“इसे समझो ना रेशम का तार,राखी का मतलब है प्यार”-सुनीता मौर्या “सुप्रिया :Moral Stories in Hindi

ये बंधन सिर्फ कच्चे धागो का नही , प्यार और जिम्मेदारियों का भी है
प्रिय पाठकों आपने मेरी पिछली कहानी पढ़ी “राखी का धोखा”,
आप सभी सुधी पाठकों का प्यार मिला अब उसका दूसरा भाग पढ़िये, “इसे समझो ना रेशम का तार,राखी का मतलब है प्यार!”
जिन लोगों ने मेरी पिछली कहानी नही पढ़ी प्लीज वो Betiyan.in पर जाकर पढ़ें.. फिर इस कहानी को पढ़ने में ज्यादा मजा आयेगा!

सुमित को अपनी बड़ी बहन सुमित्रा के साथ किये गये धोखे की सजा मिल चुकी थी ! हालांकि सजा तो उसे सट्टा बाजार में सट्टेबाजी करते हुए पकड़े जाने पर मिली थी परन्तु ये अपनी दीदी के विश्वास को दिये गये धोखे के कर्मो का फल ही था। सुमित का जीवन मे किया गया ये पहला अपराध था इस लिये उसे मात्र तीन महीने की सजा हुई थी।


सुमित के जेल जाने के बाद से सुमित्रा  बहुत उदास रहने लगी, उसका किसी काम मे मन नही लगता था। वो अनमनी सी रहती दर असल माता-पिता के गुजर जाने के बाद से सुमित ही उसका सब कुछ था जो भी करती थी वो सुमित के लिये… कुछ भी बनाती सुमित के लिए… काम करते वक्त सुमित के बारे मे ही सोचती रहती ! उसका  भूत,भविष्य,वर्तमान सब कुछ सुमित ही था उसके जीवन का केन्द्र बिंदु उसका भाई सुमित ही था!

अब उसे कुछ समझ नही आ रहा था क्या करे किसके लिये करे! दुकान पर भी कम ही जाने लगी थी! पास पड़ोसी उसे समझाने की कोशिश करते रहते थे। पर वो क्या करे भाई के बिना तो जैसे उस की दुनिया ही सूनी हो गई थी।
उसको एक चिंता और भी खाये जा रही थी कि सजा काट के आने के बाद सुमित कहीं और तो नही बिगड़ जायेगा, उसने अक्सर देखा था कि लोग जेल से आने के बाद और भी बिगड़  जाते हैं। गलत रास्तों पर चलने लगते हैं।

यही सब उलझनो में उलझी हुई एक दिन वो दुकान पर बैठी थी! सड़क के उस पार सामने एक बडी सी गारमेन्ट की दुकान थी! उसका मालिक अभिनव काफी देर से देख रहा था कि सुमित्रा बहुत देर से बुत की तरह बैठी है, हिल डुल भी नहीं रही है।वो थोड़ा चिंतित हुआ! वह अपने नौकर से बोला,”तुम थोड़ी देर ग्राहकों  का ध्यान रखो मै अभी आता हूं।”


अभिनव सुमित्रा की ही हम उम्र का एक युवक था! वो सुमित्रा को तब से जानता था जब से पिता की जगह उसने अपनी दुकान संभाली थी!
” सुमित्रा…सुमित्रा…सुमित्रा!” कह कर उसने कई बार पुकारा पर वो कुछ जवाब ही नही दे रही थी!
अभिनव ने उसका कंधा पकड़ कर झिंझोड़ा तब सुमित्रा की तंद्रा भंग हुई, वो अचकचा कर बोली, हाँ… हां हां.. क्या है?…क्या हुआ?.. अभिनव तुम यहाँ क्या कर रहे हो?!”
रिलैक्स…रिलैक्स… लो पहले तुम पानी पियो” अभिनव ने पास रखी पानी की बोतल सुमित्रा को पकड़ाते हुए कहा!
सुमित्रा ने बोतल ले कर दो घूंट पानी पिया और बोतल का ढक्कन लगा कर एक ओर रख दिया।

