मां जल्दी बाहर आईए, देखिए मैं किन्हें साथ लेकर आया हूं, बंटी की आवाज सुनकर मां बाहर दौड़ी हुई
आई और देखा 12 साल के बंटी के साथ में 8-10 छोटी-छोटी गरीब घरों की लड़कियां थी, अरे..
इन्हें कहां से उठा लाया, मैंने तुझे कन्याओं को लाने को कहा था और तू नीचे बस्ती में से इन लड़कियों को बुला लाया,
पर मां आपने कन्याओं को लाने के लिए बोला था और मुझे तो यही कन्याए नजर आई,
मां आप हर बार अच्छे-अच्छे घरों की कन्याओं को अच्छे-अच्छे पकवान बनाकर जिमाती हैं
और उन्हें उपहार भी देती हैं जबकि वह कन्याएं कुछ भी नहीं खाती, मां इन कन्याओं को तो अच्छा खाना भी नसीब नहीं होता
तो मैंने सोचा चाहे एक दिन ही सही इन्हें भी तो अच्छा खाना और उपहार मिलना चाहिए,
क्यों मां. क्या मुझसे कोई गलती हो गई, क्या यह कन्याएं नहीं है? नहीं बेटा ..तू बिल्कुल सही कह रहा है
आज तूने मेरी आंखें खोल दी, जब यह कन्याएं भरपेट खाना खाएंगी तो इनके खुश होने पर ही तो माता रानी प्रसन्न होंगी,
मैं आज तक पैसे वाले घरों की बच्चियों को ही कन्याएं समझती आई थी लेकिन कन्याएं तो माता का रूप होती है
वह अमीर या गरीब नहीं होती, बेटा आज मैं बहुत खुश हूं और फिर मां ने उन कन्याओं की विधिवत पूजा करके उन्हें अच्छे-अच्छे पकवान खिलाए
और बाद में उन्हें बहुत सुंदर उपहार भी प्रदान किए, बच्चियों के चेहरे पर खुशी देखकर मां को पहली बार बहुत आनंद आया ,
अब मां को लगा कि आज सच में माता रानी प्रसन्न हो रही होगी और मैं अपने आप से यह वादा करती हूं
मैं हर साल इन कन्याओं को भी अवश्य भोजन करवाऊंगी ताकि माता रानी की कृपा हमेशा हम पर बनी रहे!
हेमलता गुप्ता स्वरचित मौलिक