” आदित्य !” बाहर से घर में घुसी नीता अपने सामने का नज़ारा देख हैरत और गुस्से से चिल्ला पड़ी ।
” मम्मा …!!” मां को सामने देख आदित्य ने अपने नीचे दबोची नन्ही वसुधा को छोड़ा और भाग खड़ा हुआ ।
“रुक जाओ आदित्य !” नीता फिर चिल्लाई पर आदित्य तो तीर से छूटे कमान सा निकल गया । अब नीता का ध्यान वसुधा की तरफ गया । छह साल की बच्ची अर्धनग्न हालत में खून से लथपथ उसके सामने थे । नीता के होश उड़े हुए थे वो समझ नहीं पा रही थी उसने जो देखा वो सच था या भयानक सपना । पर अभी इंसानियत का तकाज़ा था वो वसुधा को संभाले । किसी तरह उसे चादर से कवर कर उसे गोद में उठा बाहर को भागी और उसकी गाड़ी सीधी अपनी सहेली तनु के अस्पताल पर जाकर रुकी ।
” नीता .. हमारा अनुमान बिल्कुल सही है । वसुधा के साथ जबरदस्ती हुई है ।” थोड़ी देर तक बच्ची की जांच पड़ताल करने के बाद तनु बाहर आ बोली ।
” क्या ..!” किसी हद तक सच्चाई जानती नीता फिर भी ये सच सहन न कर सकी और लड़खड़ा सी गई।
” संभालो खुद को नीता , मैं जानती हूं अपनी घरेलू सहायिका की बच्ची वसुधा से तुम्हे विशेष स्नेह है लेकिन अभी तुम्हे मजबूत होना होगा तभी अपराधी पकड़ा जाएगा । मुझे लगता है हमें पुलिस को खबर कर देनी चाहिए !” तनु उसे संभालती हुई बोली।
” ह… हां अपराधी का पकड़ा जाना जरूरी है । म..मुझे संजीव ( नीता के पति ) से बात करनी होगी तभी पुलिस को खबर करेंगे !” नीता बड़ी मुश्किल से अपनी रुलाई रोक बोली और फोन उठा बाहर को आ गई ।
” हेलो नीता क्या बात है बोलो मैं थोड़ा जल्दी में हूं ?” फोन उठते ही संजीव बोला जो एक वकील है ।
” वो ..संजीव वसुधा !!” लड़खड़ाती आवाज़ में नीता बोली।
” क्या वसुधा नीता कुछ काम की बात है तो बोलो वरना मुझे जरूरी काम है !” तनिक गुस्से में संजीव बोला।
” वसुधा के साथ जबरदस्ती हुई है वो अस्पताल में है !” नीता एक सांस में बोल गई।
” क्या… तुम्हे कहा था इन कामवालियों को ज्यादा मुंह मत लगाओ पर तुम हो कि वसुधा को अपनी बच्ची ही मानने लगी हो !” संजीव और ज्यादा गुस्से में बोला।
” संजीव छह साल की बच्ची है वो जिंदगी मौत से लड़ रही है । तुम जल्दी से तनु के अस्पताल आ जाओ !” नीता ने इतना बोल फोन काट दिया ।
” अजीब पागलपंती है अरे वो अस्पताल में है तो मेरा वहां क्या काम और इसको भी क्या जरूरत थी वहां जाने की । सोशल सर्विस करती है ठीक है लेकिन ये सब !” झुंझलाते हुए संजीव खुद से बड़बड़ाया और अपना काम अपने जूनियर को समझा अस्पताल के लिए निकला।
” संजीव वो वसुधा …!” संजीव को देखते ही नीता रोने सी लगी।
” शांत हो जाओ ये गरीबों के बच्चे सख्त जान होते है कुछ नहीं होगा उसे । वैसे तुमने कमला ( वसुधा की मां) को बता दिया ?” संजीव ने पूछा।
” संजीव थोड़ी तो इंसानियत दिखाओ मासूम बच्ची है वो जिंदगी मौत से लड़ रही। ऐसे में मेरी हिम्मत ही नहीं हुई कमला को बताने की उधर उसकी मां की मौत हुई है । मैने खुद से वसुधा को अपने पास रोका था और यहां ये हो गया ।” वसुधा रोते रोते ही बोली।
” इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं तो ऐसी बातें मत करो फिलहाल ये बताओ मुझे क्यों बुलाया है ?” संजीव बोला।
” तनु कह रही है ये पुलिस केस है !” नीता बोली ।
” हां तो वहीं खबर कर दे पुलिस को । वैसे भी हमारा इस केस से कोई संबंध तो है नहीं ।” संजीव बोला।
” संबंध है तभी तो उलझन में हूं !” नीता संजीव की आंखों में आंखे डाल बोली उसकी आंखों में डर , गुस्सा और दुख देख संजीव चौंक सा गया।
” क्या मतलब है तुम्हारा । अरे तुमने उसे अपने घर रख लिया तो क्या उसके साथ कुछ भी हो उससे हमारा संबंध हो गया । तुम उसकी मां को फोन करो वो अपने आप आके देखेगी तुम चलो फिर यहां से !” संजीव बोला।
” गलती यही हुई कि उसे अपने घर रख लिया । उसकी मां को भरोसा दिलाया था उसकी बेटी मेरे घर महफूज रहेगी पर … पर नहीं जानती थी मेरे ही घर में कोई राक्षस उसे दबोच कर उसकी अस्मत से खेल जाएगा । जरा सी देर को घर में छोड़ा था बस उसे सोचा था वृंदा ( कमला की जगह अभी जो काम कर रही ) घर पर है ही कोई डर नहीं पर !” इतना बोल नीता फिर सुबक पड़ी।
” हमारे घर में …पर हमारे घर में ऐसा कौन है ड्राइवर घर के अंदर आता ही नहीं , मैं घर में था नहीं तो बचा कौन …आदित्य और वो ऐसा कर ही नहीं सकता !” ये बोल संजीव ने अनजाने डर से नीता की तरफ देखा उसकी आंखों में देख संजीव को कुछ कुछ हकीकत का भान हो गया । पर फिर भी विश्वास नहीं हो रहा था उसने तुरंत आदित्य को फोन किया पर वहां से बार बार फोन काटा जाने लगा । अब संजीव भी डर सा गया।
” नहीं उठा रहा वो फोन और उठाएगा भी नहीं इतना उसे भी पता है उसने इस बार गलती नहीं गुनाह किया है !” नीता थकी आवाज में बोली।
” नहीं नीता ये झूठ है आदित्य ऐसा नहीं कर सकता तुम्हे कोई गलतफहमी हुई है !” संजीव अभी भी ये बात मानने को तैयार नहीं था ।
” हां मैं भी इसे झूठ मान लेती अगर सब कुछ अपनी आंखों से न देखा होता । काश ये झूठ होता पर नहीं हमारे आदित्य ने एक छह साल की बच्ची की जिंदगी बर्बाद कर दी ।” नीता दहाड़े मार कर रोती हुई बोली।
” ओह !!” संजीव के मुंह से केवल इतना निकला । अब विश्वास न करने की कोई वजह ही नहीं थी इसलिए अब वो भी शिथिल पड़ गया था।
” संजीव आप पुलिस को फोन कीजिए .. हमें वसुधा को न्याय दिलाना ही होगा !” अचानक नीता कुछ सोचते हुए बोली।
” पर नीता वो हमारा बेटा है ?” संजीव धीमे स्वर में बोला।
” वसुधा भी किसी की बेटी है वो भी छह साल की मासूम जिसे ये तक नहीं पता उसके साथ हुआ क्या है । वो तो सारा दिन आदित्य भैया आदित्य भैया कहती नहीं थकती थी पर आदित्य ने क्या किया। बिन पिता की बच्ची है वो क्या बीतेगी उसकी मां पर । वो तो अच्छा है भगवान ने हमें बेटी नहीं दी वरना तो आदित्य उसके साथ भी …!” इतना बोल नीता रुक गई उसके चेहरे पर नफरत उभर आई।
” नहीं नहीं नीता !” संजीव बस इतना बोला। नीता ने हिम्मत कर खुद ही पुलिस को फोन कर दिया।
