बिंदिया बहु बनकर ससुराल आ गयी थी. बहु के गृह प्रवेश की विधि पूर्ण कर सास गायत्री देवी ने बिंदिया के मायके से आए सारे सामान को एक खाली कमरे में रखवा कर लॉक कर दिया था.ताकि एक दो दिनों में मेहमानों की विदाई के पश्चात वो आराम से सारे सामान को खोल कर देख सके.
इकलौते पुत्र के ससुराल से आए सामान को एक एक कर खोलना-देखना किसी भी भारतीय सास के लिए एक बेहद प्यारा अवसर होता है.गायत्री देवी के लिए भी बेटे नरेंद्र के ससुराल का सामान था आखिर.
अब बहु की मुँह दिखाई के लिए मोहल्ले की महिलाओं का आना शुरू हो गया था.
सबकुछ निपटा कर बुरी तरह से थकी हारी गायत्री देवी कमर सीधी करने के लिए थोड़ी देर लेटना चाह रहीं थीं. पर उसके कमरे में तो गोरखपुर वाले जेठ जी की बेटी दामाद रुके हुए थे. गायत्री देवी का अंग अंग टूट रहा था. अंततः वो किचन से लगे भंडार घर मे फोल्डिंग खटिया लगवा कर लेट गयी थी.
इधर नरेंद्र और बिंदिया की पहली रात की तैयारियों में फ़ूफा से लेकर घर के बेटी दामाद और नरेंद्र के दोस्त लगे हुए थे.
हँसी ठिठोली का भरपूर दौर चल रहा था.बिंदिया के साथ-साथ बिंदिया और नरेंद्र का कमरा भी दुल्हन की तरह सज कर तैयार था. पर जाने क्यों बिंदिया बेहद परेशान सी थी. लाख चाह कर भी वो चेहरे पर मुस्कराहट नहीं ला पा रहीं थीं.देर रात नरेंद्र के जीजा, बहने और दोस्तों ने रस्मी अंदाज में नरेंद्र को छेड़ते हुए कमरे में धकेल दिया था.
थोड़ी देर में घर के सभी लोग अपने अपने बिस्तर में बेसुध पड़ गए थे क्योंकि हर कोई बुरी तरह से थका हुआ था.
अभी मुश्किल से आधे घण्टे का समय बीता था और नरेंद्र घबराता हुआ कमरे से बाहर आया. वो माँ माँ आवाज दे रहा था.
इस कहानी को भी पढ़ें:
बाहर हॉल में अंधेरा था सब लोग लाइट ऑफ कर अपने अपने कमरों में सोने चले गए थे. पर किचन के पास सोयी गायत्री देवी ने नरेंद्र की आवाज को तुरंत पहचान लिया था. वो भागी भागी आयी.
“माँ जल्दी अंदर चलो देखो न बिंदिया को क्या हो गया है”,
नरेंद्र माँ का हाथ पकड़ खिंचते हुए अंदर ले जा रहा था. फ़ूलों की खुशबु के बीच बिंदिया का कांपता और तपता बदन बेसुध सा था.
” बेटा जल्दी से सबको जगा और गाड़ी निकाल. बहु को अस्पताल लेकर जाना पड़ेगा.” गायत्री देवी ने चिल्लाते हुए नरेंद्र को कहा.
थोड़ी देर में नरेन्द्र ,गायत्री देवी और परिवार के लगभग सारे सदस्य बिंदिया को लेकर अस्पताल पहुँच चुके थे.
इमर्जेंसी में मौजूद चिकित्सकों ने हालात देखकर बिंदिया को आयी सी यू में शिफ्ट कर दिया था.गायत्री देवी ने जिद्द कर बहु के पास बैठने के लिए डॉक्टर को मना लिया था.
रात में बहुत सारे टेस्ट हुए थे बिंदिया के. वो अभी भी बेसुध सी थी. अगली सुबह डॉक्टर ने बताया कि ज्यादा कुछ समस्या नहीं दिख रहीं है पर वो शाम तक आने वाली रिपोर्ट का इन्तेज़ार करेंगे.
नरेंद्र बार बार माँ को समझा रहा था कि वो घर जाकर थोड़ा आराम करे पर माँ बहु के पास से हिलने को तैयार नहीं थी.
दोपहर तक बिंदिया पूरी तरह नॉर्मल होने लगी थी. उसने माथे पर हथेलियों के स्पर्श को महसूस किया था. ” माँ “
बिंदिया के मुँह से निकला था और गायत्री देवी तुरंत बहु से लिपट गयी थी.
सारी रिपोर्ट भी आ गयी थी. डॉक्टर ने बताया था कि बिंदिया पिछली कुछ रात से ठीक से सोयी नहीं थी. मायके में शादी की तैयारियो की थकान और तनाव. खाने पीने में लापरवाही पर बिंदिया की तनाव की सबसे बड़ी वज़ह कुछ और थी. उसके मस्तिष्क में किशोर अवस्था से ये बात बैठ गयी थी ससुराल में सास एक दुश्मन की तरह होती है और दिन रात उसकी कीच कीच बहु के जीवन को परेशानियों से भर देती है.
इन सारी बातों ने सामुहिक रूप से बिंदिया को अपने चुंगल में ले लिया था.
इस कहानी को भी पढ़ें:
पर सासु मां तो बीमार बहु के लिए अपनी थकान और बुढ़ापे की सारी बीमारियो को भूल बहु की सेवा में लगी थी.
डॉक्टर से राहत भरी बातें सुन अब गायत्री देवी बाहर जाकर चाय पीना चाहती थी. वो बस उठी थी कि बिंदिया ने मां की हथेलियों को थाम लिया था.
सारा तनाव अब खुशी में बदल चुका था बिंदिया के लिए.
अब वो एक पल अस्पताल में रुकना नहीं चाहती थी. उसे बस अपने ससुराल जाना था.
सेतु कुमार
VM