देव अपनी मां काव्या की अलमारी मे कुछ जरूरी पेपर ढूंढ रहा था। तभी उसने देखा एक लाल रंग की मखमल की डिब्बी एक कपड़े में लिपटी रखी है। उसके अंदर जिज्ञासा जाग उठी कि इसमें ऐसा क्या है जो मां ने इतना संभाल कर रखा है। सारे गहने तो मां बैंक के लाॅकर् मे रखती हैं फिर ये क्या है ? देव को जानने की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी।
लेकिन खुद से बिना मां की इजाजत के उसको देखना ठीक नहीं समझा ,इसलिए तुरंत वो डिब्बी लेकर काव्या के पास पहुंच गया । और काव्या के हाथ मे वो डिब्बी देते हुए पूछा- मम्मा इसमे क्या है?
काव्या डिब्बी देखकर मुस्कुराकर बोली- ये तुम्हारे नानू का दिया अनमोल तोहफा है ।
“क्या मैं इसे देख सकता हूँ? “
हां क्यो नही ।” काव्या ने देव को इजाजत दे दी।
देव ने झटपट उस डिब्बी को खोल दिया लेकिन उसे ये देख कर बहुत आश्चर्य हुआ कि उसमे एक सफेद कागज तह करके रखा था। उसने उस कागज को निकाल कर खोला तो पहले से अधिक आश्चर्यचकित हो गया क्योंकि उसमे भी कुछ लिखा नहीं था बल्कि नानू के ही तीन हस्ताक्षर तीन तरह से बने हुए थे। वह कुछ पल उनको देखता रहा फिर बोला- “मम्मा ये क्या ? ये तो रहस्यमयी पहेली की तरह हो गया प्लीज मुझे बताइए।”
काव्या, अपने बेटे की जिज्ञासा शांत करते हुए 15 वर्ष पीछे अतीत में पहुंच गयी । जब उसके पति का बिजनेस अचानक घाटे में चला गया था। देव उस समय पांच वर्ष का था। अपने पराये सब से मदद चाही थी मगर सब कोई न कोई बहाना करके पीछे हट गये थे।
मायके से मदद लेनी चाही तो सौरभ ने कहा- नही, मेरा आत्मसम्मान भी कुछ है।”
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कुछ दिन बाद काव्या मायके गयी तो बचपन की आदत के अनुसार पहले जब भी पिता जी ने पूछा होगा कि क्या हुआ तो फिर शुरू से अंत तक सुना जाती थी ।उसी तरह जब उसदिन पिता जी ने पूछा- कोका सब ठीक तो है? ( काव्या को प्यार से उसके पिता कोका कहते थे)
पिता जी के इस प्रश्न के सामने काव्या ने न चाहते हुए भी खुली किताब की तरह अपनी तकलीफ के सारे पन्ने पढ़कर सुना दिये। सुनाते सुनाते उसका गला भर, आया था । मगर खुद को संभाल लिया और बोली- ये सब मैने बता तो दिया लेकिन आप सौरभ के सामने कुछ जाहिर नहीं करेंगे।”
काव्या के पिता गंभीर हो गये । थोड़ी देर बाद उन्होने एक सादा कागज लिया और काव्या को अपने सामने बैठा कर उस कागज मे नीचे एक हस्ताक्षर हिंदी भाषा मे सीधे स्पष्ट अक्षरों में किया। काव्या कुछ समझ नही पा रही थी कि ये क्यों किसलिए ? तभी उसके पिता बोले – बिटिया ये हस्ताक्षर इसलिए कि किसी भी रिश्ते में प्रेम हमेशा सरल स्पष्ट और निस्वार्थ होना चाहिए । जहां दुविधा हो स्वार्थ हो वहां प्रेम नही होता। काव्या समझ गयी थी कि हमने अपनी तकलीफ उनसे न कहकर औरों से बताई वो उनके उस प्रेम को आहत कर गया जो बेटी के लिए पिता के ह्रदय मे होता है। वो भावुक हो गयी।
तभी पिता ने दूसरा हस्ताक्षर किया जो अंग्रेजी भाषा में था काव्या की जिज्ञासा बढ़ गयी कि इसका मतलब पिता जी क्या बतायेंगे ?
पिता ने कहा -बिटिया ये हस्ताक्षर विश्वास का है जीवन मे आने वाले मोड़ों का है। इसके घुमाव ये बताते है- कि जीवन मे कई तरह के मोड़ आते हैं किंतु कभी विचलित नही होना है । आत्मविश्वास के साथ एक एक कदम आगे बढ़ाना है।बेटा विश्वास भी तीन तरह का होता है आत्मविश्वास,विश्वास और अंधविश्वास। आत्मविश्वास, स्वयं पर विश्वास होना चाहिए कि हम ये कर सकते हैं। विश्वास ,अपने विवेक के अनुसार किसी की बात किसी व्यक्ति पर विश्वास कर सकते , किंतु अंधविश्वास से दूर रहना। जैसे मुझे तुम पर पूरा विश्वास है कि मेरी कोका जीवन के संघर्षों का डटकर मुकाबला कर सकती है। “
इसतरह पिता जी ने काव्या को जीवन संघर्ष करने के लिए उत्साहित कर दिया ।
काव्या अपने पिता का चेहरा बहुत ध्यान से देखने लगी जो बेटी के विश्वास में चमक उठा था।
अभी काव्या कुछ कहती कि पिता जी ने तीसरा हस्ताक्षर उन दो के नीचे किया जो रनिंग ( एकसाथ खींच कर ) में था जिसके नीचे एक रेखा खींची थी । फिर काव्या के सिर पर प्यार से हाथ फेरते हुए बोले -” बिटिया जहां प्रेम और विश्वास होता है वहां जीत निश्चित होती है। तो ये है तुम्हारी जीत का।
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किंतु एक जीत से खुश हो जाना ही सब नही है बल्कि उस जीत को बनाये रखना ही वास्तविक जीत है।” ये हस्ताक्षर के नीचे खिंची रेखा की तरफ इंगित करते हुए बोले।
काव्या का चेहरा चमक उठा। उसे खुशी हो रही थी कि आज पिता जी ने उसको जीवन के कठिन पथ पर पुनः आगे बढ़ने के लिए प्रेरित कर दिया। काव्या ने वो कागज संभाल कर रख लिया था ।
मायके से वापस आकर सौरभ के साथ दोगुने उत्साह से अपने बिजनेस को फिर से छोटे स्तर से शुरू किया। धीरे धीरे बढ़ोतरी होती गयी।
देव की आवाज से काव्या आज मे आ गयी । फिर बोली -“इसलिए ये मेरे लिए केवल हस्ताक्षर मात्र नही बल्कि मेरे पिता का दिया वो अनमोल उपहार है जो जीवन पर्यंत मेरे साथ रहेगा।
देव ने दार्शनिक अंदाज में आंखे घुमाकर कहा- नानू ने अपने सिग्नेचर से जीवन का पाठ पढ़ा दिया।वाउ ग्रेट । शिक्षाप्रद हस्ताक्षर । “
फिर अपनी मां को देखने लगा उसके होंठो पर स्निग्ध मुस्कान आ गयी।
स्वरचित
उषा भारद्वाज