घर या मकान – विमला गुगलानी : Moral Stories in Hindi

       हालात कुछ ऐसे बने की घर की सबसे छोटी लाडली बेटी सुमी की शादी बिना ज्यादा देखे परखे प्रेम से तय हो गई, और अगले हफ्ते ही शादी भी हो गई।कस्बानुमा शहर में अपना पुराना लेकिन काफी खुल्ला घर था। कहना तो नहीं चाहिए लेकिन परिवार के साथ साथ शादी में आए नाते रिशतेदारों को जो बात चुभ रही थी वो ये थी कि प्रेम का परिवार बहुत बड़ा था।

         पांच भाई और दो बहनें, ये वो समय था, जब पांच सात बच्चे होना या कईयों के तो आठ, दस भी होते थे। लेकिन सुमी चार भाई बहन थे , सुमी सबसे छोटी थी, दो बड़े भाई और एक शादी शुदा बहन थी।

    दोनों भाई भाभिंया नौकरी वाले और शहर में रहते थे, सुमी ने दो साल पहले ही बारहंवी की थी, वहां कस्बे में  कालिज नहीं था तो आगे के लिए प्राईवेट तैयारी कर रही थी। सुमी की मां छः महीने पहले अचानक ही कैंसर ग्रस्त होकर चल बसी। 

    अच्छा भला हंसता खेलता परिवार उजड़ गया। सुमी के पापा की अभी सरकारी नौकरी से रिटायरमैंट नहीं हुई थी। घर में सुमी अकेली होती। वहां शहर में भी एक तो भाभियां नौकरी करती थी और वैसे किसी ने भी सुमी को अपने पास रखने में रूचि नहीं दिखाई। 

    दो महीने सुमी बड़ी बहन शिवी के पास रहकर तो आई परतुं वहां बहन के सास ससुर भी थे। शिवी के पति नकुल और  परिवार वाले बहुत अच्छे स्वभाव के थे लेकिन सुमी को वहां रहना अच्छा न लगता। बहन के दोनों बच्चे मासी से बहुत लाड करते लेकिन सुमी अपने आप को असहज महसूस करती।

       आपसी सलाह मशवरे के बाद सुमी की शादी करने का ही फैसला हुआ। बीस साल की सुमी की शादी बहन की ननद की रिश्तेदारी में प्रेम के साथ हो गई। 

        सात बहन भाईयों में प्रेम सबसे बड़े और कमाने वाले थे, पिताजी नहीं थे लेकिन उनका होलसेल सप्लाई का काम था जो अब प्रेम सभांलता था, उससे छोटा राज ग्रेजुऐशन के बाद रिजल्ट से पहले ही भाई के साथ काम सीखने लग गया। बाकी सब छोटे बहन भाई अभी पढते थे। 

     सुमी की सास नीमा शरीर से काफी भारी थी, चलने फिरने का काम ज्यादा नहीं कर पाती थी, लेकिन बैठे बैठे सब्जी वगैरह काटने छीलने, कपड़े तह करने के इलावा बैठे बैठे एक पुराने दर्जी से मिलने वाले काम तुरपाई, साड़ी फाल लगाना, बटन टाकँना वगैरह काम करती रहती और बहुत ही खुशमिजाज औरत थी।

         चार साल बाद राज की शादी उषा से हो गई, इसी बीच सुमी के बेटा विवेक पैदा हो चुका था। धीरे धीरे सबकी पढ़ाई पूरी होती गई, प्रेम के दोनों छोटे भाईयों में  विनय को बैंक और अविनाश को सरकारी कालिज में प्रवक्ता की नौकरी मिल गई और दोनों अलग शहरों में रहने लगे। 

     बहनों की भी शादी हो गई। प्रेम और राज अभी भी इकट्ठे रह रहे थे, दोनों के चार बच्चे हुए, इसी बीच करोना के चलते काम कुछ कम हो गया। जहां मां होगी वहां सब बच्चों का आना जाना तो लगा ही रहता है। 

     नीमा की काफी उम्र हो चली थी, काम करना तो पहले ही बंद कर दिया था। सुमी के पापा भी नहीं रहे। भाईयों भाभियों ने कई बार सुमी से कहा कि वो भी अपना चूल्हा अलग कर ले, कब तक इतने बड़े परिवार की चक्की में पिसती रहेगी। लेकिन सुमी हंसकर टाल देती।

