आज लाजवंती का सुबह से ही मन बहुत उदास था। वह करने को सुबह से चूल्हे में आग धरना, लाल चाय बनाना, साग बनाना सब कर तो रही थी मगर उसका मन किसी भी काम में नहीं लग रहा था। वह बार-बार यही सोच रही थी ।
जब किसी के पास थोड़ा धन आ जाता है तो वह इंसानियत क्यों भूल जाता है । उसे रह रहकर अपनी जेठानी के वो शब्द “मुन्ना दूध पीने का मन है, तो अपने बापू से कहना,एक गईया खरीद लाए “याद आ रहे थे । जो उसके बेटे को बोला गया था।
अचानक मुन्ना आकर कहने लगा। मां मैं गुड्डी दीदी के साथ खेलने जाऊं। आज हम दोनों वहां और दोस्तों के संग ईंटों से छोटे-छोटे घर बनाने वाले हैं।
लाजवंती मुन्ने की बात सुनकर उसे प्यार से समझाने लगी। देख मुन्ना गांव भर में और भी बच्चे हैं । तू उनके साथ खेलने चला जा। मगर अब तेरी ताई जी की यहां तुझे गुड्डी के साथ खेलने नहीं जाना है।
मुन्ना लाजवंती की बात सुनकर रोने लगा और तुरंत पूछ बैठा। मां गुड्डी दीदी तो मेरी बड़ी बहन है तो मैं उसके साथ क्यों ना खेलूं। लाजवंती कुछ कहती इसके पहले ही जेठानी लाजो गुड्डी के साथ घर में कदम रखते हुए बोल उठी।
हां मुन्ने तुम बिल्कुल सच कह रहे हो। गुड्डी तुम्हारी बड़ी बहन है। तुम्हें तो उसके साथ खेलने जाना ही चाहिए। तुम्हें पता है आज मैंने तुम सब बच्चों के लिए खीर बनाई है।
चलो तुम भी सब बच्चों के साथ खाना कहते हुए जेठानी लाजो मुन्ने की ओर देख कर मुस्कुराने लगी। लाजवंती ने मुन्ने के चेहरे की ओर देखा और गौर किया। खीर की बात सुनकर मुन्ने की आंखें चमक गई थी क्योंकि जिस बच्चे को कभी ठीक से दूध नसीब ना हो । उसे अगर खीर खाने को मिल जाए तो और उसे क्या चाहिए।
मगर लाजवंती कल रात वाली बात भी भूली नहीं थी। वह तुरंत संभल कर अपनी जेठानी लाजो से बोल उठी। क्षमा करना दीदी अब मुन्ना आपके यहां गुड्डी के साथ खेलने नहीं जाएगा।
मानती हूं हमारे पास गईया नहीं है मगर फिर भी हम जो भी रूखी सूखी खाते हैं, इज्जत की खाते हैं। रात को चैन की नींद सोते हैं।
हम आपकी तरह किसी के अभाव का तमाशा नहीं बनाते। इस तरह किसी को कड़वे शब्द नहीं बोलते और ना ही किसी मासूम बच्चे के साथ ऐसा व्यवहार करते हैं, जैसा कि आपने किया है।
लाजवंती की बात सुनकर जेठानी लाजो क्षमा मांगते हुए उसे समझा कर कहने लगी।
देख लाजवंती उम्र निकल गई । कभी चार पैसे देखे न थे। मति मारी गई थी मेरी। पढ़ी-लिखी भी तो ना हूं। मैं तो अभी भी ना समझ पाती मगर गुड्डी ने मुझे इंसानियत का पाठ पढ़ाया । तब मैं समझ पाई।
जेठानी लाजो और कुछ कहती इसके पहले ही गुड्डी बोल पड़ी। चाची मुन्ना मेरा छोटा भाई है। हम दोनों एक दूसरे से कैसे दूर रहें। मां ने मुन्ने से जो भी कहा। वह सही नहीं था मगर आप तो सब समझती हो चाची।
पता है चाची, कल ही पाठशाला में सिखाया गया था । कभी भी किसी का अपमान नहीं करना चाहिए । हर इंसान के अंदर इंसानियत होनी चाहिए। गुड्डी की बात सुनकर लाजवंती ममता से भर उठी कि एक पंद्रह वर्षीय बच्ची ने पाठशाला में गुरुजी द्वारा पढ़ाई गई इंसानियत की परिभाषा को इतने अच्छे से समझा और अपने जीवन में उतार भी लिया और एक हम बड़े लोग सब समझते हुए भी इंसानियत को भूल ही जाते हैं।
वो फिर तुरंत गुड्डी से बड़े प्यार से बोल उठी। हां बिटिया तु ठीक कह रही है, मुन्ना तेरा छोटा भाई है। तुझे उसके साथ खेलने का पूरा-पूरा अधिकार है और फिर जेठानी लाजो को क्षमा करते हुए बोल उठी।
दीदी पुरानी बातों को मैं भूल गई मगर आप भी अब अपनी इंसानियत को कभी छोड़ ना देना और हां अपनी गुड्डी तो बहुत समझदार हो गई है कहते हुए अपने कलेजे से लगा दिया।
स्वरचित
सीमा सिंघी
गोलाघाट असम