घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है – सीमा सिंघी : Moral Stories in Hindi

मानसी मैं तो परेशान हो गया हूं । जब देखो तुम्हारे पापा आए दिन बीमारी का या अकेलेपन का रोना रोते रहते है और तुम भी उनका ख्याल रखने या फिर उनका अकेलेपन बांटने के लिए चली जाती हो। जबकि तुम्हें पता होना चाहिए,

एक बेटी का शादी के बाद उसका ससुराल ही सब कुछ होता है। कल भी जब मैं ऑफिस से आया, तो मां ने मुझे चाय बना कर दी । जबकि वह तुम्हारी ड्यूटी बनती है, मगर तुम तो थी ही नहीं । तुम्हें तो अपने पापा से फुर्सत मिले तब ना। 

राज की ऐसी बातें सुनकर मानसी को बहुत बुरा लगा, मगर फिर भी वह अपने दिल पर पत्थर रखकर राज को समझाते हुए बोल उठी ।

तुम्हें तो पता ही है राज । मेरी मम्मी साल भर पहले इस दुनिया से चली गई और मैं अपने पिता की इकलौती संतान हूं,तो मुझे तो अपने पिता को देखना ही होगा और सुनो राज मम्मी जी ने जो तुम्हें चाय बना कर दे दी,तो क्या हुआ ??

उन्हें बुरा नहीं लगता क्योंकि वो तुम्हारी मां है और वो बहुत अच्छी भी है, मगर मैं यह नहीं समझ पाती हूं कि तुम्हें क्यों बुरा लगता है??ऐसा कहां लिखा है, की बेटी शादी के बाद अपने पिता को या अपने मायके वालों को नहीं देख सकती ।

देखो राज एक बेटे को जैसे अपने माता-पिता को देखना उसकी जिम्मेदारी होती है, तो वैसे ही एक बेटी का भी अपने माता पिता को देखना उसकी जिम्मेदारी होती है ।

 तुम्हारा यह कहना की शादी के पहले तक ही एक बेटी की वो जिम्मेदारी होती है और शादी के बाद अपने पति के घर वालों की, तो यह सरासर गलत है । मैं इस बात को नहीं मानती हूं। हां मगर मम्मी जी को छोड़कर मैं अपने पिता को देखने चली जाऊं। ऐसा तो मैंने कभी नहीं किया क्योंकि मुझे मां ने ऐसे संस्कार नहीं दिए हैं। 

 राज मैं दोनों परिवारों का तालमेल बैठा कर चलना जानती हूं। एक तरफ मेरे पिता है तो दूसरी तरफ मम्मी जी है,तो मैं दोनों को ही नहीं छोड़ सकती क्योंकि दोनों मेरे अपने ही है । मैं दोनों की बेटी बन कर हमेशा दोनों की सेवा करना चाहती हूं कहकर मानसी घर से निकल पड़ी।

ऐसा अक्सर होता था। जब भी मानसी के पापा बीमार होते, या उनको अस्पताल लेकर जाना होता,तो राज मानसी पर नाराज हो उठता था ! मानसी के मायके की और से उसके पिता ही उसके सब कुछ थे, इसीलिए उसे पिता को भी देखना होता था,

मगर राज अपनी सीमित और छोटी सोच के कारण मानसी के पिता को देखता ही नहीं था,बल्कि मानसी से भी इसी बात पर अक्सर नाराज हो उठता था, मगर पिता तो पिता होते हैं मानसी अपने पिता को ऐसे कैसे छोड़ सकती थी, इसीलिए वह घर से आज भी हमेशा की तरह निकल पड़ी !

 मानसी के जाते ही सुमित्रा जी राज को समझा कर कहने लगी। 

देखो राज यह जो तुम हर वक्त मानसी को उसके पिता के लिए कहते रहते हो। मुझे अच्छा नहीं लगता । जरा सोचो बेटा मानसी अगर मेरे लिए तुम्हें इस तरह कहती, तो क्या तुम्हें अच्छा लगता ?? नहीं ना!! तो फिर वह भी मानसी के पिता है। जो मानसी से शादी के बाद वे तुम्हारे भी पिता हो गए। 

जरा सोचो बेटा, तुम जो यह हर वक्त उनके बारे में कुछ ना कुछ कहते रहते हो,तो मानसी को कितना बुरा लगता होगा, और हां मानसी मेरी बहुत अच्छी बहू है ।

मेरा बहुत ख्याल रखती है और समधी जी भी बहुत अच्छे इंसान है। सच कहूं तो बेटा एक बेटी का पिता मजबूर होकर भी अपनी तकलीफें अपनी बेटी से नहीं कहना चाहता क्योंकि बेटी के पिता को यही लगता है कि उसकी बेटी बहुत खुश रहे। 

आजकल ऐसे भी परिवार बहुत छोटे होते जा रहे हैं। लोगों को एक दूसरे से बात तक करने की फुर्सत नहीं है,और ऐसे भी बेटा घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है ऐसे में कम से कम परिवार के नाम पर हमारा कोई तो है। जो हमारे सुख दुख में दौड़कर आने वाला है।

सच कहूं तो बेटा बहुत छोटी सी जिंदगी है जिसे हम हंसी-खुशी गुजार ले, तो बेहतर होगा बाकि तुम अपनी ये छोटी और ओछी सोच बदलते हुए मानसी को समझने की कोशिश करो कहकर सुमित्रा जी अपने कमरे में चली गई, क्योंकि विवान अपनी दादी को पुकारने लगा था।

कुछ दिन बाद ही अचानक राज की मां सुमित्रा जी बीमार हो गई जिन्हें अस्पताल में भर्ती करना पड़ा ! राज ऑफिस के काम से लखनऊ गया हुआ था ! तब मानसी के पिता ने विवान को संभाला और मानसी ने अपनी बीमार सास की इतनी अच्छी तरह तीमारदारी की । सुमित्रा जी राज के आने के पहले ही बिलकुल स्वस्थ हो गई और घर भी आ गई!

 राज को अपनी मां के अस्पताल में भर्ती होने का पता चला और उसके बाद कैसे मानसी और उसके पिता के कारण सुमित्रा जी स्वस्थ होकर घर भी लौट आई तो उसे अपनी भूल का अहसास हुआ ! राज मानसी से क्षमा मांगते हुए कहने लगा ! 

मुझे क्षमा कर दो मानसी । मैं तो अब तक यही मानता था, की चार दीवारें खड़ी कर लो, तो घर तैयार हो जाता है मगर नहीं, मैं गलत था, मैं जान गया हूं। घर दीवार से नहीं परिवार से बनता है ! हम तुम्हारे मायके वाले घर को किराए पर चढ़ा देंगे

और आज के बाद हम सब साथ में ही रहेंगे ! जब तुम मेरी मां को अपना मानकर जीवन भर उनकी बेटी बनकर रह सकती हो, तो मैं तुम्हारे पिता का बेटा बनकर क्यों नहीं रह सकता कहकर मानसी के पिता को लेने निकल पड़ा ।

 स्वरचित 

सीमा सिंघी  

गोलाघाट असम

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