“अब क्या हुआ, अब क्यों रो रहे हो आप…निकाल लीजिए अपने बेटे के सभी अंग और बेच दीजिए अच्छी कीमतों पर….
आप तो बहुत होशियार सर्जन हैं…..कोई तकलीफ भी नहीं होगी आपको….
“अपने 10 वर्षीय बेटे के शव पर विलाप करती मधु चीख चीखकर अपने पति डॉ. मयंक से कह रही थी।
उसका इकलौता बेटा नमन जो बहुत ही मन्नतों के बाद विवाह के 10 साल बाद हुआ था,
छत पर खेलते समय नीचे गिर गया और मौके पर ही मौत हो गई थी।
उसके पति मयंक शहर के नामी डॉक्टर थे लेकिन वह गैर कानूनी कार्य भी करते थे जैसे–भ्रूण परीक्षण करके बेटियां न चाहने वालों का साथ देना…
बेटियों के भ्रूण को गाजर मूली समझकर समाप्त कर देना, ऐसे ही अगर कोई मरीज ऑपरेशन से पहले ही
या ऑपरेशन के वक्त खत्म हो जाता तो उसके परिवारीजनों को बिना बताए
उसके अच्छे अच्छे अंग निकाल लेना और बड़ी सफाई से उसका खोखला शब उसके घर वालों को सौंप देना आदि
जब मधु कहती कि ऐसे काम मत किया करो पाप लगेगा तो कहते अरे कुछ नहीं होता
जब घर वाले ही लडकी नहीं चाहते तो हम क्या करें, और ऐसे ही जब मरीज ही मर गया तो उसके अंगों को निकालने में क्या है….
किसी को क्या पता चलता है और हमें भी अंगों की अच्छी कीमत भी मिल जाती है।
“पैसा, पैसा, पैसा …और कमाओ चाहे जैसे भी अधिक पैसा फिर करना अपने शौक मौज पूरे…अरे अब तो तुम्हारा खर्चा कराने वाला भी कोई नहीं है यहां….
हाय मेरा बेटा…..” कहती हुई मधु बेहोश हो गई।
डॉक्टर साहब एक तरफ खड़े अपनें कर्मो को याद करके पश्चाताप की अग्नि में जल रहे थे… आज उन्हें अहसास हो गया था कि कर्मो का फल किसी न किसी रूप में जरूर मिलता है।
प्रतिभा भारद्वाज ’प्रभा’
मथुरा (उत्तर प्रदेश)