घर वापसी – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू : Moral Stories in Hindi

कई दिनों से अम्मा को तैयारी करते देख रेखा बोली अब बस भी करो और कितनी तैयारियां करोगी अरे! हम सालों के लिए नही कुछ महीनों के लिए जा रहे हैं।फिर तुम्हें तो पता है ज्यादा सामान लेके फ्लाइट पर नही चढ़ सकते।

कहते हुए अचार की बर्नी,जरूरत से ज्यादा कपड़े खाने का बहुत सारा सामान अलग करते हुए बोली।

अम्मा इन सबकी क्या जरूरत है वहां भी मिल जायेगा ये सब क्योंकि वहां भी इंडियन लोग रहते है और ये सभी चीजें इस्तेमाल करते हैं।

कहते हुए बैग पैक किया और समय से चार घंटे पहले ही रोली,चावल का तिलक लगवा और  मां के हाथों से दही चीनी खा घर से निकल गई।ये सोच कर कि आराम से समय रहते पहुंच जायेंगे।पर जैसा उसने सोचा बिल्कुल उल्टा हुआ रास्ते में इतना जाम की वहां तक पहुंच ना असंभव लग रहा था उसे ।फिर भी आटो रिक्शा बदल बदल कर केसे भी करके एयरपोर्ट पहुंच गई।

पर अफ़सोस कि उसकी आखों के सामने से प्लेन टेक आप कर लिया और वो कुछ ना कर सकी।

फिर क्या लगी अपने किस्मत को कोसने कितनी मुश्किल से उसने पढ़ाई की थी। क्या कुछ नही किया था मेरे  मम्मी पापा ने मेरी पढ़ाई के लिए मां कपड़े सिलती और पापा चाट पकौड़े की दुकान लगाकर हम  तीनों भाई बहनों की पढ़ाई करा रहे थे कितनी मुश्किल से मैं यहाँ तक पहुंची थी । सबको बड़ी उम्मीदे थी हमसे ।

अम्मा ने जब सुना की मेरी नौकरी एक बड़ी कंपनी में लग गई तो वो फूली नही समाई कि चलो अब घर के सारे दुख दरिद्र  अब दूर ज़ो जायेगे,पर ये क्या मेरे तो वहां पहुंच ने से पहले ही सारे सपने चकनाचूर हो गए। हे भगवान आखिर तुमने ऐसे क्यों किया क्या तुमको हम सब पर दया नही आई अब घर जाकर क्या मुंह दिखाऊंगी।कहते हुए जैसे ही वो थे हारे मन से उठी और अभी एयर पोर्ट से बाहर निकल ही रही थी कि मोबाइल पर खबर आई कि जिस एयर इंडिया का एक  विमान क्रेश हो गया।

उसने निगाह गढाई तो देखा जिस विमान से उसे जाना था वही क्रेश हुआ था।दुख की बात तो ये है कि उस विमान में बैठे जितने यात्री थे सभी मारे गए साथ ही उससे बड़ा हादसा उसी विमान से उसे हास्टल में भी हुआ जहां भविष्य के कर्णधार या ये कह सकते है कि ईश्वर का दूसरा रूप कहे जाने वाले डॉक्टर पढ़ाई करके खाने की टेबल पर बैठ कर मेस के वर्कर से कोई पानी कोई रोटी तो कोई दाल और सलाद मांग रहा था।

अरे आश्चर्य तो ये कि किसी के गले में निवाल अटका हुआ था।

उन बेकसूरों को भी अपनी चपेट में ले लिया।

ये सुन वो वही पर बेहोश हो गई फिर उसे वहां के लोगों ने उठाकर पानी वगैरा पिलाना तब जाकर उसे होश आया।

फिर तो जहां लो अपनी तकदीर को कोस रही थी ईश्वर को बेरहम कह रही थी वही उसे धन्यवाद देने लगी।

और बोली सच मैं बहुत किस्मत वाली हूं जो बच गई।

जो हैता है अच्छा ही होता है।सच ईश्वर के फ़ैसले पर हमें कभी उंगली नही उठानी चाहिए क्योंकि पहला अभिभावक हमारा वही है वो जो करता है गलत नही करता।इतने में उसे कुछ भूख का अहसास हुआ तो  उसने मां के द्वारा गया बैग खोला तो देखा उसमें गणेष जी की मूर्ति भी रखी थी। ये देख वो सोचने लगी ये तो मैने रखा नही था

फिर ये कैसे आ गई इतने मां मां का काल आई जिसकी आवाज़ में घबराहट थी,उसे खोने का भय था।पर दूसरे ही पल इसकी आवाज सुनते ही आंसुओं में डूब गई।और बोली बेटा तू ठीक तो है ना तो ये बोली हां मां प्लेन छूट गई तो कोई बात नही पर जान बच गई खुशी इस बात की है ।आ घर वापस लौट आ 

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना 

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज

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