बेटी और बहु – एम पी सिंह

आशा की शादी अनिल के साथ हुई जो दिल्ली मे ही रहता था और वहीं जॉब करता था. अनिल काफ़ी समझदार और सुलझा हुआ इंसान था. अनिल की बड़ी बहन रीमा की शादी भी सरोजनी नगर, दिल्ली में रहने वाले कारोबारी रमेश से हुई थी. रीमा जरा जिद्दी और कामचोर किस्म की लड़की थी. रमेश कारोबार के सिलसिले मे अक्सर टूर पर जाता रहता, रमेश के टूर पर जाते ही रीमा अकेलेपन का हवाला देकर अपनी माँ के यहाँ चली आती. रीमा भाई के घर आकर कुछ काम नहीं करती बस आशा पर हुक्म चलाती और उसके हर काम मे गलतियां निकलती. माँ रीमा को बहुत समझाती पर वो अपनी आदत से बाज नहीं आती. अनिल सब समझता था और दीदी की इज्जत करता था इसलिए कुछ नहीं बोलता था. अपनी बहन को सबक सिखाने के लिए, अनिल ने आशा से बात की और बताया की अगली बार जब रीमा आएगी, तो मै तुम्हे तुम्हारी मम्मी के घर छोड़ आऊंगा, अगली बार जब रीमा माँ के घर आई तो अगले दिन अनिल माँ से बोला, आशा बहुत दिन से मायके जाने का बोल रही है, में आशा हो उसकी माँ के पास छोड़ आता हूँ, 2-4 दिन माँ से मिलकर लोट आएगी, तब तक रीमा आपका ख्याल रख लेगी. रीमा के न चाहते हुए भी माँ ने जाने की इजाजत दें दी. अनिल और आशा के जाते ही माँ ने रीमा को खाना बनाने के लिए बोल दिया. खाना बनाने के नाम पर रीमा को बुखार आ गया. जैसे तैसे काम खत्म कर, माँ को खाना खिला कर रीमा अपने कमरे मे चली गई. अगले दिन अनिल के ऑफिस जाते ही, रीमा माँ से बोली, माँ, मुझे जाना होगा, रमेश का फोन आया था कि काम नहीं हुआ, इसलिए आज रात को वापस आ रहा है. माँ ने अनिल को फोन पर सब बता दिया, और बोला, ऑफिस से आते हुए आशा को अपनी ससुराल से लेते आना. शाम को अनिल ऑफिस से आते हुए आशा को लेकर घर पहुंच तो रीमा जा चुकी थी.

कुछ दिन बाद रीमा फिर माँ के यहाँ आई तो आशा भी मायके चली गई. इस बार जब आशा मायके गई तो माँ ने पूछ लिया, इस बार बहुत जल्दी चक्कर लगाया और खुश भी लग  रही हो, क्या बात है?  माँ के पूछने पर उसने रीमा के बार बार घर आने, और खुद अपने घर आने कि सारी कहानी सुना दी. आशा कि बातें सुनकर माँ कुछ बोली नहीं पर सोच में पड़ गई. दो दिन बाद जब रीमा अपने पति के पास चली गई, तो अनिल आशा को लेने आ गया. खाना खाने के बाद, आशा कि माँ बोली, बेटा मुझे आशा और तुमसे अकेले मे कुछ जरूरी बात करनी है, अंदर आ जाओ. अंदर आकर आशा कि माँ बोली, बेटा, मुझे पता है कि रीमा बार बार घर आती है और आशा परेशान हो कर यहाँ चली आती है. बेटा, लड़की अपनी  माँ / भाई के घर नहीं जाएगी तो कहाँ जाएगी? आशा, अब ससुराल ही तुम्हारा अपना घर है, वहाँ आने वाला हर व्यक्ति तुम्हारा मेहमान है, मेहमान को घर पर छोड़ कर तुम्हारा इस तरह चले आना क्या शोभा देता है? दामाद जी, ताज्जुब है कि तुम भी इसमें आशा का साथ दें रहे हो? तुम्हारी माताजी क्या सोचती होंगी, कि मेरी बेटी आने पर मेरी बहु अपनी जिम्मेदारी से मुँह फेर कर चली जाती ही. और आशा, जैसे रीमा के आने पर तुम यहाँ चली आती हो, अगर वैसे ही तुम्हारे आने पर, तुम्हारी भाभी भी अपने मायके चली जाये तो तुम्हे कैसा लगेगा ? बेटियाँ तो मायके में बस आराम ही करती है, तुम अपने आप को ही देख लो, जब से आई हो क्या काम किया है. बेटा, तुम्हारे न रहने से घर का सारा काम तुम्हारी सासु माँ को ही करना पड़ेगा, इस उम्र में उन्हें आराम कि जरूरत है, और तुम उन्हें परेशानी मे डाल रहे हो. दामादजी, तुम अपनी बहन और आशा को प्यार से समझाओ, दोनों घर तुम्हारे है, कभी भी आओ जाओ पर तुम्हारी जिम्मेदारी भी दोनों घरो की है. अनिल बोला, मम्मी जी, जैसा आप समझ रही है, वैसा कुछ नहीं है. माँ और मैंने रीमा को कई बार समझया की यहाँ आकर आशा और माँ पर हुक्म मत चलाया कर, आना तो फिर भी ठीक है, आकर दिनभर हुकुम चलाना और हर काम मे कमियाँ और गलतियां निकलना, ये कहाँ तक सही है. माँ के कहने पर ही रीमा को सबक सिखाने के लिए आशा को यहाँ भेजनें का प्लान बनाया, और ये काम भी कर गया. 8-10 दिन से पहले न हिलने वाली रीमा, पिछली बार 2 दिन में ही वापिस चली गई थी, ये बोलकर की रमेश रात को वापस आ रहा है, जबकि वो 6 दिन बाद आया था. इस बार भी वो 2 दिन में ही वापस चली गई है. आशा के रहने पर वो कुछ ज्यादा ही उधम मचाती है, माँ प्यार से कई बार समझा बैठी, पर कोई असर नहीं हुआ, इसलिए माँ ने ही ये सलाह दी और कहा, उसे सबक सीखना जरूरी है. कुछ दिनों बाद आशा ने रीमा को फोन किया और कहा  की राखी पर थोडा लम्बा प्रोग्राम बनाकर आना, कुछ दिन साथ रहेंगे फिर मे अपने मायके चली जाऊगी और आप मम्मी जी के पास रहना. इस पर रीमा बोली की मैं राखी पर रमेश के साथ सुबह आकर शाम को वापिस चली जाऊगी, तुम अपना प्रोग्राम उसी हिंसाब से बनाना. उस दिन के बाद से रीमा को अपनी गलती का अहसास हो गया और आशा की सास अपनी बहु के साथ सुकून से दिन बिता रही है. रीमा अब महमान की तरह ही आती, रहती और चली जाती.

एक माँ को अपनी बेटी और बहु मै तालमेल बिठाने के लिए बहुत कुछ है करना और सहना पड़ता है. आप की राय में, आशा की सास ने जो किया, क्या वो सही था? अपने विचार जरूर साँझा करो 

लेखक 

Mohindra Singh 

(एम पी सिंह )

स्वरचित, अप्रकाशित 

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