सुधीर को आए पूरे दस दिन हो गए। जिस कार्य के लिए यहां आया था वह भी एक हफ्ता पहले ही पूरा हो गया।यह बात स्वयं सुधीर ने ही बतायी थी। जिस उत्साह के साथ पहले दिन भास्कर ने अपने प्रिय मित्र का स्वागत किया था वह उत्साह अब ठंढा पड़ चुका था। सुनीता के चेहरे पर भी तनाव स्पष्ट झलकने लगा।
करोड़ों का बिजनेस होते हुए भी वह इस चार कमरों वाले किराये के फ्लैट में मित्र के यहां तीन दिन के लिए ठहरने आया था।
भास्कर और सुनीता ने भी उसकी आत्मीयता को हृदय से सराहा ।
घूमने और पिकनिक के प्रोग्राम बनते, तरह -तरह के व्यंजन बनते।देर रात तक बीते दिनों की बातों के साथ चाय -काफी के दौर चलते रहते। किन्तु जब दस दिन से ऊपर हो गया तो बजट की लड़खड़ाहट और सुनीता की थकान से भास्कर कुछ चिन्तित हो उठा। वह भी अब पहले जैसा सत्कार नही कर पा रही थी ।
सुधीर! इतने दिन हो गए भाभी तो तुम्हें काफी मिस कर रही होंगी? आखिरकार भास्कर ने कह ही दिया ।मिस तो मैं भी कर रहा हूं,मित्र! इसीलिए तुम्हारी भाभी को भी यहीं बुला ले रहा हूं। आखिर तुम मेरे इकलौते मित्र हो,अब भी तुम्हारे अलावा मेरा कोई दोस्त नहीं और दो दिन बाद तुम्हारे शादी की पहली सालगिरह है।
मैं लंदन में बैठा व्यापार मंडल की आवश्यक मीटिंग पर मित्रता को
परे ढकेलते हुए तुम्हारी शादी में न पहुंच पाने का दुःख पूरे एक साल सीने से चिपकाए रहा। इस बार सारी खुशियां साथ -साथ शेयर करेंगे।एक रहस्यमयी मुस्कराहट के साथ उसने भास्कर की पीठ थपथपाई।
पर भास्कर यहां कहां था….. मित्र की भावुकता उसके लिए बहुत भारी पड़ने वाली थी।एक पिक्चर,दो प्लेट बाहर का भोजन और एक अदद अच्छी सी साड़ी में चुपचाप शादी की सालगिरह मना लेने की मितव्ययी योजना धराशाई हो गयी। सुनीता ने चाय के लिए टोका तो वह सचेत हुआ। सुधीर उन्हें असमंजस में छोड़ बाहर निकल गया।रोज की तरह न तो उसने अपने लौटने का समय बताया और न यही कहा भास्कर आओ तुम्हें तुम्हारे आफिस छोड़ता जाऊंगा। वे दोनों एक दूसरे की
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आंखों में इस अचानक उत्पन हुए खर्चे का हिसाब लगाते हुए बेमन से चाय घूंटते रहे।
रात को सुधीर लौटा तो बड़ी संजीदगी से बोला भास्कर अपनी शादी की सालगिरह पर इस बार तुम कुछ नहीं करोगे। ये
पार्टी मेरे तरफ से , समझा तूं! हां,” कल एयरपोर्ट पर तुम अपनी भाभी को रिसीव करने जाओगे,ओ.के….और वह गुनगुनाता हुआ बाथरूम में घुस गया। नहाकर बाहर आया तो सुनीता खाना निकाल चुकी थी।एक ही प्लेट?आप लोग?? सुधीर के प्रश्न पर सुनीता सकुचाते हुए बोली, जी…दोपहर में आपका इन्तजार किया
तो इस समय हम लोग खा लिए। अच्छा -अच्छा कोई बात नहीं।
वह खाना खाकर बड़ी सहजता से गुडनाईट करता हुआ सोने चला गया।