      शादी के बाद वो मायके बहुत कम गई,  पापा रिटायरमैंट के बाद भी घर में अकेले रहे। न ही उनका मन था और न ही कभी बेटों ने आने पर जोर दिया। वहां अपने शहर में उनकी काफी रिश्तेदारी थी, कभी उन्हें अकेलापन नहीं लगा। शिवी बीच बीच में आती रहती। सुमी का घर से निकलना न हो पाता।

        शिवी को लगता कि सुमी की शादी जल्दबाजी में इतने बड़े परिवार में कर दी, लेकिन सुमी ने कभी शिकायत नहीं की। सब भाई बहनों की शादियां हो गई। बदकिस्मती से सुमी के बड़े ननदोई की दुर्घटना में मौत हो गई। ननद शीला  की एक बेटी थी दस साल की। 

       कोई सहारा न मिलता देखकर उसे मायके ही आना पड़ा। दोनों भाईयों ने उसका साथ दिया, सुमी और राज की पत्नी उषा ने कभी माथे पर बल नहीं डाला। घर में एक कमरा उसे दे दिया गया, वो तो अपना खाना अलग बनाना चाहती थी, लेकिन प्रेम और राज ने इसकी इजाजत नहीं दी।

     तीज त्यौहार पर सब इकट्ठे होते, बहनों को उनका बनता नेग, बड़ी बहन और उसकी बेटी को तो कुछ ज्यादा ही देते और मां को भी पैसे भेजते रहते।

    सुमी की बात कोई टाल नहीं सकता था।नीमा भी चल बसी। बच्चों की शादियां हो गई। सबकी उम्र हो चली थी। विनय और अविनाश को पता था कि बड़े भाईयों का काम करोना के बाद कम हो गया।वो बिना मांगे ही मदद करते रहते। 

   उनके बच्चे भी कमाने लगे थे, कोई कहीं तो कोई कहीं जा बसा।प्रेम की भी सतहर साल की उम्र में मौत हो गई।अब घर में सुमी, उषा, बहन शीला और राज रह गए थे। बहन की बेटी आशी की शादी तय हो गई थी। सब बच्चों ने मिलकर घर की मुरम्मत रंगाई, पुताई करवाई और खूब धूमधाम से आशी की डोली विदा की।

       अब घर में सुमी, उषा, शीला और राज रह गए। समय समय पर बच्चे आते। किसी ने कोई कमी महसूस नहीं होने दी। उधर सुमी के भाई बच्चों के प्यार को तरस रहें थे। सब बच्चों ने अपने अलग घर बसा लिए। सुमी के बड़े भाई तो वृद्धआश्रम में जिंदगी के अंतिम दिन गिन रहे थे। भाभी का निधन हो गया था और बेटा ऐसा विदेश गया कि मुड़कर नहीं देखा।

        पता नहीं क्या सोचकर इस राखी पर सुमी का छोटा भाई , भाभी  सुमी के घर आए, अकेले मुंह दिखाने की तो हिम्मत नहीं थी, बहन शिवी को साथ लेकर आए। 

      सुमी के घर पर तो रौनक लगी हुई थी। ज्यादातर बच्चे आए हुए थे। धूमधाम से राखी का त्यौहार मनाया। सब बहनों ने सब भाईयों को राखी और भाभीयों को लुंबी बांधी। पता नहीं चल रहा था कि कौन सगे है और कौन कज़न है। आशी की शादी के बाद पहली राखी थी। ऐसा प्यार मनुहार देखकर सुमी की भाभी की आंखे भर आई। 

   उसे याद आया जब वो सुमी को अलग होने के लिए उकसाती थी तो सुमी कहती, भाभी, घर दीवार से नहीं, परिवार से बनते है, और सचमुच ही नजारा ऐसा था कि नजरे हटाए नहीं हटती थी।

      बीता समय तो वापिस नहीं लाया जा सकता लेकिन भाई- भाभी, सुमी, शिवी को साथ लेकर वृद्धआश्रम से बड़े भाई को घर ले आए और राखी का त्यौहार मनाया। 

    अब तीनों मिलकर रहते है और जिस बच्चे का दिल करता है आ कर मिल जाता है। 

पाठकों, जरूरी नहीं कि सब एक ही घर में रहे, समय के अनुसार चलना पड़ता है, लेकिन परिवार में प्यार हो तो दुःख कम और खुशी दोगुनी हो जाती है , मिलकर मुसीबतों का सामना किया जा सकता है।

विमला गुगलानी

चंडीगढ़

वाक्य- घर दीवार से नहीं, परिवार से बनता है।

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