इंसानियत: कोई अपना सा – श्वेता अग्रवाल –

स्नेहा फटाफट सुबह के काम निपटाए जा रही थी| एक तो लॉक-डाउन की वजह से कामवाली भी नहीं आ रही थी ऊपर से पति मयंक का वर्क फ्रॉम होम, अंशुल की फरमाइशें और उसकी खुद की ऑनलाइन क्लासेस| सुबह के समय वह अच्छी खासी बिजी रहती थी।

स्नेहा हाई स्कूल में मैथ्स की टीचर है |अभी 10:00 बजे से उसकी ऑनलाइन क्लास शुरू हो जाएगी जो 1:00 बजे तक चलेगी |इसीलिए अंशुल और मयंक को नाश्ता देकर वह लंच की तैयारी में लगी थी|

तभी स्नेहा को मोबाइल बजा|”अंशुल देख बेटा, किसका फोन है?” स्नेहा ने बेटे को आवाज लगाई|

“मम्मी नीता आंटी का फोन है|”अंशुल ने उसे फोन देते हुए कहा|

“हेलो स्नेहा कहां हो यार? कब से फोन कर रही हूं| नीता ने गुस्से से कहा|

“यहीं इसी दुनिया में हूं| बस थोड़ा बिजी थी|” स्नेहा ने हंसते हुए कहा|

“तू कब बिजी नहीं रहती ? थोड़ी आसपास की भी खबर रखा कर|”

“तू है ना मेरी खबरीलाल| मुझे क्या जरूरत है आसपास की भी खबर रखने की|अब गुस्सा छोड़ और बता क्या हुआ?” स्नेहा ने उसे मनाते हुए कहा|

“हमारी सोसाइटी के बी ब्लॉक के फ्लैट नंबर 307 में तो कोरोना विस्फोट ही हो गया है|”नीता ने बताया|

“क्या मतलब?”

“फ्लैट नंबर 307 में रहने वाले मिस्टर शर्मा,उनकी वाइफ और उनके माता-पिता सभी को कोरोना इन्फेक्शन हो गया है| सिर्फ उनके 3 साल के बेटे वंश को छोड़कर| सिर्फ बच्चे की रिपोर्ट नेगेटिव आई है बाकी सबकी तो पॉजिटिव है|” नीता ने बताया|

“चलो शुक्र है भगवान का कि बच्चे की रिपोर्ट नेगेटिव है,बच्चा तो बच गया|” स्नेहा ने राहत की सांस लेते हुए कहा|

“क्या खाक अच्छा है, बच्चे की तो बहुत बुरी गति हो रही है|” नीता ने बताया|

“क्या मतलब? खुल के बता, पहेलियां क्यों बुझा रही हैं| स्नेहा ने चिंतित होते हुए पूछा|

“मतलब ये कि कोई भी रिश्तेदार बच्चे को अपने साथ रखने के लिए तैयार नहीं है| सबको लगता है कि बच्चे को साथ में रखने से उन्हें भी कोरोना हो जायेगा| इसलिए बच्चा कल रात से ही पुलिस-स्टेशन में है|शर्मा फैमिली को लेने आई मेडिकल टीम ने उसे पुलिस को सौंप दिया है|”नीता ने खुलासा करते हुए कहा|

“पर बच्चे की रिपोर्ट तो नेगेटिव है तो उन्हें कोरोना कैसे हो जाएगा? हमें उसके रिश्तेदारों को समझाना चाहिए यह तो गलत है| आखिर इतना छोटा बच्चा कहां जाएगा? कैसे रहेगा?” स्नेहा ने आवेश में कहा|

देख स्नेहा तू मुझे इन सब झमेलों से दूर रख मुझे तुझे खबर देनी थी सो दे दी|अब तू जान और तेरा काम| उस बच्चे की सारी जानकारी सोसाइटी के प्रेसिडेंट के पास है, तुझे जो समझना ,समझाना है उन्हें ही समझा| मुझे दूसरे के फट्टे में टांग डालने का कोई शौक नहीं है और मैं तो तुझे भी यही सलाह दूंगी कि तू भी इन बातों से दूर रह और अपने काम पर ध्यान दें| चल बाय|” नीता ने फोन रखते हुए कहा|

“अरे! बातों-बातों में पता ही नहीं चला क्लास का टाइम हो गया| क्लास के बाद इस बारे में मयंक से बात करती हूं|” सोचती हुई स्नेहा क्लास लेने चली गई|

पूरी क्लास में स्नेहा बेचैन रही| रह-रह कर उसका मन उसी बच्चे पर अटका जा रहा था| किसी तरह उसने अपनी क्लास खत्म की और मयंक के पास पहुंची|

मयंक पौधों में पानी दे रहा था|”अरे!आज किचन के बजाय इस तरफ का रुख कैसे हो मोहतरमा| सब खैरियत तो है|” मयंक ने स्नेहा को छेड़ते हुए कहा|

“मयंक मुझे आपसे कुछ जरूरी बात करनी है|”

“क्या हुआ? परेशान लग रही हो| क्लास में कुछ हुआ क्या? आओ बैठ कर बातें करते हैं|” स्नेहा को चेयर पर बैठाते हुए मयंक ने कहा|

स्नेहा ने मयंक को नीता से हुई सारी बातें बताई फिर बोली “मुझे उस बच्चे की बहुत चिंता हो रही है हमें एक बार सोसाइटी के प्रेसिडेंट से बात करनी चाहिए|” नेहा ने बेचैन होते हुए कहा|