अभिनव ने दोबारा बात शुरू करते हुए पूछा,” तुम इतनी तल्लीनता से क्या विचार कर रही थीं, मैं काफी देर से देख रहा था तुम एकदम बुत की तरह बैठी थी! दो ग्राहक आकर वापस चले गये, तुमने उनसे बात भी नहीं की। तब मुझे चिंता हुई कि कहीं तुम्हारी तबियत तो खराब नही इस लिये अपनी दुकान नौकर के हवाले कर के इधर आ गया, तुम ठीक तो हो ना?”
“हां मैं ठीक हूं” सुमित्रा ने थकी-थकी सी आवाज में जवाब दिया।
“क्या बात है सुमित्रा तुम कुछ खोई-खोई सी रहती हो मैं देख रहा हूँ जब से सुमित  जेल गया है, तब से तुम काफी कमजोर और बीमार सी दिख रही हो! तबियत ठीक नहीं हो तो कहो किसी डाक्टर को दिखा दूँ?” अभिनव ने सुमित्रा के चेहरे की तरफ देखते हुए पूछा।

“नही ऐसी कोई बात नहीं है तबियत ठीक है मेरी!” सुमित्रा ने जवाब दिया।
“देखो सुमित्रा तुम अगर चाहो तो अपनी परेशानी हम से शेयर कर सकती हो इतनी तो जान पहचान  और दोस्ती है हमारी … कोई तकलीफ़ हो या कुछ जरूरत हो तो संकोच मत करना एक दोस्त समझ के कह देना ठीक है!” अभिनव ने कहा।
“ऐसा कुछ होगा तो जरूर बताऊंगी!” सुमित्रा ने अभिनव की तरफ देख कर कहा।
“ठीक है सुमित्रा मैं चलता हूं दुकान पर नौकर अकेला है,अपना ख्याल रखना!” कहता हुआ अभिनव उठा और सड़क पार कर के अपनी दुकान पर चला गया।

इसी तरह धीरे-धीरे दिन गुजरते गये अभिनव दूसरे तीसरे दिन सुमित्रा की दुकान पर आ कर उसके हाल चाल पूछ लिया करता, अगर सुमित्रा को कुछ जरूरत होती तो वो उससे कह देती अभिनव उसका काम कर देता!
सुमित की सजा तीन महीने की थी सुमित्रा रोज  कैलेंडर में निशान लगाती थी एक- एक दिन गिनती थी। एक रोज कैलेंडर मे निशान लगाते हुए अपने आप से ही बात कर रही थी कि ,’भाई तुझे गये दो महीने दस दिन हो गए, बस बीस दिन और बचे तुम्हारे आने में!’

