घर बनाम आश्रम – कंचन श्रीवास्तव आरज़ू : Moral Stories in Hindi

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सामान उठा कर जाते जाते उसकी नज़र अपने पति की तस्वीर पर पड़ी और पड़ते ही उसे उसके बीत दिन एक रील की तरह मन मस्तिष्क में घूमने लगे कितने अरमानों से शादी  करके घर बनाया थी ।पर क्या पता था कि बढ़ती उम्र के साथ इतना कुछ बदल जायेगा।

कहते है ना कि जब किसी लड़की की शादी होती है तो उसका असली घर  ससुराल होता है  फिर तो कभी कभार या काज परोजन पड़ने पर ही वो मायके आती है वरना बाल बच्चे होने के बाद अपनी गृहस्थी में ही इतना रुंध जाती है कि उसे जाने का मौका ही नही लगता बिल्कुल ठीक यही  यशी के साथ भी हुआ ।

जब तक पढ़ी लिखी मायके में रही विवाह योग्य हुई तो  मां -बाप ने सुंदर घर वर देखके विवाह कर दिया। उसके बाद  उसका जीवन ठीक ठाक चल भी रहा था भाई कुछ सालों में वो दो बच्चों की मां बन गई और जब मां बन गई तो उसका मन पूरी तौर से गृहस्थी में रच बस गया।

पर होनी को कौन टाल सकता है बच्चे अभी पढ़ ही रहे थे की जिंदगी में भूचाल सा आ गया पति को किडनी की बीमारी हुई और वो चल बसे ।

जब वो चल बसे तो अकेले ही  कच्ची गृहस्थी के साथ दिन काटने लगी, हलाकि लोगों ने ढाढ़स साथ था पर पति की जगह तो कोई नही ले सकता ना ऐसे में उसे अपने पति की जगह पर  नौकरी करनी पड़ी ।ये पहाड़ सी जिंदगी कटती कैसे कोई कब तक सहारा देता इसलिए दिल पर पत्थर रख कर कर ली।

जैसे तैसे जिंदगी काटने लगी।पर कहते है ना कि बिना बाप के बच्चे थोड़े ढीठ हो जाते है।बस  वही यहाँ भी हुआ ये कुछ कहती  तो बच्चे कुछ करते ,ऐसे में जब उसने देखा माहौल कुछ ज्यादा ही खराब हो रहा तो बड़े बेटे की शादी का फैसला लिया हलाकि वो करने को तैयार नही था पर जोर दबाव से मान गया और एक नई लड़की का आगमन घर में हुआ।

जब वो आई तो घर का माहौल कुछ बदला पर वो स्थाई ना रह सकता ऐसे में इसे फिक्र होने लगी कि अब तो उसका रिटायरमेंट भी पास आ रहा है और छोटा बेटा शादी करने को तैयार नही है ऐसे में वो क्या करे फिर उसने बहुत सोचने समझने के बाद एक ठोस कदम उठाया वो ये की न वो घर में रहेगी ना वृद्धाश्रम बल्कि स्वयं से एक आश्रम में आश्रय लेगी

जिससे बची हुई जिंदगी वो चैन से गुजार सके  हलाकि बहुत मुश्किल काम था पर जिंदगी सुकून से जीनी थी इसलिए उसे यह कदम उठाना पड़ता ।इतने में बेटे ने आकर झकझोरते हुए पूछा अरे मां अभी कल ही तो रिटायरमेंट हुई हो और आज सामान पैक करके कहां जा रही हो तो उसने पति की तस्वीर उठाते हुए

नीली आंखों से बोली  बेटा हम हमेशा तुम्हारे साथ रहेंगे जब भी जरूरत पड़े गी आयेंगे पर साथ नही रहेंगे अब ये मत सोचना की वृद्धाश्रम जा रही हूं मैं हमेशा के आश्रम जा रही हूं अब वही रहूंगी हां तुम लोगों

का मन करे तै मिलने आ जाना हम भी आते जातेह रहेंगे कहते हुए पति की तस्वीर सीखने से लगा ट्राली बैग उठाया और बाहर खड़ी गाड़ी में बैठी और आश्रम की ओर चली गई जिसे भीतर खड़े बेटे बहू और बच्चे देखते रह गए। 

स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना

कंचन श्रीवास्तव आरज़ू प्रयागराज

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