आज दुखन पर पंचायत बैठा था।कारण दुखन श्वसुर होकर बहू का हाथ पकड़ा और गोद में उठा कर—!
मधुबनी जिले का वह सोनवर्षा गांव जहां करीब चालीस घर मंडल परिवार है उसी में एक दुखन मंडल का घर है।
पूरा भगवान के कोप से शापित अभागा परिवार।दुखन दो भाई और सात बहनें सबसे बड़े भाई का पोता रघु जिसकी घरवाली है
-फेकनी।
सो आज से चार साल पहले वह आंधी तूफान और प्रलय ब्रज(ठनका)जिसने पूरे परिवार को जलाकर राख कर दिया।दुखन दरभंगा सवारी लेकर गया था वहीं फेंकनी बच्चे के लिए गयी थी।सो दोनों बच गये बाकी सब खत्म।
वैसे भी फेंकनी को अभागन कहते थे कारण जब आठ साल की थी तो मां पिता दोनों खत्म।सोलह की आयु में मामा मामी शादी करवाये और जिस दिन शादी होकर गौना हुआ दोनों रोड दुर्घटना में चल बसे।
अब अभागन का ठप्पा लग गया था। बहुत दिनों बाद बच्चा होने मैके गयी तो यह प्रलय और पूरा परिवार खत्म।
सो कोई इसके घर झांकने नहीं आता था।बस श्वसुर दुखन रिक्शा चलाता और शादी व्याह दूसरे अवसरों पर भोजन पकाया करता सो घर मजे में चलता था।
वह भी अपने इस श्वसुर से बहुत खुली थी कारण राशन-पानी भरा रहता और वह पूरा ध्यान रखता था।
दूसरी ओर दुखन का पूरा परिवार खत्म हो गया था।बस यह और इसकी चार साल की बेटी फूलों बची थी।
सो उस दिन काफी सर्दी थी और यह रात में खाना खाकर आग जलाकर सेंकते हुए न जाने कब सो गई।अब घर में आग पकड़ लिया।वह बेखबर सो रही थी जबकि दुखन उठाना चाहा और नहीं उठने पर गोद में मां बेटी दोनों को बाहर निकाला। फिर आग बुझाया गया ।मगर श्वसुर होकर -श्वसुर नहीं दादा श्वसुर बहू को छुआ,गोद में उठाया -राम ,राम जमाना भ्रष्ट हो गया।
पंडित दीनदयाल और फेंकू मिश्रा ने हंगामा कर दिया।
इसी बात का पंचायत आज बैठी थी।
क्यों तुम्हें क्या कहना है?-यह सरपंच की आवाज थी।
हम का बोलें,घर में आग लगा था और बहू ,बचिया फंसी थी सो बाहर निकाल लाये और घर को बचा लिया।
क्या तुमने बहू को नहीं छुआ-यह फेंकू मिश्रा थे।
तो और क्या करते,आपतो मजा ले रहे थे और हमारी बहुरिया जल रही थी।-यह सुनते ही सभी के सिर शर्म से झुक गये।
अरे आप पंडित हो, धर्म-कर्म जानते हो।जब मौत हो तो जान बचाना धर्म है आपकी तरह बीडीओ बनाना और पंचायत बुलाकर बेइज्जती करना नहीं।-भाग पंडित कहीं का।
इतना सुनते ही दोनों भागने लगे।
पंचायत ने रोका और दोनों पंडित को दस दस हजार रूपए का जुर्माना लगाया।
उस पैसे से गरीब दुखन का घर बन जाएगा और भविष्य में बिना सोचे-समझे कोई भी ग़लत इल्जाम नहीं लगाएगा।
सभी पंच परमेश्वर की जय का नारा लगाने लगे वहीं मानवता पर सबका विश्वास दुगना हो गया।
# इंसानियत
रचनाकार-,परमा दत्त झा, भोपाल।