तभी कोई उसके पैरो में गिर कर फूट-फूट कर रोने लगा उसने कस कर सुमित्रा के पैर पकड़ लिए और कहने लगा, “मुझे माफ कर दो दीदी मै आप का गुनहगार हूं मैंने आप का बहुत दिल दुखाया! मैंने आप की राखी का मान नही रखा!”
सुमित्रा ने उसकी बाहें पकड़ कर उठाया और पूछा,” अरे ! अरे! ये क्या कर रहे हो… कौन हो तुम?”
उसने अपना चेहरा ऊपर उठाया बढ़ी हुई दाढ़ी…कृशकाय शरीर… मैले से कपड़े देख कर सुमित्रा पहचान ही नही पाई!
“दीदी तुमने अपने भाई को नही पहचाना! मै तुम्हारा अभागा भाई सुमित!” कहते हुए सुमित के होंठ कांप रहे थे!
” सुमित मेरे भाई ये क्या हालत हो गई है तुम्हारी!” इतना कहकर उसने भाई को कस कर गले लगा लिया और फूट-फूट कर रो पड़ी! वह अपने भाई का कभी माथा चूमती,  कभी गाल, कभी हाथ चूमती दोनो हाथों की अंजुरी मे भाई का चेहरा लिये कहने लगी,”कैसा हो गया मेरा भाई एकदम गाल की हड्डियाँ निकल आई हैं। शरीर पूरा हड्डियों का ढांचा हो गया दो महीने में” सुमित्रा की आंखो से तो जैसे आंसुओं
की झड़ी लग गई थी।
दोनो भाई-बहन बहुत देर तक गले लग कर रोते रहे। जब दोनो का थोड़ा मन हल्का हुआ तब सुमित्रा नें पूछा,”भाई अभी तेरी सजा मे तो बीस दिन बाकी हैं तो तुम पहले कैसे आ गये, कहीं तुम जेल से भाग कर तो नही आ गये ?” सुमित्रा ने आशंका जताते हुए पूछा!
“नहीं-नहीं  दीदी मैं जेल से भाग कर नही आया… मैं रिहा कर दिया गया हूं!” सुमित ने दीदी को बताया!
पर सुमित्रा को यकीन नहीं हो रहा था कि उसका भाई सच बोल रहा है!
उसने सुमित का हाथ पकड़ कर अपने सिर पर रखा और कहा,”खा मेरी कसम कि तू जेल से भाग कर नही आया!”
“दीदी मै जानता हूं कि मैने आप का भरोसा तोड़ा है धोखा दिया है इस लिये आप मुझ पर विश्वास नहीं कर पा रही है!” सुमित रोता जा रहा था और बोलता जा रहा था।
“मैं सच कह रहा हूं दीदी मुझे रिहा किया गया है, मेरे अच्छे चालचलन के लिए बीस दिन पहले मेरी  सजा माफ कर दी गई। और मुझे रिहा कर दिया गया!” सुमित अपनी दीदी का हाथ पकड़ कर उसे विश्वास दिलाने की कोशिश कर रहा था।
पर सुमित्रा यकीन ही नहीं कर पा रही थी।

” दीदी मैं समझ सकता हूं आप मेरी बात पर यकीन क्यों नहीं कर पा रही हैं, वो कहते हैं ना जब तुम पर से किसी का एक बार विश्वास टूट जाये है फिर कभी वो तुम पर  विश्वास नही कर सकता! दोबारा उसका भरोसा जीतना बहुत मुश्किल होता है!  मैंने काम ही ऐसा किया है कि आप मुझ पर यकीन नही कर पा रही! दीदी आगे से मैं ऐसा कुछ भी नही करूंगा कि आप को मेरी वजह से शर्मिंदा होना पड़े, मैं कैसे विश्वास दिलाऊं कुछ समझ नही आ रहा!” कहते हुए सुमित सोच रहा था कि ऐसा क्या करूँ कि दीदी को मुझ पर यकीन हो जाये! तभी उसे को कुछ याद आया!
जेल से रिहा होते वक्त जेलर ने एक कागज दिया था जिस पर उसके अच्छे चाल चलन की वजह से बीस दिन पहले रिहाई का आर्डर था। और जेल की मुहर और जेलर के  दस्तख़त थे। उसने जल्दी से जेब से कागज निकाल कर सुमित्रा के हाथ में रख दिया।
कागज देख कर सुमित्रा को यकीन हो गया उसने कहा,”भाई अब मुझे तुझ पर यकीन हो गया! अब कभी भी तुम ऐसा कोई काम मत करना जिससे मेरा दिल दुखे और तुम्हारी जिंदगी खराब हो जाये।” कहते हुए सुमित्रा ने सुमित का हाथ पकड़ कर बाथरूम की तरफ इशारा करते हुए कहा,” भाई जाओ तुम अपनी शेव बनाओ और नहा धोकर साफ कपड़े पहन कर आओ तब तक मै तुम्हारी पसंद था खाना बनाती हूँ।”
जब तक सुमित नहा धोकर बाहर आया तब तक सुमित्रा ने फटाफट उसकी पसंद की खीर पूड़ी और आलू  की सब्जी तैयार कर दी थी। उसने सुमित को पाटा पर बैठने को कहा और उसकी थाली लगा कर कहा,”खाओ भाई आज बहुत दिन बाद तुम्हारे लिये कुछ बनाया है! जब से तुम गये थे कुछ भी करने का मन नही करता था जब भी खाना लेकर बैठती  यही सोचती… पता नही भाई ने कुछ खाया कि नही फिर थाली उठा कर रख देती और रोती रहती!”
सुमित की भी आँखे भर आई उसने भी गौर किया दीदी बहुत कमजोर और बीमार सी लग रही हैं।
“दीदी आप भी हमारे साथ खाना खाओ!”और उसने पूरी का कौर तोड़कर खीर लगाया और सुमित्रा के मुँह में खिला दिया। सुमित्रा मुस्कुरा दी आज दो महीने के बाद सुमित्रा मुस्कुराई थी। खाना खिलाना चल ही रहा था कि किसी ने दरवाजे की कुंडी खड़काई, सुमित्रा ने कहा “कौन है?”
“मैं अभिनव!” दरवाजे के पीछे से आवाज आई!
“अंदर आ जाओ दरवाजा खुला है!” सुमित्रा बोली।
अभिनव ने अंदर आकर देखा सुमित आ गया उसने उसका हाल चाल पूछा, जल्दी आने का कारण पूछा सुमित ने सब विस्तार से बता दिया। इस बीच सुमित्रा ने अभिनव के लिए भी खाने की थाली लगा दी और कहा,” अभिनव तुम भी खाना खा लो !” थोड़ी ना नुकुर के बाद अभिनव खाना खाने लगा। तीनो साथ खाना खा कर बहुत प्रसन्न थे।
अभिनव ने सुमित को सब बताया कि तुम्हारी इस हरकत से सुमित्रा पर क्या बीती और वो तुम्हे लेकर कितनी परेशान और चिंतित रहती थी! अभिनव ने सुमित के कंधे पर हाथ रख कर उसे समझाया,” देखो सुमित जो गलती तुम ने की अब जीवन मे  दोबारा कभी मत करना और कभी किसी गलत संगत मे ना पड़ना तुम्हारी दीदी तुम्हे बहुत प्यार करती है!”

अभिनव ने उसकी आंखों मे देखते हुए आगे कहा,” पिछले रक्षाबंधन पर जब तुम नही आये तो वह कितनी परेशान रही ये तुम नही समझ सके क्योंकि तुमने राखी को केवल एक रेशम का धागा समझा और शायद इसीलिये आना जरूरी नही समझा, पर सुमित ये ‘राखी सिर्फ रेशम एक का धागा भर नही होता वो बहन का प्यार होता, इसके धागे तो कच्चे होते हैं, पर बहन का प्यार पक्का और अटूट होता है!’ इसलिये आगे से कभी ऐसा कुछ गलत मत करना, बहन की राखी का कभी अपमान मत करना और हमेशा भाई का फर्ज अदा करना और वादा करो अपनी दीदी को वो सब खुशियां दोगो जिसकी वो हकदार हैं!” कहते हुए अभिनव ने सुमित की तरफ हाथ बढ़ाया।
सुमित ने अभिनव के हाथ पर हाथ रखकर कहा” अभिनव जी  मै आप से वादा करता हूँ मैं दीदी को कभी कोई दुःख या तकलीफ नहीं होने दूंगा। अब तक मै राखी की कीमत नही समझता था। मै तो इसे मात्र सुंदर रेशमी धागों का एक त्योहार ही समझता था। इन कच्चे धागों में बहन के प्यार को कभी देखने की कोशिश ही नही की आपने मेरी आंखे खोल दिया इसके लिये मै सदा आप का आभारी रहूंगा!” अभिनव ने कहा,” शाबास!” और उसे गले लगा लिया!!!

कहानी कैसी लगी लाईक और कमेंट करके अवश्य बताईयेगा 🙏🙏🙏

                           (स्वरचित)
                सुनीता मौर्या “सुप्रिया

हवामहल की खूबसूरती और दाल बाटी चूरमा की लज्जत से भरपूर गुलाबी शहर जयपुर की रंगीनियों के बीच  क्या मोड़ लेगी अभिनव और सुमित्रा की दोस्ती! प्रिय मित्रों अगर जानना चाहते हैं तो प्लीज  कमेंट मे बताई .अगली कहानी जल्द ही आयेगी🙏
                         
ये कहानी  #ये बंधन सिर्फ कच्चे धागों का नही है।… प्रतियोगिता के लिये।

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