केशव माधव के लिए आज का दिन किसी दिवाली से कम नहीं था क्योंकि आज उनकी मां जानकी की, मौत को हराकर अपने बच्चों के पास घर वापसी जो हुई थी। कितने खुश हैं उनके परिवार में आज सब।
अरे हेमा जी क्या बस अपने दोनों लाड़़लो को ही मीठा खिलाओगी, आज तो हम भी मुंह मीठा करेंगे आखिरकार हमारी लाडली बिटिया आज हमारे पास अपने घर वापस जो आ रही है। कहकर मानव जी अतीत की गलियों में खो गए।
हेमा जी और मानव जी की इकलौती बेटी जानकी।
जानकी, जैसा नाम वैसा काम। सुंदर सुशील और संस्कारों से भरी। जिससे मिलती, उसे ही अपना बना लेती।
कॉलेज की पढ़ाई ही तो कर रही थी अभी वो, जब उसकी बुआ के बेटे ने उसके लिए एक रिश्ता बताया। उन्हीं के शहर में रहने वाले संपन्न परिवार से रिश्ता आया था जानकी के लिए। लड़का अपने पापा का ही कारोबार संभालता था पढ़ा लिखा संस्कारी परिवार था तो मानव जी ने बात आगे बढ़ाना उचित समझा और अपनी बेटी के लिए शांतनु उन्हें पसंद भी आ गया।
दोनों परिवारों की रज़ा मंदी से झट मंगनी पट ब्याह हो गया जानकी और शांतनु का।
छोटा सा परिवार था उसका, सास-ससुर और पति शांतनु।
माता पिता के संस्कारों को लेकर जानकी पिता के घर से विदा हो गई।
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“बिटिया, नमक की तरह घुल जाना अपने परिवार में”, मां ने विदाई में बस यही समझाया था जानकी को।
गृह प्रवेश, रस्मों रिवाज करते करते एक हफ्ता कहां निकल गया पता ही नहीं चला, फिर दोनों घूमने के लिए केरल चले गए वापस आए तो दोनों अपने घर गृहस्थी में व्यस्त हो गए।
समय अपनी गति से चलता रहा और जानकी और शांतनु के जीवन में दो फूल केशव माधव के रूप में आ गए।
दोनों परिवारों के सभी लोग बहुत खुश थे नन्हे कदमों के आने पर, खूब बड़ा जश्न मनाया था उन्होंने।
शांतनु और जानकी अपने बच्चों के साथ अपनी दुनिया में कितने खुश थे पर न जाने किसकी नजर लग गई उनकी खुशियों को।
रविवार का दिन था, जानकी सबकी पसंद का नाश्ता बना रही थी कि अचानक ही उसे चक्कर आए और वह बेहोश होकर गिर पड़ी।
घर पर सब लोग घबरा गए, दोनों बच्चे तो अपनी मां को ऐसे देखकर जोर से रोने लगे।
शांतनु जल्दी से जानकी को डॉक्टर के पास ले गया और वहां भर्ती कर दिया।
डॉक्टर ने सभी जांच करने के बाद बताया कि जानकी के गर्भाशय में एक कैंसर की गांठ है जिसका तुरंत ही ऑपरेशन करना पड़ेगा।
जानकी और उसके घर वालों की तो जैसे दुनिया ही थम गई हो। उसको तो बस अपने बच्चों की चिंता हो रही थी अभी इतने छोटे थे तो वो दोनों।
डॉक्टर के समझाने पर की अभी समय हाथ से नहीं निकला है और विज्ञान ने इतनी तरक्की कर ली है कि आज के समय में हर बीमारी का इलाज संभव है, जानकी के इलाज की प्रक्रिया शुरू हुई।
बहुत मुश्किल समय था सबके लिए
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जानकी बीमारी से बहुत कमजोर हो गई थी। रोज रोज थेरेपी, दवाइयां बस ये ही तो रहता था सारा दिन उसका।
उधर दोनों बच्चों का अपनी मां के बिना रो रो कर बुरा हाल था, खाते खेलते बस हर पल दोनों को अपनी मां की याद आती थी और फिर रोते-रोते सो जाते।
शांतनु का जीवन भी दो हिस्सों में बट गया था, अस्पताल में उसकी जानकी और घर पर उसके बच्चे। किसके पास रहे और किसको अकेले छोड़े बस यही सोचता रहता वो भी।
मानव जी और हेमा जी भी दिन रात भगवान को मनाते और हर मंदिर माथा टेकते अपनी बेटी के अच्छे स्वास्थ्य के लिए और नन्हे केशव माधव को संभालते।
भगवान ऐसा समय कभी दुश्मन को भी ना दिखाएं
आखिरकार उनकी परीक्षा और प्रतिक्षा भी पूरी हुई और एक सफल इलाज से आज पूरे 2 महीने बाद जानकी इतनी बड़ी बीमारी को हराकर अपने बच्चों के पास, अपने घर वापस आ रही थी और इस बात की खुशी वें सब मना रहे थे।
“पापा, क्या मेरा मुंह मीठा नहीं कराओगे आज”, अपनी लाडली की इस बात को सुनकर मानव जी अतीत से वापस आए और अपने परिवार के साथ अपनी बेटी जानकी का घर वापसी पर स्वागत किया।
सभी पाठकों मेरा सादर प्रणाम
मेरी, इस कहानी के माध्यम से आप सभी से बस यही विनती है कि आधुनिकता की दौड़ में हम अपना स्वास्थ्य ना भूल जाए, अच्छा खान-पान और व्यायाम तो करें ही साथ ही समय-समय पर अपना रूटीन चेकअप भी जरूर कराएं क्योंकि इलाज से बेहतर रोकथाम है।
जागरूक रहे
सतर्क रहें
अपने विचार रखकर मेरा मार्गदर्शन अवश्य करें
धन्यवाद
सांची शर्मा
स्वरचित मौलिक एवं अप्रकाशित