देखते-देखते पांच वर्ष बीत गए। राहुल से रैना ने घरवालों के खिलाफ प्रेम विवाह किया था। एक बिटिया भी दो वर्ष की हो गई।इस बार पड़ोस में नई फेमिली आई है भरा-पूरा परिवार है…तीज की तैयारी में पूरा परिवार व्यस्त है। आंटी ने बताया,”बहू अपने मायके गई है हरियाली तीज में और बिटिया यहां आई हुई है… अभी तीज की तैयारी चल रही है।”
“हरियाली तीज ” रैना को जैसे पुरानी बातें याद आ गई मायके में कितनी धूमधाम से हरियाली तीज का आयोजन होता था… लेकिन रैना ने अपनी जिद से विजातीय लड़के से विवाह कर मायके से नाता ही तोड़ दिया।
अब न माता-पिता हैं न कोई उसको याद करने वाला। भाई-बहन दूर देश अपनी दुनिया में मस्त हैं। रिश्तों की अहमियत रैना ने ही अपनी मनमर्जी के आगे कुचल दिया था।
तभी आंटी ने आवाज दी,” रैना आ जाओ पति बेटी के साथ सज-धजकर… अभी मेंहदी लगेगी झूला झूलेंगे पकवानों के संग हरियाली तीज मनायेंगे।”
मायके का प्रेम दिल में बसाये रैना आंटी के घर हरियाली तीज मनाने के लिये पति की खुशामद करने लगी…!
” राहुल,पड़ोसन आंटी हरियाली तीज पर बुला रही हैं,चलो न बेटी परी को भी लेकर चलते हैं, उसे भी अच्छा लगेगा” रैना ने यथासंभव आवाज में कोमलता लाते हुये चिरौरी की।
राहुल आश्चर्यचकित, रैना को घूरते हुए बोला,” अरे वाह, आज सूरज किधर से निकला है, पर्व-त्योहारों पर मुंह बनाने वाली, बात-बे-बात आधुनिकता का दंभ भर रिश्ते-नाते को अंगुठा दिखाने वाली, अचानक पड़ोसन पर इतनी मेहरबान।” राहुल के चुभते बोल, कोई और समय होता तो वह अपनी बदजुबानी से राहुल का मुंह बंद कर देती लेकिन आज…
वह चुपचाप बेटी को उठा , पड़ोस में चली गई।
” आओ,आओ बेटी…यह है मेरी दोनों बहुएं प्रिया और रेशु…यह मेरी बेटी चंचला… तीनों इंजीनियरिंग की टाॅपर है और आई टी प्रोफेशनल हैं।”
रैना ने उन्हें नमस्ते किया और तीनों का पहिरावा देख अपनी शैक्षणिक योग्यता,मामूली रिसेप्शनिस्ट की नौकरी जिसपर उसे बहुत गुमान था …बदरंग जींस और टी-शर्ट पर पहली बार शर्मिंदगी हुई।जिसे वह अपने आजादी का बिंदास अंदाज समझती थी वह इस परंपराओं पर उसका मुंह चिढ़ा रहा था।
चलो-चलो मेंहदी लगवा लो… अपने को सबसे अलग समझने वाली रैना ने जब तीनों बहु-बेटियों को उच्च शिक्षित आत्मविश्वास से दमकते चेहरे को देखा… हरियाली तीज की तैयारियों में बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते देखे तब अपने खोखले दंभ पर भीतर-भीतर शर्म से गड़ गई।
” तुम भी मेंहदी लगवा लो सुहागिनों का श्रृंगार है यह,परी को भी लगवा लो” । रैना ने घरवालों के मर्जी के खिलाफ कोर्ट मैरिज की थी।न मेंहदी न मेकअप न लाल साड़ी न कोई रस्म-रिवाज। राहुल को भी उसके परिवार से जुदा करवाकर ही दम लिया था। आज इस माहौल में वह अपनी ओछी मानसिकता पर सोच में पड़ गई।
दोनों बहुएं बेटी ने लहरिया हरा-लाल चुंदड़ी, कानों में झुमके,गले में हार, भर-भर हाथ हरी लाल चूड़ियां, पांवों में पायल बिछिया पहने साक्षात लक्ष्मी का प्रतिरूप लग रही थी।
हाथों में मेहंदी, पांव में आलता… सब-कुछ देख रैना को मां की यादें ताजा हो गई…वह भी रैना को शिक्षा के साथ अपने पारिवारिक सामाजिक व्यवस्था से जोड़ना चाहती थी और रैना पर क्रांति का भूत सवार था…सब चीजों का विरोध करो।
गीत-संगीत हंसी खुशी में कैसे समय बीत गया…पता ही नहीं चला। पहली बार अपनी बिटिया परी को दुसरे बच्चों के साथ हंसते खेलते देख हृदय जुड़ा गया।
” रैना शाम में भोजन नृत्य-संगीत का आयोजन है,पति के संग आना और हां भारतीय परिधान पहनोगी तो अच्छा”।
रैना शर्म से पानी-पानी। उसके पास न कोई ढंग की साड़ी थी न सलवार-कमीज। चूड़ियां , जेवर उसे गंवारपन लगता।अपनी थोड़ी गिट-पिट अंग्रेजी ज्ञान और पैंट कोट को वह अपना स्टेटस सिंबल समझती थी।
वह परी को लेकर घर लौटी।परी आना ही नहीं चाह रही थी। यहां राहुल लैपटॉप में आंखें गड़ाए अपने प्रोजेक्ट में व्यस्त था।
रैना के हाथों में मेहंदी, पैरों में आलता, हरी-हरी चूड़ियां देख हैरत हुई कुछ बोला नहीं।
“सुनो गाड़ी निकालो, हमें बाजार चलना है।”
“किसलिए…”!
