स्नेहा और राजीव सुबह पूजा-पाठ करके चाय नाश्ता करने बैठ जाते हैं। अचानक उनको याद आता हैं की, मां जीने कल रात से कुछ खाया पिया नहीं हैं। अगर जाग गई हों तो, उन्हें भी चाय नाश्ता के लिए बुला लाते हैं।
“राजीव तुम चाय नाश्ता करो, में मां जी अगर जाग गई हों तो ले आती हूं।” ऐसा राजीव को कह कर स्नेहा मां जी के कमरे की ओर बढ़ती हैं।
कमरे से स्नेह की चीख सुनाई देती हैं। “मां जी… राजीव.. राजीव…”
राजीव भाग कर मां जी के कमरे पहुंचता हैं। राजीव और स्नेहा मां जी को ठठोल के उठाने की कोशिश करते हैं। मगर मृत मां जी क्या प्रतिक्रिया दे सकती थी!
फिर भी स्नेहा और राजीव मां जी को हॉस्पिटल ले जाते हैं। वहा डॉक्टर जांच करके कहते हैं की, उनकी मौत रात को ही हार्ट अटैक से हों गई थी। स्नेहा और राजीव रोने लगते हैं!
“आओ डेथ सर्टिफिकेट के लिए ज़रूरी फॉर्मेलिटी पूरी कर लेते हैं।” ऐसा कह कर डॉक्टर स्नेहा और राजीव को आश्वासन देते हैं।
डेथ सर्टिफिकेट के लिए हॉस्पिटल में डॉक्टर फार्म भरते हैं।
“मां जी का नाम क्या हैं?”
“जी शारदा जी,” राजीव कहेता हैं।
“मां जी की उम्र कितनी थी?”
“जी पता नहीं।” राजीवने प्रत्युत्तर दिया।
“मां जी के पति का नाम क्या हैं?”
“जी पता नहीं।” राजीवने प्रत्युत्तर दिया।
डॉक्टर राजीव के प्रत्युत्तर से आश्चर्यचकित हों कर राजीव और स्नेहा की ओर देखते हैं।
“क्या आपको अपने पिता का नाम नहीं मालूम?”
“डॉक्टर साहब दरअसल यह हम दोनों की संगी मां नहीं हैं।” राजीवने डॉक्टर को बताया।
“तो फिर यह कौन हैं? और आपके साथ क्यों रहें रही थी?” डॉक्टर की उत्सुकता बढ़ रही थी जानने के लिए।
“यह हमें एक साल पहले नंदी के किनारे बेहोश हालात में मिली थी। हमने निकट जा कर उन्हें छू कर देखा तो वह बहुत बीमार थी। और स्नेहा अकसर वृद्धाश्रम जाती थी, बुजुर्गो की मदद के लिए वहा मां जी से मिलते जुलते पहचान हों गई थी। ईस लिए हम उन्हें हॉस्पिटल में ले गए।
कुछ दिनों में तबियत में सुधारा होते ही हमनें पुछा आपकी ऐसी हालात कैसे हुई। तब मां जी ने बताया की उनको वृद्धाश्रम से निकाल दिया था। दो दिन तक भूखी प्यासी भटकती रही थी। भटकते भटकते मुझे नंदी देखी और पानी पीकर वहा ही चक्कर खा कर गिर पड़ी। आज़ जब होश आया तो आपके सामने बिस्तर लेती हुईं हूं।”
बाद में हम वृद्धाश्रम मे जा कर तपास की तो, पता चला की वह हमेशा सत्य बोलती थी। जुठ का साथ कभी नहीं देती थी। प्रामाणिकता, नियमों, अनुशासन को खूब पालन करती थी।
जिसके कारण उनकी किसी से नहीं बनती थी। ऐसे में उनके जिस्म में छोटा सा सफ़ेद दाग देखकर सबने छूत की बीमारी कह कर मार पीट करके निकाल दिया था। हालांकि यह जूठ था।
हॉस्पिटल से मां जी को डिस्चार्ज कर रहें थे, तो मां जी को ऐसी हालात में भटकने के लिए छोड़ देने को हमारा मन नहीं हुआ। हमनें मां जी से कहा आप हमारे घर चलिए। मगर मां जी अपने बच्चो की करतूतों और त्रास से इतनी तंग आ गई थी की, घर के नाम से और मां बेटे के रिश्ते से नफ़रत करने लगीं थी।
मगर स्नेहाने उनको समझाया “हम आपका पूरा ख्याल रखेंगे। आप जैसे जीना चाहें जी सकती हो। बस आप हमारे साथ चलो। स्नेहाने मां जी से कहा क्या मां जी में आपकी बेटी जैसी नहीं हूं?” और उनके पैरों में गिर गई।
मां जी की आंखे भीनी हो गई। हमारे साथ आने को तैयार हों गई। मगर शर्त रखी की “में अपना काम खुद करूंगी। अगर मुझे अच्छा नहीं लगा तो निकल जाऊंगी।”
हमने वृद्धाश्रम संचालक मंडल की विरुद्ध पुलिस कंप्लेंट कर को कहा, मगर मंजीने साफ़ मना कर दिया। फिर हमनें मांजी की बात मान ली।
वैसे वोह हमारे घर आ गई। धीरे धीरे हमारे साथ घुल मिल गई। हम तो उन्हें अपनी संगी मां की तरह प्रेम करने लगें थे। और मांजी भी हमें बेटो की तरह प्रेम करने लगीं थी। ऐसे इक साल गुजर गया। पिछले सप्ताह से उनकी तबियत ठीक नहीं थी तो, डॉक्टर को दिखाया और सुधार भी आ चुका था। मगर कल दोपहर से मांजीने कहा मुझे अकेला छोड़ दो मुझे आराम कराना हैं। और आज़ सुबह स्नेहा और राजीव डॉक्टर के सामने फूट-फूट कर रोने लगते हैं….
सेल्वीन गोहेल (Male)
रतनपुर (खेडा)
गुजरात
#मां जी में आपकी बेटी जैसी हूं