इंसानियत – बीना शुक्ला अवस्थी

अक्सर कहा जाता है कि दुनिया बहुत खराब है, हर कदम पर धोखा देने वाले मिलते हैं। इसलिये किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिये लेकिन इंसानियत अब भी जिन्दा है और जब हमें कोई ऐसा व्यक्ति मिल जाता है तो हम मानने पर विवश हो जाते हैं कि वह व्यक्ति हमारे लिये भगवान बनकर आया था। इसीलिये कहते हैं पता नहीं किस वेश में और किस समय भगवान मिल जाये।

बात उस समय की है जब मेरी बेटी आराध्या अमेटी युनिवर्सिटी, लखनऊ से आनर्स कर रही थी। दीवाली के बाद बेटी और उसकी सहेली ब्रह्माणी वापस लौट रही थी। हम लोगों ने  बच्चों को बस में बैठा दिया। चूॅकि बच्चे दीवाली बाद जा रहे थे तो उनके साथ खाने पीने के सामान के साथ गरम कपड़े थे। इसलिए सामान अधिक हो गया। रविवार का दिन था।

दोनों लड़कियों में से ब्रह्माणी खिड़की की तरफ बैठ गई। बेख्याली ने उसने अपना हाथ खिड़की पर रख लिया।

लखनऊ पहुॅचने के थोड़ी देर पहले अचानक बस की बगल से एक ट्रक निकला और खिड़की पर रखे ब्रह्माणी के हाथ पर टक्कर मारते हुये निकल गया।

ब्रह्माणी दर्द और घबराहट से बेहोश होने लगी। उस समय कैब का इतना चलन नहीं था। अब आराध्या के सामने समस्या थी कि वह दर्द से बेहाल अचेत होती सहेली को सम्हाले या दोनों का सामान को। खैर किसी तरह खुद ने ब्रह्माणी को तथा  दूसरे लोगों की सहायता से सामान उतारा।

अब समस्या थी कि रविवार होने के कारण शाम को अधिकतर डाक्टर छुट्टी रखते हैं। हास्टल पहुॅचने के पहले ब्रह्माणी को डाक्टर को दिखाना जरूरी था। बस स्टॉप से उतरकर थोड़ा आगे जाने पर ही आटो या टैक्सी मिल सकती थी। अब दोनों का सामान और घायल सहेली को आटो या टैक्सी स्टैण्ड तक अकेले कैसे ले जाये? दर्द के कारण ब्रह्माणी को चक्कर आ रहे थे, वह खड़ी भी नहीं हो पा रही थी। हाथ सूजकर लटक गया था।

तभी उस बस से एक लड़का उतरकर इन दोनों के पास आ गया, जिसे शायद सीतापुर या उससे कहीं और आगे जाना था। उसने इन लोगों को वही रुकने को कहा और  बस स्टॉप के बाहर से जाकर आटो लाया। अब चूॅकि बाहर भेजते समय हम लोग लड़कियों को बहुत सतर्क रहने को कहते हैं तो दोनों  अन्दर से डर के कारण उस अनजान लड़के पर विश्वास भी नहीं कर पा रही थीं।

आटो में बैठने के बाद मेरी बेटी ने उसे धन्यवाद देते हुये जाने को कहा लेकिन उसने मना कर दिया और दोनों के साथ अस्पताल तक गया जहॉ पता चला कि ब्रह्माणी की कोहनी की हड्डी टूट गई है। उसी समय प्लास्टर चढ जाने और दवाइयॉ मिल जाने के कारण ब्रह्माणी को आराम मिल गया। 

लड़कियों ने एक बार फिर उसे धन्यवाद सहित वापस जाने को कहा लेकिन वह दोनों को हास्टल तक छोड़ने गया और सबसे बड़ी बात उसने दोनों लड़कियों से न तो फोन नम्बर मॉगा और न ही उसके बाद ही किसी सोशल मीडिया के माध्यम से सम्पर्क करने का प्रयत्न किया। यहॉ तक उसने दोनों लड़कियों का नाम तक नहीं पूॅछा।

चूॅकि हम लोग रास्ते में ही सम्पर्क करके पूॅछते रहते थे कि कहॉ तक पहुॅच गये इसलिये चोंट लगते ही मेरी बेटी ने अपना और ब्रह्माणी का बन्द कर दिया था क्योंकि सुनकर हम लोग परेशान होंगे।

बाद में आराध्या ने मुझसे कहा – ”  आप सही कहती हो कि कुछ बुरे लोगों के कारण सारी दुनिया पर अविश्वास नहीं किया जा सकता। इंसानियत हमेशा जिन्दा रहेगी। पता नहीं किस वेश में भगवान मिल जायें।  इंसानियत के नाते हम लोगों के कारण अपनी यात्रा रोककर हमारी सहायता करने वाला वह लड़का सचमुच हम लोगों के लिये भगवान बनकर ही आया था हालांकि हम लोग उस पर विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि किस मतलब के लिये यह इतनी सहायता कर रहा है?”

बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर

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