घर से बाहर निकलने के बाद हर सिग्नल पर मांगने वालों की कतार से मन खट्टा हो
जाता है। कभी कभी इतना गुस्सा आता है कि इन पर जोर से चिल्लाने का मन होता है
लेकिन ये सोचकर कि इनका तो कुछ नहीं होगा खुद का ही तमाशा बन जायेगा चुप
ही रह जाते है।
आज लगभग दो बजे दोपहर को परेशानी की हालत में घर से निकली सिग्नल आते ही
फिर वही हुजूम। इतने में फोन बज उठा, फोन रिसीव करके बात कर ही रहे थे कि एक
किन्नर मांगने के लिये आ गई। मैने बहुत ही रूखा सा जवाब दिया “सॅारी!” और फिर
फोन पर लग गई।
उन्होने मुझसे बोला “आप सॅारी क्यों बोल रही हो?” तो मैने जवाब दिया कि “मेरे
पास चेंज नहीं है” उन्होंने कहा “दीदी पहले तो अपना फोन अन्दर रखो आप आटो में
हो कोई अगर छीन कर ले गया तो आप किसके पीछे भागोगे। दूसरी बात कि कोई
बात नहीं अगर आपके पास चेंज नहीं है लेकिन आप सॅारी तो मत बोलो क्योंकि आपने
कोई गलती तो की नहीं है जो आप सॅारी बोल रही है।” मै इतनी परेशान थी कि और
कोई बात न करते हुये उनकी तरफ अपना हाथ बढा दिया जिसमें मैंने आटो वाले को
देने के लिये पैसे पकड़ रखे थे। मेरे हाथ में आटो वाले को देने के लिये जो रूपये थे वह
उनकी तरफ बढा दिया। रूपया लेकर वह मेरा चेहरा बहुत ही ध्यान से देखने लगी
क्योंकि आमतौर पर सिग्नल पर मांगने वालों को कोई भी व्यक्ति बडा नोट नहीं
पकड़ाता।
तब तक मुझे अपनी गलती का एहसास हो चुका था लेकिन अब कुछ नहीं हो सकता
था शायद वह मेरी मनोदशा समझ चुकी थी इसलिये उन्होंने उसमें से दस रूपये लेकर
बाकी रूपये मुझे वापिस कर दिये। अब मैने अपनी सोच को थोडा लगाम दिया और
उनकी बात पर ध्यान दिया। वह ठीक ही तो बोल रही थी कि मैने कोई गलती तो की
नहीं फिर सॅारी क्यों? मैने अपने आप को संयत किया और वहीं पर आटो से उतर गई।
उनके काम का वक्त था लेकिन मैं उनसे बात करना चाहती थी मैने उनसे कहा “आपकी
बात सुनकर अच्छा लगा क्या आप दस मिनट अपना समय दे सकती हैं।” वह हसीं और
बोलीं “हमसे कोई अपाइंटमेंट नहीं लेता बताइये क्या बात है?” मैने उनसे कहा “मैने
आज आपसे बहुत महत्वपूर्ण बात सीखी है इसलिये आपसे बात करना चाहती थी।
अगर आप सहज हो तो कुछ अपने बारे में बताइये।
उन्होंने कहा “वैसे बताने लायक मेरे बारे में कुछ नहीं है।” “मैने कहा कोई बात नहीं
सिर्फ कुछ पलों में यह कुछ नहीं ही बता दीजिये।” उन्होने जो बताया वह एक सभ्य
समाज को दिन में तारे दिखाने के लिये बहुत है। उन्होंने बताया कि “वह अपने मां बाप
की इकलौती संतान थी जन्म के कुछ समय बाद ही पिता नहीं रहे। मां को पता था कि
मै किन्नर हूं फिर भी वह अपनी सार्मथ्य के अनुसार मुझे पढा लिखा रही थी दो साल
पहले जब मैने दसवीं की परीक्षा पास की उसके बाद मां भी नहीं रही। खानदान वाले
पैसों के अभाव में एक किन्नर को किस तरह पालते। एक दिन मै घर से भाग आई मेरे
पास मेरी पहचान के लिये सिर्फ दसवीं का प्रमाण पत्र है। यहां से दूर किराये का एक
कमरा लेकर रहती हूं किसी को मेरी असलियत नहीं पता है। यह देखा था कि सरकार
की ओर से किन्न्ररों को बहुत सहूलतें मिलती हैं। इसलिये लगभग एक साल पहले
किन्नर के लिये परिचय पत्र बनने के लिये अप्लाई किया था जो अभी तक नहीं बना है
क्यों कि मेरे पास आधार कार्ड या कोई आवास प्रमाण पत्र नहीं है मकान मालिक को
पता चल जायेगा कि मै किन्नर हूं तो वह घर से निकाल देंगे बिना आधार के मोबाइल
सिम भी नहीं ले सकती क्योंकि अब तो ज्यादातर चीजे आनलाइन ओटीपी के माध्यम
से होती है। इस साल बारहवीं की परीक्षा दी है नीट की परीक्षा देने का विचार है
लेकिन यह तभी हो पायेगा जब मेरा परिचय पत्र बनेगा। वर्ना मै भी भीख मांगने की
सामाजिक बीमारी का शिकार हो जाऊंगी।”
मुझे लगा कि वह मुझे बहला रही है मैने कहा “आजकल कितनी आसानी से परिचय
पत्र बन जाते हैं मै कैसे मानूं कि एक साल पहले किये गये रजिस्ट्रेशन अभी भी लम्बित
है।” मेरे शक को देखते हुये उन्होने कहा कि “आप पढी लिखी हो मेरी बातों का भरोसा
न हो तो एन पी टी पी की रिपोर्ट पढ लेना बोलते हुये वहां से चली गई।” उनकी
बातों ने मुझे दिन में तारे दिखा दिये।
नोट. यह घटना सफदर जंग एन्क्लेव से लाजपत नगर नई दिल्ली के बीच मिले एक
किन्नर से हुई बात चीत पर आधारित है।
डा. इरफाना बेगम
नई दिल्ली
#दिन में तारे दिखाई देना”