” आज शाम की पार्टी के लिये साड़ी…।”
“अचानक विचार परिवर्तन… गंवारों की वेशभूषा… खरीदने का विचार” राहुल चकित , गाड़ी निकालने लगा।
पारंपरिक परिधानों का प्रतिष्ठित दूकान पर पहुंचते ही रैना जैसे बावरी हो गई
” मैं यह लाल पीला चटकदार घाघरा चुन्नी लूंगी… और यह भारी कांजीवरम साड़ी भी…”
“… और तुम यह रंगीन कामदार कुर्ता पायजामा और डिजाइनर धोती-कुर्ता ले लो।”
” परी के लिए चमकदार लहंगा, घुंघरू वाले पायल लूंगी।”
रैना का चहकना,आम लड़कियों की तरह कपड़ों के प्रति ललक उसके चेहरे पर छाई सुंदरता राहुल मंत्र-मुग्ध देखता रह गया।इसी लावण्य मयी रुप देखने के लिये तरसती थी राहुल की आंखें। उसने प्रेम विवाह किया था और रैना से एक जीवनसाथी की तरह सहयोग की आशा की थी।वे दोनों भी मिल जुल कर तीज-त्योहार मनावें, सामाजिक जीवन का आनंद लें, अपने और मेरे घरवालों से मिलने जायें उन्हें भी बुलावे लेकिन रैना ने आधुनिकता का ऐसा विकृत रुप दिखाया कि रिश्तों की मर्यादा ही भूल गई न अपने मायके वालों से संबंध रखा न पति के परिवार वालों से… सभी पारंपरिक रीति-रिवाजों का माखौल उड़ाया करती थी और आज पड़ोसी के घर जाते ही … वहां के हरियाली तीज में शामिल होते ही अचानक यह खूबसूरत बदलाव आ गया।
राहुल एक परिपक्व समझदार पति था। उसने हंसते-हंसते रैना की चाहत के अनुसार खरीदारी करवाई।
घर आकर जब परी ने रुनझुन पायल लहंगे में ठुमकना शुरू किया तब जैसे मंदिर की घंटियां बज रही हो।
शादी के बाद पहली बार जब राहुल और रैना पारंपरिक परिधानों में सजे तब जैसे उनकी धड़कने एक साथ तेज हो गई और एक-दूसरे को देखते ही रह गये।
राहुल ने मन-ही-मन कहा,” तुम रिश्ते की मर्यादा भूले गई थी रैना, मैं नहीं…।”
” क्या कहा ” रैना का रोम-रोम कान बन गया था।
” रिश्ते संभालना खुशी देता है रैना “।
रैना को भी कुछ ऐसा ही महसूस हो रहा था।
जब वे पड़ोसी के घर पहुंचे।पड़ोसन देखते ही बलैया लेने लगी,” यह हुई ना बात, नौकरी अपनी जगह और घर-परिवार का प्रचलन अपनी जगह।”
राहुल और रैना को सभी का सहयोग सराहना आशीर्वाद मिला।परी बहुत खुश थी,सच कहता है राहुल,
” जो खुशी अपनों के बीच है वह अन्यत्र नहीं।”
घर आकर दोनों के मन में अंतर्द्वंद्व चल रहा था।परी सो गई। रैना ने करवट बदलते हुए कहा,” रिश्ते की मर्यादा समझने में मैंने अपनी जिद को प्रश्रय दिया, लेकिन अब नहीं…कल ही हम-दोनों अपने-अपने घर बात करते हैं।”
” सच ” राहुल के हृदय से एक भारी बोझ टल गया,वह
धीरे-धीरे नींद के आगोश में चला गया।
रैना के पास अपने भाई और बहन का कोई संपर्क सूत्र नहीं था। रिश्ते को ग्रहण रैना ने ही लगाया था। पहले
