घर दिवार से नहीं परिवार से बनता है – सुदर्शन सचदेवा : Moral Stories in Hindi

तनु और मनु ने नया घर लिया था – शहर के पाश कालोनी में पांच कमरों वाला अपार्टमैंट,  इटालियन मार्बल  , स्मार्ट लाइटस, और दरवाजा अपनी आवाज से खुलता है | हर सिस्टम को स्पेशल तस्वीर दी और कैप्शन था – “और ड्रेयम होम” 

लोगों ने बहुत सी तारीफ के लिए अलग अलग शब्द कहे | क्या आलीशान महल लगता है , फिल्मों जैसा लगता है | मनु दिन रात आफिस के काम मे़ उलझा रहता और तनु हमेशा सोशल मीडिया पर जुड़ु रहती और कुछ न कुछ पोस्ट करती , लेकिन असलियत में पूरे दिन घर में अकेली रहती और उनका बेटाआरव पहले तो मम्मी से बात करता था और अब फोन पर गुम रहने लगा | 

एक दिन तनु ने हलके से कहा इतने बड़े घर में हम सब अजनबी की तरह रहतें हैं | मनु ने अनसुना कर दिया उसे लगा ये तो किसी ओर मूड़ में है, लेकिन एक शाम कुछ बदल गया |

बिजली गुल हो गई | पूरी बिल्डिंग में अंधेरा छा गया | कोई नेट , कोई फोन नहीं | तनु ने मोमबत्ती जलाई | आरव ने बेमन से मोबाइल को छोड़ा और आकर कहता है – मम्मी कुछ खेलते हैं , फिर क्या था , ताश निकाली , और पुराने किस्से सुनाने लगे | कभी कोई जीतता कभी कोई | जो जीत जाता , जोर से शोर मचाता जिससे घर में हंसी का माहौल हो गया |

मनु को पहली बार आरव के चेहरे पर मुस्कुराहट देखी और उनको अपना बचपन याद आ गया , कैसे हम सब भाई बहन रोज़ रात को कभी कुछ कभी कुछ खेलते थे और मम्मी सबको गिलास में दूधदेती और कहती , बस अब सो जाओ , सुबह स्कूल जाना है | तनु को भी अपना बचपन याद आ गया  |

तनु बोली  – ये वही दिवारें , वही छत है लेकिन आज ये पहली बार सिर्फ घर लग रहा है,  मकान नहीं |

अगले दिन मनु ने फैसला किया , रविवार को ” नो मोबाइल डे” रखा जायेगा | अब हर रविवार को सब मिलकर टेस्टी टेस्टी नाश्ता बनाते और सब मिलकर बालकनी में चाय की चुस्कयों के साथ मजा लेते |

धीरे धीरे  घर साज-सज्जा की जगह सांझा हंसी गूंजती  | फिर एक दिन आरव को “ माइ स्वीट ड्रेयम”  पर स्पीच बोलनी थी | 

उसने कहा –  मेरा सपना है कि ऐसा घर जहां मम्मी पापा समय दें और रात को सब एक साथ खाना खाएं और जो सारा दिन हमारे साथ हुआ हो, वो शेयर करे  | जहां मोबाइल तो हों लेकिन  एक दो घंटे देखकर अपने घर और काम पर ध्यान दे | 

और सबका प्यार मिले क्योंकि घर दिवारों से नहीं परिवार से बनता है | शब्दों की गर्माहट से तनु और मनु की आंखें भर आई  | 

अब सबको समझ आ गया था घर तो हर कोई बना सकता है लेकिन  घर को स्वर्ग जैसा माहौल नहीं |

घर दिवार से नहीं परिवार से बनता है | 

विषय : घर दिवार से नहीं परिवार से बनता है 

सुदर्शन सचदेवा 

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