मुस्कान को बचपन से ही हिंदी से बहुत लगाव था। पंजाब में रहने पर भी उसका पंजाबी से अधिक झुकाव हिंदी की ओर रहा। इसका कारण एक तो हिंदी भाषा बहुत मधुर बोली जाती है और दूसरा पंजाबी में जो प्रोग्राम वह टी.वी पर देखती थी, उसकी भाषा खासकर पंजाबी फिल्मों की भाषा उसे पसंद नहीं थी। बड़े बुजुर्गों को अजीब तरीके से बुलाना, लड़ाई -झगड़ा करना यह दृश्य उसके दिमाग में घर कर जाते थे।
यहां तक कि बोलचाल की भाषा में भी उसे कुछ शब्द पसंद नहीं थे। वहीं दूसरी ओर हिंदी में प्यार से बात की जाती थी, अगर झगड़ा भी होता था तो उसमें अनर्गल शब्दों का उपयोग नहीं किया जाता था। फिल्मों से उसका बहुत लगाव था। हिंदी की ओर उसके झुकाव में टी.वी प्रोग्राम और फिल्मों का बड़ा योगदान था।
ग्यारहवीं में उसने आर्टस की पढ़ाई शुरू की, जिसमें उसने पसंदीदा विषय के तौर पर हिंदी को रखा। हिंदी उसे बहुत पसंद थी और सोने पर सुहागा की बात यह हुई कि हिंदी पढ़ने के लिए शिक्षित और सक्षम शिक्षिका से उसका परिचय हुआ जो उनको हिंदी पढ़ाती थी। मुस्कान डॉक्टर बनना चाहती थी पर वह डॉक्टरी की पढ़ाई की ओर नहीं जा सकी। फिर भी उसके मन में यह कमी खलती रहती थी। हिंदी की अध्यापिका ने उसके अंदर उच्च पढ़ाई की रुचि पैदा कर दी। अब वह हिंदी विषय में ही आगे बढ़ना चाहती थी।
कॉलेज में बी.ए करने के बाद अब मुस्कान यूनिवर्सिटी में एम.ए हिंदी करने के लिए पहुंच गई। यहां पहली बार उसे अहसास हुआ कि पंजाबी राज्य में हिंदी करने पर उसे कई लोगों के सवालों का उत्तर देना पड़ेगा। जब भी किसी को पता चलता कि मुस्कान पंजाबी मीडियम से पढ़ी हुई है तो यह प्रश्न पूछा जाता कि पंजाबी में पढ़ने के बाद भी तुमने हिंदी कैसे ली? हिंदी तो कठिन भाषा है।
मुस्कान उत्तर देती नहीं ऐसा नहीं है। पंजाबी की तरह ही हिंदी भी आसानी से सीखी जा सकती है। बस मात्राओं को सही ढंग से इस्तेमाल करना होता है। तब आगे से प्रश्न आता कि नहीं पंजाबी में आधे अक्षर नहीं होते।यहां तो पता ही नहीं चलता कि आधे अक्षर कहां लगाने हैं।
उनके इस प्रश्न का उत्तर एम.ए करने के दौरान ही मिल गया।
मुस्कान मुस्कुरा कर पीछा छुड़ा लेती। एम.ए करने वाले छात्र-छात्राएं इंग्लिश या हिंदी मीडियम से आए थे।एक सिर्फ वही थी जो पंजाबी मीडियम से आई थी।
अपनी मेहनत और लगन से मुस्कान ने एम.ए में गोल्ड मेडल हासिल किया। एम. ए में पढ़ते हुए उसे अपना सपना साकार होता दिखाई दिया। उसने सोचा चलो एम. बी. बी. एस से ना सही पी.एच.डी से ही उसके नाम के आगे डॉक्टर शब्द जुड़ जाएगा। उसने अपने नाम को डॉक्टर शब्द के साथ जोड़कर स्वप्न में देखना प्रारंभ कर दिया था।
एम.ए के बाद मुस्कान ने पी.एच.डी के लिए एक साल इंतजार किया पर हिम्मत नहीं हारी। आखिरकार पी.एच.डी में उसका एनरोलमेंट हो गया। पी.एच.डी पूरा करने के बाद मुस्कान कॉलेज में पढ़ाने के लिए सेवानिवृत्त हो गई। पर कॉलेज में भी इस प्रश्न ने उसका पीछा नहीं छोड़ा कि पंजाबी भाषी होते हुए भी आपने हिंदी को कैसे प्राथमिकता दे दी?
मुस्कान सोचती है कि जिस प्रकार उसकी लगन को समय-समय पर अच्छे शिक्षक,अच्छी किताबें और अच्छे प्रोग्राम ने प्रोत्साहित किया। वैसे ही अगर वह किसी भी हिंदी भाषी प्रेमी को एक अच्छी शिक्षिका के तौर पर संतुष्ट कर पाए तो उसकी शिक्षा असल में अपना मूल्य प्रदान कर पाएगी।
हिंदी से प्रेम ने आखिरकार उसके स्वप्न को साकार कर ही दिया। अब उसके नाम के साथ डॉक्टर शब्द जुड़ चुका था।
डॉ हरदीप कौर (दीप)