ईर्ष्या का जहर – पुष्पा जोशी : Moral Stories in Hindi

तेज बुखार से रेवती का शरीर तप रहा था,वह दर्द से कराह रही थी, मगर इस शारीरिक दर्द से कहीं ज्यादा पीड़ा उसके दिल को हो रही थी,उसे आत्मग्लानि हो रही थी, पश्चाताप की अग्नि में वह झुलस रही थी।आज उसकी हालत की जिम्मेदार वह स्वयं थी।आज वह अकेलेपन का दर्द झेल रही थी।उसे याद आया कि पिछली बार जब उसे बुखार आया था, तो उसकी जेठानी रोहिणी ने किस तरह उसकी

सेवा की थी, उसके सिर पर ठंडे पानी की पट्टियां रखी, समय-समय पर दवाई दी,खाने पीने का पूरा ध्यान रखा। बदले में उसने क्या किया ठीक होने के बाद उन्हें कितनी खरी – खोटी सुनाई।उसे लग रहा था कि एक बार वे सामने आ जाए और उनसे माफी मांग लें।

रेवती की आँखो के आगे उसका अतीत चलचित्र की तरह घूम रहा था, किस तरह से उसकी जेठानी रोहिणी ने उसका स्वागत किया था, आरती उतार कर,पैरों पर रोली लगा गृह प्रवेश करवाया था। सास ससुर बहुत पहले ही शांत हो ग‌ए थे।उसके पति रमेश को इन भाई भोजाई ने ही माँ- बाप का प्रेम दिया था। जेठ प्रेम नारायण जी बैंक में बड़ी पोस्ट पर कार्यरत थे, अच्छी आमदनी थी, जेठानी के पास गहने कपड़े किसी चीज की कमी नहीं थी। साथ ही मृदु भाषी और व्यवहार कुशल थी, रमेश के लिए

उनकी कही बात पत्थर की लकीर होती, वो अपनी भौजी का बहुत सम्मान करता था। रोहिणी रेवती को भी बहुत प्यार से रखती गहने, कपड़े वह जो पहनना चाहती कभी मना नहीं करती, उसने कभी किसी अलमिरा पर ताला नहीं लगाया। रमेश एक कम्पनी में छोटी सी नौकरी करता था,कमाई कम थी , मगर भाई उसे किसी चीज की कमी नहीं होने देता। मगर वह, पता नहीं किस माटी की बनी थी, हर

पल जेठ जेठानी के ऐश्वर्य से जलती, उसे ईर्ष्या होती कि उसके पति की कमाई कम क्यों  है, वो भैया भाभी का इतना आदर क्यों करते हैं।वह घर में बात-बात पर झगड़ा करती।उसे जेठानी के दोनों बच्चों को देखकर भी ईर्ष्या होती।उसकी रग-रग में ईर्ष्या का जहर फैला हुआ था।जबकी अमित और सुमित दोनों बच्चे अपनी चाची का आदर करते थे, और उनके सारे कार्य कर देते थे।

रोहिणी के निर्मल प्यार को भी वह दिखावा समझती, सोचती कि वो सब भली बनने के लिए करती है।उसे लगता था कि भौजी ने चिकनी-चुपडी बातें कर रमेश को अपनी तरफ कर लिया है।

रेवती के मुख से कराह निकली,उस घटना को याद कर उसकी आँखों में आँसू आ ग‌ए।उसे याद आया कि किस तरह उसने, रोहिणी के जन्मदिन की पार्टी में रंग में भंग कर दिया था, वह भी छोटे से कारण से। रमेश अपनी भौजी के लिए उपहार में एक साड़ी लेकर आया था, और रेवती ने घर सिर पर उठा लिया था, रोहिणी ने कहा भी कि यह साड़ी तुम रख लेना मगर उसे तो विकराल रूप लेना था, उस दिन किसी ने कुछ नहीं खाया। रोहिणी दूसरे दिन फिर सामान्य हो गई थी, मगर वह तो आए दिन

क्लेश करती। परिणाम यह हुआ परिवार दो भागों में बंट गया। दो वर्ष पूर्व प्रेम नारायण जी का तबादला हो गया और वे दूसरे शहर चले गए। रमेश को भाई भौजी के जाने पर बहुत दु:ख हुआ और वह पूरी तरह टूट गया।उसके चेहरे की हँसी गायब हो गई।सुबह नौ बजे कंपनी चला जाता और शाम को सात बजे घर आता। रेवती सोच रही थी सब गलती उसकी है, उसने अपने हाथों से अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मारी है।देवता समान जेठ- जेठानी को वो समझ ही नहीं पाई, अब किस मुंह से क्षमा मांगे।अपनी ईर्ष्या की प्रवृत्ति ने उसे कहीं का नहीं रखा।

रमेश भी घर और कम्पनी के काम करते-करते थक गया था ।कल उसने रुंधे गले से भौजी को फोन लगाया और सब हाल बताए।उसे विश्वास था कि वो माफ कर देंगी। 

दूसरे दिन उसके भैया, भौजी और बच्चे घर पर आए।रेवती की हालत देखकर रोहिणी बोली लल्ला ये क्या  हालत बना दी मेरी बहिन की।

रेवती उसके पैरों में गिर पड़ी और बोली दीदी सब मेरे कर्मो का दोष है, मैंने आप सबके साथ बहुत बुरा व्यवहार किया, समझ में नहीं आ रहा, किस मुंह से माफी मांगू। उसके आँसू रूकने का नाम ही नहीं ले रहै थे। रोहिणी ने उसे गले से लगा लिया। सब ४-५ दिन साथ में रहे रेवती का स्वास्थ अब ठीक

हो गया था और मानसिक विकार भी। उसके मन से ईर्ष्या और द्वेश का भाव निकल गया था।वह बोली दीदी मत जाओ यहीं रह जाओ। रोहिणी ने कहा बस दो साल बाद ये सेवा निवृत्त हो जाएंगे, तब यहीं रहेंगे, सब साथ में। तुम लोग वहाँ आना हम भी आते रहेंगे। तुम्हारे सिवा हमारा है कौन। पूरे घर में खुशियों का माहौल छा गया था। ईर्ष्या का कहीं नामोनिशान नहीं रह गया था।

प्रेषक-

पुष्पा जोशी 

स्वरचित, मौलिक

बेटियॉं डॉट इन कहानी साप्ताहिक विषय

विषय-# ईर्ष्या

कहानी

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