“ठीक है पर पहले तुम शांत हो जाओ| मैं अभी सोसाइटी -प्रेसिडेंट को फोन करके पूरी बात समझता हूँ | “

“बच्चा अभी भी पुलिस स्टेशन में ही है| कोई भी उसे रखने के लिए तैयार नहीं है |यदि आज शाम तक कोई उस बच्चे को अपने साथ नहीं ले जाएगा तो उसके माता-पिता के ठीक होकर आने तक पुलिस उसे बचपन (अनाथाश्रम) भेज देगी| सोसाइटी-प्रेसिडेंट से बात करने के बाद मयंक ने स्नेहा को बताया|

“पर हमें उसके रिश्तेदारों को समझाना चाहिए सब मिलकर समझाएंगे तो वें अवश्य मानेंगे| बच्चे को अनाथ आश्रम भेजना वह सही नहीं है|” स्नेहा ने भावुक होते हुए कहा|

“मैंने भी उनसे यही बात कही पर उन्होंने यह कहते हुए मना कर दिया कि जब पुलिस के समझाने से ही वे लोग नहीं समझ रहे तो हमसे क्या खाक समझेंगे| उन्होंने मुझे इंस्पेक्टर का नंबर दे दिया है और कहा है कि अब आगे से इस बारे में आपको जो भी बात करनी है इंस्पेक्टर से ही करें मुझसे नहीं| इंस्पेक्टर का नंबर दिखाते हुए मयंक ने स्नेहा से कहा|

तभी अंशुल की आवाज आई “मम्मी बहुत भूख लग रही है|”

“हां बेटा, अभी आई| लंच टेबल पर भी स्नेहा गुमसुम सी थी| मयंक ने उसे समझाते हुए कहा “अब छोड़ो भी उसे |कबतक उसके बारे में सोचती रहोगी|”

लेकिन मयंक की बातों को अनसुना कर अचानक स्नेहा बोल पड़ी “मयंक उस बच्चे को अपने घर ले आए?”

“तुम्हारा दिमाग तो नहीं खराब हो गया है| बावली हो गई हो क्या? यह संभव नहीं है| मयंक ने इनकार करते हुए कहा|

“क्यों? इसमें दिमाग खराब होने वाली क्या बात है? कोरोना उसके परिवार को हुआ है उसे नहीं| वह पूरी तरह स्वस्थ है| उसकी रिपोर्ट भी नेगेटिव आई है| हमें उसकी मदद करनी चाहिए अगर उसकी जगह अपना अंशुल होता तब भी आप यही कहते|” मयंक की आंखों में झांकते हुए स्नेहा ने पूछा|

कुछ देर सोचने के बाद मयंक ने कहा “तुम जो समझाना चाह रही हूं मैं समझ गया हूं टीचर जी| मैं अभी इंस्पेक्टर को फोन करके उस बच्चे को यहां बुला लेता हूँ| अपने मम्मी पापा से ठीक होने तक वो यहीं रहेगा|अब तो खुश हो जाओ|”मयंक ने फोन उठाते हुए कहा|

कुछ ही देर में वह बच्चा (वंश) उनके घर पहुंच गया| रात भर पुलिस स्टेशन में रहने के कारण वह काफी डरा हुआ था| स्नेहा ने पहले उसे गर्म डिटॉल पानी से नहलाया| फिर उसके सारे सामान को सैनिटाइज किया|

तब तक मयंक उसके लिए दूध ले आया| दूध पीते ही वह स्नेहा की गोद में सो गया| धीरे-धीरे वह उन सबसे घुलमिल गया| अंशुल के साथ बॉल खेलते,मयंक को घोड़ा बनाते और स्नेहा के आगे पीछे घूमते घूमते बीस दिन यूं ही गुजर गए |उसका पूरा परिवार अब स्वस्थ होकर घर आ चुका था पर अभी उन्हें कुछ दिन घर पर सेल्फ आइसोलेशन में रहना था| इसीलिए वे वंश को लेने नहीं आ सकते थे|स्नेहा ही वंश को लेकर उनके पास गई| वंश को इतने दिनों बाद देखते ही उसकी मां गीत फूट फूट कर रो पड़ी|

स्नेहा ने उसे शांत कराते हुए कहा “गीत चुप हो जाओ, बुरा समय बीत चुका है| अब तुम सब एकसाथ हो|”

“दीदी यह सब आपकी वजह से ही संभव हुआ है यदि आप वंश को नहीं संभालती तो पता नहीं उसका क्या होता?” स्नेहा के सामने हाथ जोड़ते हुए गीत ने कहा|

“जो बीत गया उसे भूलकर आगे बढ़ो| इन बातों में कुछ नहीं रखा” गीत के मुंह में लड्डू का टुकड़ा देते हुए स्नेहा ने प्यार से कहा|

“दीदी आप बहुत अच्छी हैं |काश! मैं भी आपके लिए कुछ कर पाती|”

“बिल्कुल कर सकती हो| मुझसे यह वादा करो कि यदि कभी किसी को तुम्हारी मदद की जरूरत होगी तो तुम उसकी मदद जरूर करोगी|” यह कहते हुए स्नेहा मुस्कुराते हुए अपने घर की ओर चल दी।

धन्यवाद

लेखिका- श्वेता अग्रवाल,

धनबाद झारखंड

कैटिगरी -लेखक /लेखिका बोनस प्रोग्राम (सितंबर माह-तृतीय कहानी)

शीर्षक-इंसानियत: कोई अपना सा

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