Moral stories in hindi : “नहीं मां! तुम आज काम पर नहीं जाओगी। पिछले कई दिनों से तुम्हारी तबीयत ठीक नहीं और तुम्हें काम पर जाना पड़ रहा है। अभी तुम आराम करो जब ठीक हो जाओगी तब जाना। मैं चली जाती हूं न! जब तक तुम ठीक नहीं हो जाती मैं जाऊंगी बर्तन -चौका करने।” खुशी ने चारपाई पर बुखार में पड़ी अपनी मां माया से कहा। “तुम??तुम जाओगी काम करने!नहीं,कभी नहीं। मेरे जीते जी यह नहीं हो सकता।मैं ठीक हूं,थोड़ा शरीर गर्म हो गया है और कुछ नहीं।” झट उठ लड़खड़ाते हुए तेजी से झोपड़ी से बाहर निकल गई। खुशी चिल्लाते रह गई लेकिन उसकी मां माया , रुकी नहीं ,चल दी।
खुशी की मां कई घरों में बर्तन- चौका का काम करती थी और उसके पापा मजदूरी, जिससे खुशी की पढ़ाई में किसी तरह की कोई दिक्कत ना हो।
खुशी अपने मां-बाप की इकलौती संतान थी।दोनों उसे बहुत प्यार करते थे।उनकी दिली इच्छा थी कि खुशी पढ़े, हमारी तरह अनपढ़ ना रहे। माया अपनी बेटी खुशी को कभी भी अपने साथ काम पर नहीं ले जाती थी। वह नहीं चाहती थी कि उसकी बेटी को कोई ‘काम वाली बाई’ की बेटी कहे।माया एक सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। खुशी के पापा पांचवी पास थे पैसे की कमी की वजह से आगे पढ़ाई ना कर पाए इसलिए वह अपनी बेटी को पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। पांचवी तक तो वह अपनी बेटी खुशी को खुद पढ़ाए थे । आगे उनके बस की बात नहीं थी।
अब खुशी दसवीं में आ चुकी है लेकिन उसने ना कोई ट्यूशन की और ना ही कोचिंग। स्वयं पढ़ाई करती थी। सभी शिक्षक खुशी को बहुत मानते थे। एक तो पढ़ाई में अच्छी थी दूसरी उसकी शालीनता।
स्कूल पी .टी.एम उसके पापा ही जाया करते थे लेकिन कभी कोई शिक्षक ने उसकी शिकायत नहीं की बल्कि उसकी तारीफ ही करते थे। वह अच्छे नंबरों से पास करती थी।
उस दिन बोर्ड परीक्षा का पहला दिन था। खुशी से ज्यादा उसके मां -पापा घबराए हुए थे। दोनों सुबह नहा -धोकर मंदिर गए और पूजा अर्चना की जिससे कि खुशी की परीक्षा अच्छा जाए। दोनों बेटी को ले परीक्षा केंद्र पहुंचे। खुशी मां- पापा के पैर छू परीक्षा हॉल में चली गई। उसकी मां -पापा दोनों परीक्षा केंद्र के बाहर बेटी के परीक्षा दे वापस आने की प्रतीक्षा कर रहे थे। दोनों यही चिंता करते रहे कि पता नहीं परीक्षा कैसी जाएगी। परीक्षा समाप्ति की घंटी बजी। बाहर आ रही बेटी के मुस्कुराते चेहरे को देख दोनों समझ गए की परीक्षा अच्छी गई है। खुशी नेआते ही चहकते हुए कहा,” परीक्षा बढ़िया गया है।” अपने मां -पापा के साथ ही परीक्षा देने जाती थी।
उसके सारे पेपर्स अच्छे हुए। अब प्रतीक्षा थी रिजल्ट की।
जिस दिन रिजल्ट आया तो खुशी और उसके मां- पापा को खुशी का ठिकाना ना रहा। वह स्कूल में ही नहीं, पूरे जिले में प्रथम आई थी।हर जगह यही चर्चा हो रही थी कि’ कामवाली की बेटी ‘ने टॉप किया है।
उसे स्कूल में सम्मानित करने के लिए बुलाया गया। वह अपने मां -पापा के साथ स्कूल पहुंची। प्रिंसिपल ने उसे सम्मानित किया और कहा,” मुझे तुम पर गर्व है तूने इस स्कूल को ही नहीं, पूरे जिले को गौरवान्वित किया है। तुम्हें कुछ कहना हो तो बोलो।” खुशी को माइक पकड़ाते हुए प्रिंसिपल ने कहा।
खुशी भर्राई आवाज में बोली,” मुझे अपने पर नहीं अपने मां-पापा पर गर्व है कि मैं इनकी बेटी हूं ।मेरे पापा मजदूरी कर और मां ने लोगों के घर बर्तन- चौका कर मुझे पढ़ाया और कभी कोई कमी न होने दी। मेरे ही क्लास के कुछ बच्चों ने मुझे ‘कामवाली बाई की बेटी’ कह कर हंसते थे और चिढ़ाते थे ।उस
वक्त मुझे बहुत रोना आता था लेकिन मेरे मां- पापा ने कभी मुझे टूटने नहीं दिया। हमेशा मेरे मनोबल को बढाया।
मेरी मां की तबीयत भी खराब होती थी तब भी काम पर जाया करती थी। यदि नहीं जाती तो महीने से पैसे काट लिए जाते थे इसलिए मां ने कभी छुट्टियां नहीं ली।हां, एक वर्मा आंटी ही थी जिन्होंने कभी पैसे नहीं काटे और मां को छुट्टी कर देती थी जब तक की मां स्वस्थ ना हो जाए। मेरी पढ़ाई में भी कभी- कभार मदद कर दिया करती थी। मैं उनका एहसान जिंदगी भर नहीं भूल पाउंगी।
एक और बात मैं साझा कर रही हूं- जब मेरा रिजल्ट आया और लोगों को पता चला कि मैं ही ‘कामवाली बाई की लड़की हूं ‘तो मोहल्ले के वही लोग मेरे घर पर बधाइयां देने पहुंचे जो कभी हमारी आलोचना करते थे यह कहकर कि तुम्हें पढ़ने की क्या जरूरत?और वही लोग मेरे लिए मिठाई लेकर पहुंचे ।”
खुशी के
मां -पापा को बुलाया गया। दोनों जब स्टेज पर पहुंचे तो खुशी उनसे लिपट गई और तीनों की आंखों से खुशी के आंसुओ की बरसात होने लगी और पूरा स्कूल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा….।
संगीता श्रीवास्तव
लखनऊ
स्वरचित, अप्रकाशित।