसने घर छोड़ा था क्या वहां पुनः उसका स्थान होगा यही सब सोचकर सिंहर जाती ।

दस साल बाद हो सकता है रमैया ने दूसरा विवाह कर अपनी जिंदगी बसा ली हो इस दर्द में अंदर-अंदर घुटती जाती ।

प्रोफेशनल जीवन में तो वह बहुत आगे थी किंतु व्यक्तिगत जीवन में शायद बेहद असफल।

  दस साल की नौकरी के बाद उसका प्रमोशन प्रधानाचार्या के रूप में रामवती इंटर कॉलेज फूलेसरी में हुआ फुलेसरी गांव का नाम सुनते ही जैसे उसका चेहरा खिल गया हो, एक अलग लालिमा चेहरे पर तैर आयी जो बरसों से कहीं खोइ हुई थी।

 यह तो उसका अपना ससुराल था जहां उसके अपने पति वह बच्चा रहता है ।

एक झलक जी भर देख लेने की उत्सुकता में उसका

 तन- मन प्रफुल्लित था।

 रामवती इंटर कॉलेज में उसका पहला दिन था सभी अध्यापक अपना इंट्रोडक्शन दे रहे थे किंतु शैलजा की आंखें तो अपनी बेटे संतु को देखने के लिए बेचैन थी उसने शिक्षकों को रजिस्टर लाने के लिए कहा ताकि सारा कुछ चेक कर सके किंतु यह सब तो बहाना था वह तो संत कुमार (संतु) अपनी बेटे को देखना चाहती थी कि किस कक्षा में है।

 तभी पांचवी कक्षा के रजिस्टर में संत कुमार का नाम देख.आंखे छलछला गई।

 अचानक पांचवी कक्षा में पहुंच  उसने नजर डाली 

पिछली पंक्ति के कोने में संतु बैठा था ।

 आंखों से बहते आंसू छुपाने के लिए चश्मा चढ़ा लिया कभी चश्मा पोछती तो कभी आंखों से निकलते आंसू भावुकता का सैलाब बिखर कर बाहर आने को बेचैन था । 

किंतु प्रधानाचार्या का पद एवं प्रतिष्ठा को ध्यान में रखते हुए अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखते हुए कहा संत कुमार खड़े हो जाओ।

 संत कुमार चुपचाप खड़ा हो गया उसे समझ नहीं आ रहा था कि प्रधानाचार्या ने उसे किस गलती के लिए खड़ा किया है ।

शैलजा की आंखें अपनी संतों पर ठहर गई वही गोल मटोल चेहरा, नयन- नक्श, शालीनता बिल्कुल रमैया जैसा 

शैलजा ने उसे अपने पास बुलाया उसका मन कर रहा था वह उसे अपनी बाहों में भर ले, गोद में उठा तब तक चूमती रहे जब तक उसकी आत्मा तृप्त न हो जाए ।

किंतु क्या करें ?

 वह तो ठहरी प्रधानाचार्या फिर भी उसने संत कुमार को अपने पास बुलाया उसके हाथों को अपने हाथों में लेकर आंतरिक सुकून महसूस कर बोली …”बेटा पेरेंट्स टीचर मीटिंग में अपने पिता को ले आना”

 शायद यह पेरेंट्स- टीचर मीटिंग रमैया से मिलने और उसे देखने की आंतरिक इच्छा से रखी गई थी ।

दूसरे दिन पेरेंट्स- टीचर मीटिंग में सभी माता-पिता अपने बच्चों के साथ आए हुए थे ।

शैलजा अपनी कार से इंटर कॉलेज की गेट में घुसने ही वाली थी कि उसकी नजर रमैया पर पड़ी वही सीधा-साधा तन पर धोती- कुर्ता, सामान्य कपड़े, संतु का हाथ पकडे दिखाई दिया।

 जब उसकी नजर शैलजा पर पड़ी तो वह उसे अपलक देखता रहा एक मुक संवाद जिसे शब्दों से बयां नहीं किया जा सकता था।

 रमैया लौट आया किंतु बेचैनी इस कदर थी कि बयां नहीं किया जा सकता था।

 दूसरे दिन रिपोर्ट कार्ड लेकर शैलजा अपने पति के घर पहुंची एक दूसरे को देखते ही आंखें छलछला गई।

 रमैया ने कहा…” अपनी प्रधानाचार्य जी को बैठने के लिए कुर्सी दो बेटा और कुछ जलपान लाओ”

 तभी शैलजा ने कहा… “आपकी पत्नी कहीं गई है क्या? की बेटा जलपान ला रहा है”

 रमैया ने कहा…” वर्षों पहले हमें छोड़ कर चली गई थी लेकिन आज आ गई हैं, इतना सुनते ही शैलजा रोते हुए रमैया को गले लगा लिया जैसे सारा अभिमान चूर-चूर हो गया हो ।

आंसुओं से बहती निर्मल धारा अंदर के सारे विषाद, अभियान को धो रही थी ।

रमैया कभी न टूटने वाले मजबूत बाहो के आलिंगन से बाधें था।

 जो जन्म-जन्मान्तर था। 

समाप्त 

आराधना श्रीवास्तव( स्वरचित)

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