” संजीव तुम बहुत बड़े वकील हो तुमने आज तक कोई केस नहीं हारा । आज तुम्हे ये केस भी लड़ना है किसी तमगे या पैसों के लिए नहीं इंसानियत के लिए ।” नीता फोन करने के बाद बोली।
” पर नीता वो हमारा इकलौता बेटा है !” संजीव दुखी स्वर में बोला।
” नहीं वो सिर्फ एक मुजरिम है इंसानियत का मुजरिम जिसे छह साल की बच्ची भी नहीं नज़र आई । आज उसे सजा न मिली तो कल को वो इससे भी बड़े गुनाह करेगा । आप दिलाएंगे न उसे सजा ?” नीता ने संजीव का हाथ पकड़ विनती सी की। एक मां के लिए ये फैसला आसान नहीं था पर मां होने से पहले वो एक औरत थी । संजीव बहुत देर तक बुत बना रहा । नीता बार बार उससे भी सवाल पूछती रही।
” ठीक है नीता आज तक सच्चाई की राह चला हूं आगे भी चलूंगा भले सामने मेरा बेटा ही क्यों ना हो !” संजीव हारे से शब्दों में बोला तब तक पुलिस आ गई उन्होंने डॉक्टर से पूछताछ की वसुधा की हालत का जायजा लिया फिर नीता से सारे घटना की जानकारी ली । नीता ने जो देखा वो बता दिया हालांकि ये सब बताते हुए वो रोई भी , उसे दुख भी हुआ और गुस्सा भी आया । इंस्पेक्टर के कहने पर नीता ने कमला को भी फोन किया और जल्द से जल्द लौटने को बोला । हालांकि उसने हकीकत नहीं बताई बस इतना कहा वसुधा खेलते हुए सीढ़ियों से गिर गई।
कमला अगले दिन वापिस आई तो नीता ने हाथ जोड़ते हुए भरी आंखों से उसे सब सच बता उससे माफ़ी भी मांगी।
” मुझे माफ कर दे कमला मै वसुधा की हिफाजत नहीं कर सकी दुनिया की नजर से महफूज रखा उसे पर अपने घर में ही न रख सकी माफ कर दे मुझे !” नीता रोते रोते बोली। इंस्पेक्टर भी कमला का बयान ले चुका था हालांकि कमला सदमे की हालत में थी उसने नीता को कोई जवाब नहीं दिया और दरवाजे के शीशे से अपनी बेटी को निहारने लगी जो अंदर बेजान पड़ी थी । कमला की आंख से आंसुओं की धार निकल पड़ी । दो महीने की थी वसुधा जब गांव में खेत में काम करते सांप काटने से उसके पिता का देहांत हो गया था । कमला की तो दुनिया उजड़ गई थी पर नन्ही वसुधा ने उसे जीने की वजह दी थी । पहले ससुराल से निकाली गई फिर मायके से भी भाई भाभी के हाथों अपमानित हो किसी सहेली के कहने पर शहर आई थी और यहां घरों में काम कर खुद का और बेटी का पेट पाल रही थी । अभी चार साल पहले नीता के घर काम पर लगी थी । नीता ने उसे छत पर बनी बरसाती रहने को दे दी थी । कमला पूरी लगन से काम करती थी और बेटी की चाह रखने वाली नीता को तो वसुधा मानो एक गुड़िया सी लगी । वसुधा थी भी बहुत प्यारी उसे बड़ी मां बोलती थी और आदित्य को भैया । संजीव के चेहरे की सख्ती से वो डरती थी इसलिए उसे देखते ही छिप जाती थी । कमला भी यहां रह खुश थी यहां सिर पर छत भी मिल गई थी और सुरक्षित माहौल भी पर आज वही घर उसकी बेटी के लिए अभिशाप सा बन गया । कमला को समझ नहीं आ रहा था वो क्या करे कोई उसका अपना था भी तो भी जो साथ देता।
अगले दिन पुलिस ने आदित्य को पकड़ लिया वो उसे पहले अस्पताल ही लेकर आए । बेड़ियों में जकड़े आदित्य को देख कमला को गुस्सा भी आया और आश्चर्य भी हुआ । मतलब दीदी ने अपने बेटे के खिलाफ बयान दे दिया ।
