घमंड – शुभ्रा मिश्रा : Moral Stories in Hindi 

अरे! सविता जी कहाँ रह रही है आजकल आप? दिखाई ही नहीं दे रही है।जब से बेटे के यहाँ से आई हूँ आप दिखाई ही नहीं दी। बाजार में सविता जी को देखकर पुष्पा जी नें उन्हें पुकारा।कहाँ रहूंगी घर पर ही हूँ,सविता जी नें एकदम फीकी अभिव्यक्ति दी।हाँ जी अब तो घर पर ही रहेंगी, बहू जो आ गईं है।खूब सेवा कर रही होंगी। बहू की सेवा का आनंद छोड़कर हम सहेलियों की सुध अब आप क्यों

लेंगी? चलो आपके तो मजे ही मजे है। मै तो आपके बेटे के विवाह के वक़्त शहर में नहीं थी, पर पता चला कि बहू सुंदर और पढ़ी लिखी तो है ही साथ ही खूब दान दहेज भी लाई है।अच्छा है मजे ही मजे है आपके। मजे वाली बात जान बूझकर बार बार पुष्पा जी दोहरा रही थी। उन्हें दूसरे पड़ोसियों से पता चल चुका था कि सविता जी की बहू घर के एक काम को भी हाथ नहीं लगाती है।इतना दान दहेज

लेकर आई है इस बात का उसे बहुत घमंड है। सीधे मुँह पर कहती है आपको काम करना है तो करिये किसने मना किया है,पर मै क्यों काम करू मेरे पापा नें इतना दान दहेज देकर अफसर लडके से मेरा विवाह क्या काम करने के लिए किया है?कही जाना हो तो कभी भी सास से पूछना तो बहुत दूर

की बात है बताना भी जरूरी नहीं समझती है। बेटा भी उसी के रंग में रंग गया है।जो बहू कहती है बस उसे वही करता है ।यही सविता जी है जो बेटा के क्लास वन अफसर होने के घमंड में अपने आगे किसी को नहीं लगाती थी।कहती थी,मेरा बेटा इस मुहल्ले के सभी के बच्चो से बड़ा अफसर है।जो भी

लड़की वाला रिश्ता लेकर आता तो उसमे कोई ना कोई कमी निकाल देती थी। पुष्पा जी नें भी अपनी भतीजी के लिए बात चलाई थी, पर यह कहकर की बुरा मत मानना पर आपके भाई क्लर्क है तो यह अच्छा नहीं लगेगा कि इतने बड़े अफसर का ससुर क्लर्क हो, रिश्ते से साफ इंकार कर दिया था।बहू

इनकी कोई बात नहीं मानती जब मन चाहा घूमने चल देती है।यहाँ तक की मायके भी इनसे बिना पूछे चली जाती है। यह सब जानकर पुष्पा जी मन ही मन बहुत प्रसन्न हो रही थी और इसी लिए बार बार बहू की सेवा, बहू का दहेज, बहू के पापा का अफसर होने का तंज कस रही थी। पुष्पा जी की

बातो को सुनकर सविता जी नें कहा अब आपसे क्या छिपाना है।आप तो हमारी पड़ोसी है।आज नहीं तो कल सब जान ही जाइएगा।क्यों क्या कुछ बात है? दहेज वाली बात गलत है क्या?पुष्पा जी नें अनजान बनने का नाटक करते हुए पूछा। नहीं वह तो सही ही है,पर बहू का व्यवहार सही नहीं है।

हमारा ज़रा भी आदर या लिहाज नहीं करती है और नहीं तो बेटा भी उसी के कहे अनुसार चलता है। हमारी तो घर में कुछ इज्जत ही नहीं रह गईं है सविता जी नें रूआँसा मुँह बना कर कहाँ। ओह्ह, क्या करियेगा सविता जी,यह तो जैसे जमाने का चलन ही हो गया है। आजकल की बहूए कहाँ सास को

कोई इज्जत दे रही है बस मायका ही सब कुछ रहता है और नहीं तो शादी के बाद बेटे भी ससुराल के हो के रह जाते है। दुखी मत होइए यह तो सभी माँओ पर बीत रही है। पुष्पा जी बाहर बाहर से तो सविता जी को सांत्वना दे रही थी, पर अंदर ही अंदर बहुत खुश थी और कह रही थी, मैंने जब अपनी भतीजी से रिश्ता करने को कहा था तो उस समय तो पैर धरती पर ही नहीं था लो अब भुगतो।

मुहावरा — एक आँख से रोवे एक आँख से हँसे 

  शुभ्र मिश्रा

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