खुले विचारों के पाश्चात्य संस्कृति के समर्थक अवारा मनमौजी उच्छ्रंखल विचारों के लड़के लड़कियों से दोस्ती… उटपटांग कपड़े पहनना, बात-बे-बात चीखना चिल्लाना माता-पिता भाई-बहनों को हेय दृष्टि से देखना… सभी ने रैना को बदतमीज बिगड़ी हुई लड़की की संज्ञा दे दी थी।पता नहीं कैसे सरल स्वभाव का राहुल
रैना से दिल लगा बैठा और चट मंगनी पट ब्याह कर डाला। रैना के मनमर्जी विवाह गैरजिम्मेदाराना हरकत माता-पिता ने कलेजे पर पत्थर रख लिया जिसे रैना ने अपनी जीत समझी।
रैना ने राहुल के घर जाने और रिश्ता रखने से इंकार कर दिया। लेकिन राहुल ने बिना रैना को बतायें अपने परिवार वालों से संबंध बनाये रखा।
अब रैना के आंखों से अलगाव रिश्तों को बेड़ी समझने का भूत सिर से उतर चुका था।
किसी प्रकार भाई का नंबर मिला,” भैया, मैं आपकी बहन, आपसे मिलकर अपनी गलतियों के लिए माफ़ी मांगना चाहती हूं” रैना रो-रोकर गुहार करने लगी।
उधर से भाई ने कठोर शब्दों में प्रतिकार किया,” खबरदार जो तुमने अपने गंदे जुबान से हमारा नाम लिया या हमसे मिलने की कोशिश की। तुम हमारे लिए उसी दिन भर गई जिस दिन तुम्हारी ज्यादती से कूढ-कूढ कर माता-पिता ने दुनिया छोड़ दिया… खबरदार।”
फटकार सुन रैना के होश फाख्ता हो गए… गुनाहगार वह थी… रिश्ते की मर्यादा को तार-तार करने की।
बहन ने भी कभी मुंह नहीं दिखाने की डांट पिलाई।
रैना का दिल टूट गया वह पहली बार अपनी बेवकूफी पर राहुल के गले लगकर फूट-फूटकर रोई।
आज स्वर्गवासी माता-पिता और मुंह फेर लिये भाई-बहन की बहुत याद आ रही थी।
रक्षाबंधन का त्यौहार आ पहुंचा। राहुल ने हंसकर कहा
” मेरे घर चलोगी, मैं अपनी बहन से राखी बंधवा लूंगा और तुम अपने सास-ससुर के साथ त्यौहार मन लेना।”
” वे लोग मुझे स्वीकार कर लेंगे… दुत्कार तो नहीं देंगे… मैं हूं ही इसी लायक ” रैना का हृदय परिवर्तन और सच्चे प्रायश्चित के आंसू…सरल मना राहुल पिघल उठा।
रैना और राहुल अपने माता-पिता और बहनों के लिए उपहार लेकर जब दूसरे शहर राहुल के घर पहुंचे। मां ने सभी की आरती उतारी। बहन ने परी को गोद में उठा लिया।
पास-पड़ोस की औरतें बहु देखने उससे मिलने आ पहुंची तब रैना रोमांचित हो उठी… “इतने खूबसूरत रिश्तों को छोड़ मैंने अकेलेपन को गले लगा सभी को दुखी कर दिया कितनी खुदगर्ज बेगैरत इंसान हूं मैं ।”
सासु मां ने हाथ का खानदानी कीमती जड़ाऊ कंगन पहनाए,”एक ही तो बहू है हमारी” ससुर जी ने लडीदार झुमके…ननद ने ढेर सारा प्यार।
रैना रिश्ते की मर्यादा का महत्व समझ अपने भाग्य पर इठला रही थी।
राहुल ने लंबी सांस ली,”अंत भला तो सब भला।”
मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा