दूल्हे का छोटा भाई चेतन और उसकी यार चौकड़ी, बड़े भैया की शादी के पूरे आनंद अपने हृदय में और यादों में समेट लेना चाहते थे. हॉस्टल के नीरस जीवन से निकलकर बड़े भाई की शादी में मित्रों के साथ आये चेतन के लिए बड़े भैया की शादी, धमाचौकड़ी मचाने, लड़कियों को छेड़ने और तरह तरह के स्वादिष्ट भोजन का लुत्फ़ उठाने का
अभूतपूर्व अवसर था और वो इसमें कोई कोर कसर नहीं छोड़ना चाहते थे. कॉलेज के दोस्तों की पूरी टीम पंडाल में घूम घूमकर मजे कर रही थी. कभी किसी चाट के काउंटर पर टूट पड़ते तो कभी किसी बैरे पर बरातियों वाला रुआब झाड़ते.
तभी सामने से एक बेहद सुंदर सी लड़की समारोह के परिधान से सजी धजी, चहरे पर जिम्मेदारी और व्यस्तता के भाव लिए सामने से आती दिखाई दी.
चेतन के दोस्त रमन ने कोहनी मारकर कहा “अबे देख, तेरा माल आ रहा है. कुछ भी कहो यार, दूल्हे की बहना है पूरा पटाखा… अबे तेरा तो हक बनाता है. साली है साली.”
“पटाखा क्या पूरा डायनामाइट है यार. क्या बाल क्या चाल और…”
“और क्या?
“और क्या…. अरे, क्या बाल, क्या चाल और किन्नौर के रसीले सेबों जैसे गाल… बस माल ही माल. गुरू इस को पटा ले. तेरी तो लाइफ बन जाएगी गुरू”.
“हा हा हा हा ” सारे मित्र एक साथ ठहाका लगाकर हंस दिए.
“मैंने तो नाम भी पता कर लिया है”. जय सिंह ने आँख मारते हुए कहा. “निम्मो-निम्मो बोलते हैं सब. अरे निम्मो भी कोई नाम हुआ भला. हा हा हा हा”.
“देख… देख, इधर ही आ रही है गुरू. फैर्स्ट इम्प्रेशन मार ही डाल”.
चेतन ने अपना चश्मा ठीक किया. जय सिंह ने जल्दी से बालों में कंघी घुमाई और उस और बढ़ गए जिधर दुल्हन की बहन निर्मल व्यवस्थाओं में व्यस्त सी तेज चाल से चली आ रही थी.
“क्या निम्मो जी, एक नजर हमारी तरफ भी डाल लो” रमन से बड़े स्टाइल से काले चश्मे के ऊपर से देखते हुए कहा.
“अरे हम भी दूल्हे के कुछ लगते हैं बुलबुल. इतना हक़ तो हमारा भी बनता है” चेतन ने लड़की के और निकट सरकते हुए दोस्तों पर इंप्रेशन जमाने के लिए कहा.
निर्मल ने नजरें उठाकर चेतन की तरफ देखा. पान में सने हुए होंठ, चढ़ी हुई सी ऑंखें जैसे नशा कर रखा हो और चहरे पर अश्लील सी मुस्कान. उसके माथे पर बल पड़ गए और हाथ में लिया हुआ बर्तन वहीं मेजपर पटक कर तेजी से घर के भीतर की और भाग गई.
पीछे से कई अस्फुट फब्तियां और अविवेकपूर्ण हंसी के स्वर सुनायी दिए. किसी ने कहा “अरे निम्मो तो हमारे सलमान चाचा की बकरी का नाम है”.
दुसरे ने कहा “नकचढ़ी भी उसी की तरह लगती है. हा हा हा”.
पी.डब्ल्यू.डी. में इंजीनियर भगवान् सहाय की दो ही बेटियां थीं. एक उर्मिल, जिसका विवाह चेतन के बड़े भाई से संपन्न हुआ था और दूसरी निर्मल, जिसे घर में सब निम्मो कहते थे.
दुर्भाग्यवश बड़ी बेटी उर्मिल के विवाह के एक वर्ष बाद इंजीनियर साहब डिपार्टमेंट के किसी स्कैंडल में फंस गए. नौबत जेल जाने तक पहुँच गयी तो एक सुबह निर्मल और उसकी माँ ने देखा कि इंजीनियर भगवान् सहाय का शरीर पंखे से लटक रहा है. उन्होंने आत्महत्या कर ली थी. परिवार के सर पर दुखों का पहाड़ टूट पड़ा था.
दो वर्ष बाद इंजीनियर साहब की दूसरी बरसी के अवसर पर उर्मिल, निर्मल और उनकी माँ एक साथ बैठकर पुराने दिनों को याद कर रही थीं. तीनो की आँखें नम थीं.
“मैंने माँ को सलाह दी है कि तुम्हारी शादी ‘इनके’ छोटे भाई, मेरे देवर चेतन से करा दी जाय” उर्मिल ने सहज भाव से कहा. “मैंने तो उधर हल्की सी बात भी छेड़ी है”.
“क्या!” निर्मल को जैसे बिजली का करंट लगा हो. “वो लफंगा जिसे लड़कियों से बात करने की तमीज भी नहीं. अपने भाई की शादी में शराब पीकर लड़कियां छेड़ रहा था. मुझे नहीं करनी उस से शादी.” निर्मल में बिफरकर कहा.
कुछ पल शांति छाई रही. फिर माँ ने धीरे धीरे बोलना शुरू किया “देख बेटा, तुम्हारे पापा की बड़ी हसरत थी कि अपनी दोनों बेटियों की शादी किसी इंजीनियर या डॉक्टर के साथ धूमधाम से करें… और उन्होंने उर्मिल की शादी में कोई कसर भी नहीं छोड़ी…
मगर उनके जाने के बाद, घर के हालात तो तुम्हे पता ही हैं. अब तो गहने बिकने की नौबत आ चुकी है. उर्मिल के दान दहेज़ में और तेरी पढ़ाई में सब खर्च हो गया. देख निम्मो बेटा, जिंदगी में पैसा बहुत बड़ी चीज है. हम जिस हालत से गुजर रहे हैं… ” और वो पल्लू में मुँह छुपाकर रोने लगीं.
“तुम बताओ उर्मिल दीदी. क्या वो शराब नहीं पीता है. लफंगे दोस्तों के साथ दस तरह के ऐब करता होगा. ऐसा लड़का भला मुझे जिंदगी में क्या सुख दे पायेगा”.
“शराब… पता नहीं निम्मो. जब से मैं उस घर में गयी हूँ, चेतन अधिकतर बाहर ही रहा है. पहले पढ़ाई में और अब अपनी जॉब में. छोटा है तो माँ बाप का लाड़ला है. मैं दावे के साथ तो नहीं कह सकती कि दूर रहकर वो क्या करता है मगर… टॉपर रहा है चेतन. अब कमाता भी अच्छा है. देख निम्मो बहना, हमारे पास ज्यादा ऑप्शन नहीं हैं. मुफलिसी में हैं तो तुझे किसी चपरासी के पल्ले भी तो नहीं बांध सकते कि जिंदगी भर तू छोटी छोटी जरूरतों के लिए तरसती रहे.”
“कुछ भी हो दीदी. मुझे ना करनी उस लफंगे से शादी. बस बरात में एक बार ही तो देखा था उसे. माथे पर लहराती जुल्फें, पान में सने होंठ, लड़खड़ाती चाल और आवारगी. किसी भिखमंगे के साथ बाँध दो मगर…”
“निम्मो… तुझे अपने संसकार और प्रेम पर विशवास नहीं है. प्रेम वो पारस पत्थर है जो लोहे को भी सौना बना देता है. अगर उसमे कुछ कमियां रही भी होंगी तो क्या तेरा सदव्यवहार, तेरे संस्कार और अनुराग उसे ठीक नहीं कर सकते क्या?
अपने ऊपर भी तो विश्वास रख मेरी छुटकी बहाना. और… और फिर उस घर में सम्पन्नता है, समाज में इज्जत है. जिंदगी भर तुझे किसी चीज की कमी न रहेगी. अब देख ना. मैंने अपने स्वसुर जी से एक बार ही तेरा प्रस्ताव रखा था और उन्होंने तुरंत हां कर दी. कौन सा ऐसा पैसे वाला परिवार है जो इस मंडी में अपने लाल को मंदा बेचने को तैयार हो”.
घर के हालात और माँ की मजबूरी से बाध्य होकर स्वयं को भाग्य और हालात के आगे समर्पित करते हुए निर्मल ने जब ‘बचन राय’ की बिजली के बल्ब और फूलों की सजावट से लकदक करती कोठी में प्रवेश किया तो स्वागत की शहनाइयां बज उठी थीं. सास ससुर ने प्यार से उसे गले लगा लिया था।
रात ग्यारह बजे निर्मल को उसके कमरे में अकेला छोड़कर सारा परिवार सोने चला गया। रात के एक बज गए मगर चेतन का कहीं अता पता नहीं था. निर्मल एक ऐसे पति के आगमन की प्रतीक्षा कर रही थी, जैसा फिल्मो में खलनायक होता है. वो अपने दोस्तों के साथ कहीं शराब पी रहा होगा. अपनी सुहागरात की मर्दानगी बयान कर रहा होगा. शराब के नशे में धुत्त होकर कमरे में प्रवेश करेगा और फिर… फिर हमारी एक बलात्कार जैसी सुहागरात संपन्न होगी.
अपने पिता के असमय चले जाने से भाग्य पर लगे इस कलुष के कारण गहन दुःख से बार बार उसकी ऑंखें भर आती थीं. हाय मेरे दुर्भाग्य ने मुझे न जाने किस ठौर बैठा दिया है। काश आज पापाजी जिंदा होते तो उसे इस कुए में कभी नहीं धकेलने देते।
रात दो बजे धड़ाक से दरवाजा खुला. चेतन ने अपनी सिलवटों से भरी विवाह की शेरवानी उतारकर एक और उछाल दी और धम्म से निर्मल के निकट बिस्तर पर बैठ गया. कुछ देर एकदम सन्नाटा रहा. सब कुछ मौन.
निर्मल का दिल धाड़ धाड़ बज रहा था और स्वयं को अगले किसी भी पल घटने वाली घटना के लिए मानसिक और शारीरिक तौर पर तैयार कर रही थी.
फिर चेतन ने बेसाख्ता निर्मल का हाथ अपने हाथ में लिया और बहुत सधे हुए शब्दों में बोलने लगा. “भैया की शादी में तुम्हारे साथ जो व्यवहार हुआ, उसके लिए आय एम् सॉरी. दरअसल वो कॉलेज की लाइफ थी नीर्मला जी. बहुत पीछे छूट गयी”. फिर वो कुछ देर शांत रहा. जैसे अगले शब्द ढून्ढ रहा हो. फिर किसी अपराधी की तरह सहमे से शब्दों में बोलना शुरू किया “आज…
हमारे वैवाहिक जीवन के पहले ही दिन देर तक बाहर रहने के लिए मुझे तुम क्षमा कर दोगी ऐसा मुझे विश्वास है. दरअसल मेरे एक अज़ीज दोस्त का स्कूटर से एक्सीडेंट हो गया था. अगर आज मैं उसे नहीं संभालता तो… हस्पताल में रुकना पड़ा”.
फिर उसने स्टूल पर पड़ा पानी का ग्लास उठाकर पूरा हलक में उंडेल लिया और निर्मल के थोड़ा और करीब आकर उसके दोनों हाथ अपने हाथ में थाम लिए और एक एक शब्द में अनुराग उंडेलते हुए बोलने लगा “निम्म …… निर्मल जी, मैं शराब नहीं पीता. जिंदगी में कभी छुई भी नहीं. भाभी जी ने बताया कि… कॉलेज के ज़माने की एक मुलाकात में तुम ने मेरे बारे में क्या राय बना ली थी, उसमे
तुम्हारा तो कोई दोष नहीं मगर… मगर उस दिन तुम्हारा लजाना, फिर चेहरे पर गुलाबी गुस्सा, तमककर प्लेट छेड़कर चले जाना… बस मैंने उसी दिन निश्चय कर लिया था कि मेरे जीवन में कोई आएगी तो यही लड़की आएगी. मेरी निम्मो. ईशवर से जो मांगो वो सब कुछ नहीं मिलता किन्तु… मुझे मिला है। अब तुम मेरी प्यारी पत्नी हो. देखो न,
परमात्मा ने तुम्हारे रूप में एक अमूल्य रत्न मेरे झोली में दाल दिया है. अब अगर मुझसे कभी भी कोई गलती हो तो … ” उसने निर्मल के दोनों हाथ पकड़कर अपने कानो पर रख लिए और कहा “मेरे कान पकड़ लेने का तुम्हे पूरा अधिकार है. जिंदगी भर”.
निर्मल को लगा कि सौभाग्य के स्वर्णिम द्वार अचानक उसके सामने खुल गए हैं. सहज ही उसने अपना सर चेतन के कंधे पर टिका दिया.
रवीन्द्र कान्त त्यागी