” मम्मा मुझे माफ कर दो मुझसे गलती हो गई प्लीज़ मुझे बचा लो ।” आदित्य मां के पैरों में गिर रोता हुआ बोला ।
” गलती नहीं गुनाह हुआ है तुझसे और गुनाह की माफी नहीं सजा होती है । शर्म नहीं आई तुझे उस मासूम बच्ची के साथ ये करते .. छी… आज तूने मेरी गोद को कलंकित कर दिया !” ये बोलते हुए उसने आदित्य को चांटा मारा और फिर उसकी तरफ से मुंह फेर लिया । संजीव को अपने इकलौते बेटे का दुख था पर वो ये भी जनता था आदित्य को सजा ना मिली तो वो फिर ऐसी गलती करेगा । वैसे भी नारी उत्थान के लिए कार्य करती नीता उसे यूंही छोड़ेगी भी नहीं सजा तो दिला के ही मानेगी ! पुलिस आदित्य को ले गई । तो नीता वही जमीन पर बैठ रोने लगी आखिर मां थी वो ।
कमला ने जब उसकी ऐसी हालत देखी तो उसके पास आई ।
” दीदी आप महान है , आपने मेरी बेटी को इंसाफ दिलाने को अपने बेटे के खिलाफ गवाही दे दी !”
” कमला मैं महान नहीं हूं मैं तो ऐसे बेटे की मां हूं जो इतना बड़ा गुनाह कर बैठा । बाहर नारी उत्थान की इतनी बड़ी बड़ी बात करती हूं मैं और अपने घर में ये गुनाह न रोक सकी आज मेरी परवरिश हार गई । मैं अच्छी मां नहीं हूं … !” रोते रोते नीता बोली।
” दीदी मैं जानती हूं आप एक अच्छी इंसान ही नहीं एक अच्छी मां भी है तभी अपने बेटे के गुनाह पर पर्दा नहीं डाला । वरना तो पैसे वाले लोगों में इंसानियत तब मर जाती है जब बात अपने पर आती है । गरीबों के लिए वो कुछ नहीं करते ऐसे में !” कमला रोते हुए बोली और फिर नीता को उठा कुर्सी पर बैठाया और पानी पिलाया।
दो माएं , दोनों अपनी संतान के लिए दुखी पर एक इसलिए दुखी क्योंकि उसकी बच्ची के साथ गलत हुआ और दूसरी के बच्चे ने गलत किया पर दोनों एक दूसरे का सहारा सी बनी हुई थी ।
उधर आदित्य का केस चला इधर वसुधा धीरे धीरे ठीक होने लगी । तन के घाव भरने लगे उसके पर नीता जानती थी मन के घाव भरने के समय लगेगा । अदालत में भी नीता ने आदित्य के खिलाफ गवाही दी । सब सुबूत और गवाह की बिनाह पर आदित्य को चौदह साल की सजा हुई । जब उसे सजा हुई तो नीता का मन जार जाए रो पड़ा । संजीव ने किसी तरह उसे संभाला।
उधर नीता ने वसुधा की काउंसलिंग शुरू करा दी , धीरे धीरे बच्ची सामान्य होने लगी । नीता और संजीव ने उसकी सारी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली । आज वसुधा फिर से हंसते हुए स्कूल जा रही है । कमला खुश है कि उसकी बच्ची इस हादसे से ऊबर गई वो नीता और संजीव का बार बार शुक्रिया अदा करती है जिन्होंने निज स्वार्थ से ऊपर उठ इंसानियत की मिसाल पेश की थी ।
हालांकि नीता और संजीव अपने बेटे के लिए दुखी थे पर उन्हें ये तसल्ली थी कि उन्होंने मासूम की मुस्कान वापिस लौटा दी । वसुधा को स्कूल छोड़ दोनों अपने बेटे से मिलने चले गए जो जेल में रह अपने गुनाह का प्रायश्चित करते हुए एक बेहतर इंसान बनने की कोशिश कर रहा है ।
धन्यवाद
आपकी दोस्त
संगीता अग्रवाल