फैसला – एम पी सिंह

अशोक अपने बेटे और माँ के साथ दिल्ली मैं रहता था और प्राइवेट बैंक मैं क्लर्क था. अशोक कि शादी 6 साल पहले कमला से हुई थी, शुरू के 2 साल तक सब कुछ ठीक था. फिर कमला के पॉव भारी हुए और घर मैं खुशियों का माहौल बन गया. धीरे धीरे समय बीतता गया और डिलेवरी का दिन भी आ गया.

भगवान कि शायद कुछ और ही मर्ज़ी थी, कमला ने एक प्यारे से बेटे को जन्म दिया और खुद दुनिया को अलविदा कर दिया. अशोक के दिमाग़ ने तो काम करना ही बंद कर दिया, गोद मैं बेटा, सामने कमला का पार्थिव शरीर, बगल मे बूढ़ी माँ. पड़ोसी और रिश्तेदारों ने सबको संभाला और कमला का अंतिम संस्कार किया.

कुछ दिन बाद सब रिस्तेदार अपने घर चले गए और माँ ने बच्चे को संभाला. समय के साथ साथ अशोक भी अपनी नोकरी मैं व्यस्त हो गया और बेटा अंश भी 4 साल का हो गया. अब माँ कि तबीयत भी पहले जैसी नहीं थी. माँ अशोक से शादी करने के लिए कहती, तेरा घर सम्भल जायेगा,

अंश को माँ मिल जाएगी, पता नहीं मेरा कब बुलावा आ जाये. अशोक शादी के लिए राज़ी नहीं था. फिर एक दिन अशोक के बैंक मे एक लड़की ट्रांसफर होकर आई, नाम था खुशी, उम्र लगभग 30-35 साल, उसकी सीट अशोक के बिलकुल साथ वाली. दोनों मैं अक्सर बात चीत होती.

खुशी अपनी पर्सनल बातें ज्यादा डिस्कस नहीं करती थी, अशोक को बस इतना पता था कि 1 साल पहले उसका पति रोड एक्सीडेंट मे मारा गया और वो अपने ससुराल मे रहती है. हम उम्र और एक सी स्तिथि होने के कारण अशोक और खुशी अच्छे दोस्त बन गए. ये दोस्ती कब गहरी हो गई पता नहीं चला.

एकदिन अशोक ने खुशी से शादी करने कि इच्छा जताई. खुशी ने सोचने का समय माँगा. कुछ दिन बाद खुशी ने अशोक से कहा, मैं शादी करने से पहले कुछ विषयो पर आपसी विचार विमर्श करना चाहती हूँ, उसके बाद ही सहमति दूगी. खुशी ने बोलना शुरू किया,

की उसके माँ बाप नहीं है, उसकी शादी मामा ने की थी, पर अब वो भी इस दुनिया मे नहीं है. मैं अपने सास ससुर को अपने माता पिता मानती हूँ और शादी के बाद भी उनकी देखभाल करुँगी. मेरी एक बेटी भी है और शादी के बाद वो मेरे साथ रहेगी. तुमको कुछ और जानना हो तो पूछ सकते हो.

अशोक बोला, तुमने अपनी बेटी के बारे मे पहले कभी नहीं बताया? खुशी बोली, पहले ऐसी कोई बात ही नहीं हुई, पर अब तो सब कुछ बता दिया. ये सब कुछ जानने के बाद तुम सोच समझ कर जो भी फैसला करोगे, मुझे मंजूर होगा. 

अशोक बोला, मुझे सब मंज़ूर है पर तुम्हे अपनी बेटी को अपने से दूर करना होगा, मे तुम्हारी बेटी की जिम्मेदारी नहीं ले सकता. खुशी बोली, अब ये भी बतादो कि मैं अपनी बेटी को किसके पास छोडूं ?

जब मुझे तुम्हारे बेटे कि जिम्मेदारी लेने मै कोई परेशानी नहीं है तो तुम्हे मेरी बेटी से क्या परेशानी है? मै भी तो एक लड़की हूँ, कल तुम मेरी जिम्मेदारी से भी मुँह मोड़ लोगे तो? अशोक बोला, अंश एक लड़का है, वो वंश को आगे बढ़ाएगा और कुल का नाम रोशन करेगा. 

अशोक कि बात सुनकर खुशी को बहुत गुस्सा आया और वो लगभग चिल्लाते हुए बोली, मुझे तुम्हारी मानसिकता पर तरस आता है कि तुम आज के इस दौर मै भी लड़का- लड़की मै भेदभाव करते हो? कल अगर हमारी ओलाद भी लड़की हुई, तो तुम उसके साथ भी दौरम दर्जे का व्यवहार करोगे.

मै अपनी ओलाद को घुट घुट कर जीते हुए नहीं देख सकती. जैसे तुम बाप होकर जिम्मेदारिओ से मुँह मोड़ रहे हो, वैसे ही संस्कार बंश मैं भी मिलेंगे. 

 मुझे माफ करना, मै तुमसे शादी नहीं कर सकती. 

क्योंकि हम दोनो एक ही ऑफिस मे काम करते है और रोज़ मिलना जुलना तो होगा ही, इसलिए हमारी दोस्ती पहले जैसी ही रहेगी, ये कहते हुए बिना उसकी प्रतिक्रिया जाने वहाँ से चली गई. 

आज के इस दौर मे भी लोग लड़का लड़की मे भेदभाव करते है. अशोक जैसे कुछ लोगों के न चाहते हुए भी लड़कियों ने वो बड़े बड़े मुकाम हासिल किये है जो बहुत से लड़को के लिए किसी सपने से कम नहीं. वर्ड कप 2025 इसका जीता जागता उदाहरण है.

खुशी का शादी से इंकार करने का फैसला कितना सही या गलत था, अपनी राय अवश्य दें.

लेखक

एम पी सिंह 

(Mohindra Singh )

स्वरचित, अप्रकाशित 

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