भास्कर!”तुम्हारा स्कूटर ले जा रहा हूं, गाड़ी लेकर तुम्हें एयरपोर्ट जाना है, कहता हुआ अगले दिन वह जल्दी ही बाहर निकल गया। एयरपोर्ट पर भास्कर मणि को पहचानने का प्रयास कर ही रहा था कि मणि स्वयं बोल पड़ी,”हैलो भास्कर! मैं मणि, तुम्हारी भाभी । मैंने तुम्हें सिर्फ अपनी शादी में देखा था और तुमने भी मुझे तभी देखा था लेकिन मुझे याद रहा और तुम.. …? अभिभूत हो उठा भास्कर उसकी आत्मीयता से।शाम तक मणि और सुनीता ऐसे घुल-मिल गयी जैसे वर्षों पुरानी जान -पहचान हो। सुधीर उस रात पहली बार घर नहीं लौटा अलबत्ता मणि से फोन पर काफी देर तक बात करता रहा।पता चला कल कोई आवश्यक मीटिंग है, वह पार्टी में नहीं आ पाएगा। सुनीता
और भास्कर कुढ़ कर रह गए।मन ही मन सुधीर को कोसता रहा
वह, क्या जरूरत थी मणि भाभी को बुलाने की… हुंह मेरे साथ खुशियां शेयर करने के लिए रुका था … अच्छा बहाना है।जनाब की मीटिंग थी… इसलिए रुका था। सुधीर!”तुझे मैं खूब जानता हूं, कितना आराम तलब है तूं …… दिल्ली से चेन्नई बार -बार का सफर तूं झेलना नहीं चाहता था,बस इसीलिए रुका था। मणि उसके मन में उठते भावों से अनभिज्ञ पूर्ववत प्रसन्न थी। जैसे सुधीर का न आना कोई मायने नहीं रखता।
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छोड़ो भी सुधीर को… मैं हूं न? उन्होंने मुझे सब बता दिया है कि हमें कहां जाना है…. क्या करना है…नो टेंशन भास्कर,”चलो
गाड़ी में बैठो दोनों , बस । दिल्ली मेरे लिए अपरिचित नहीं है, कालेज की पढ़ाई मैंने यहीं से पूरी की है।सुनीता और भास्कर
अनमने से पीछे बैठ गये।
क्या देख रहे हो भास्कर?”रिबन काटो और गृह- प्रवेश करो …. एक सजे -सजाये बंगले के सामने दोनों को चौंकाते हुए मणि बोली।, उसके दोनों तरफ मंत्रोच्चारण .. पुष्प वर्षा और अक्षत पड़ रहे थे।एक बालिका उसके सामने थाल में कैंची, कुमकुम लिए खड़ी थी। कौन किया यह सब? सुनीता भी हैरान थी।रिबन काट कर वह बंगले के अन्दर आया।हवन, धूपबत्ती से सुवासित बंगला अन्दर और खूबसूरत लग रहा था।वे मंत्र मुग्ध मणि के पीछे -पीछे बड़े से हाल में आये।कमरा सुरुचिपूर्ण सजावट से फूलों का बागीचा लग रहा था।
बड़ी सी सजी मेज पर खूबसूरत गुलाबों की दो मालाएं रखी थीं और सामने खड़ा था स्वागत में उसका प्रिय मित्र सुधीर! उसके अधरों पर वही रहस्यमयी मुस्कराहट थी। भास्कर! शादी की सालगिरह मुबारक हो और अपने मित्र की तरफ से यह छोटा सा बंगला स्वीकार करो।वह कुछ बोल पाता इससे पहले बगल के कमरों से चिर-परिचित कालेज के पुराने चेहरे निकल कर आर्केस्ट्रा की धुन पर थिरकने लगे और सामने से पिता जी ने मां का हाथ थामे आकर दोनों को गले से लगा लिया….. पिता….. जो कि पुत्र के प्रेम विवाह के कारण उनसे रिश्ता तोड़ चुके थे।
एक साथ इतनी सारी खुशियां!… मणि और सुधीर ने
दोनों के हाथों में माला पकड़ाया…. आर्केस्ट्रा की धुन कुछ क्षण को
रुकी… मालाएं गले में पड़ीं…. तालियों की गड़गड़ाहट के साथ धुन पुनः शुरू हो गई। भास्कर की निगाहें सुधीर से मिलीं…उसका चेहरा खुशी से खिला जा रहा था, रोम रोम अपने इकलौते मित्र की
खुशियां शेयर कर रहा था। वह दौड़ कर मित्र से लिपट गया।
सरला पांडे