ईर्ष्या – परमा दत्त झा

Moral Stories in Hindi

(रचना मौलिक और अप्रकाशित है इसे मात्र यहीं प्रेषित कर रहा हूं।)

आज रत्ना को रात भर नींद नहीं आई कारण उसकी बहू को बेटी हुई और उसकी देवरानी को पोता हुआ।

हे भगवान ऐसा अंधेर-मैं भी आपकी पूजा करती हूं -सावन में शिव मंदिर में कांवर लेकर जाते हैं।पिछले तीस साल से लगातार भगवान् फिर ऐसा अंधेर क्यों?-उसका बड़बड़ाना चालू था।

मगर आज जब अति हो गयी तो उसके मुंह से व्यंग्य वाण या ईर्ष्या फूट पड़ा।

रत्ना और राखी दोनों सगी बहनों की शादी एक ही घर में तीन साल आगे पीछे हुई थी।

रत्ना के पति जवाहर मिश्रा खेती करते हैं,पूरे तीस एकड़ खेत के मालिक -सुखी किसान। विशाल आम के बगान ,लिची,कटहल,अमरूद सहित सभी फल बेचते हैं।अकेला आम ही दो ढाई लाख का बेचते हैं।इनकी संतान चार बेटियां और एक बेटा। चारों शादीशुदा ससुराल में बसती हैं,सभी के दो तीन बेटियां ही हैं एक बेटा राम रतन उसका भी विवाह चार साल पहले कराया अभी बेटी हुई।पूरे परिवार में बेटियां ही बेटियां।

दूसरी ओर देवरानी जो उसकी सगी बहन है उसकी शादी के तीन साल बाद इसी घर में व्याह कर आयी आज पोता हुआ।उसका विवाह इसके एक मात्र देवर भोला मिश्र से हुआ था।

भोला मिश्र के तीन बेटे हुए ,समय के अंतराल में सभी की शादी करा दी।

उनका छोटा शंकर और इनका शेखर हम उम्र है और शादी भी एकही साथ हुई। वे सब मधुबनी शहर में विशालकाय मकान बनाकर रहते हैं।किराना दुकान देवर भोला और छोटा लड़का शंकर मिलकर चलाते हैं,बाकी दोनों बेटे डाक्टर हैं और दिल्ली एम्स में डाक्टर हैं।सो आज गांव से मात्र दस किलोमीटर की दूरी पर रहते हैं मगर सारा खेत धन इसने हड़प लिया है।

सभी बेटियों की शादी और बाकी काम का रोना करके सब खाते हैं।कभी कुछ भी नहीं दिया।

मगर करोड़ों के व्यवसाय के मालिक वे हैं।

यह ईर्ष्या की आग में शादी के समय ही जल गयी,वह अपनी सगी बहन को देवरानी बनाकर लाना नहीं चाहती थी मगर क्या करें? घरवालों को पसंद आ गई।

उसके श्वसुर शहर में दुकान करते,सो रोज गांव से आना जाना करते। मगर बुढ़ापे और बीमारी के कारण शहर में रहना जरूरी हो गया।

अब तो गांव संभालने के नाम पर यहीं टिक गये।तब से पूरा गांव इनका,शहर में पहले किराए मकान से अपना घर। फिर आज तो विशालकाय महल है और इनसे कितने गुना सुखी है।

सो जलन की आग बढ़ती गयी।

मगर आज जब इसे पोती और उसे पोता हुआ तो वह काबू में नहीं रह सकी और फूंट फूंट कर रोने लगी।-हे भोलेनाथ मेरे साथ अंधेर क्यों, मुझे पोती और छोटी को पोता-ऐसा क्यों हे भोलेनाथ।वह रोती बड़बड़ाये जा रही थी जबकि छोटी पारस अस्पताल से बच्चा जच्चा-बच्चा लेकर घर आयी थी और खुशी से बड़ी बहन या जेठानी को खबर किया था।

#देय विषय-ईर्ष्या

#दिनांक-22-7-2025

#रचनाकार-परमा दत्त झा, भोपाल।

कुल शब्द संख्या -700कम से कम।

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