फ़ैसला – करुणा मलिक : Moral Stories in Hindi

संजीव ! जा एक बार अपनी माँ को आई० सी० यू० में जाकर देख कर आ …. बड़ा जी घबरा रहा है बेटा ।

बाबा , इस तरह बार-बार जाने नहीं देते …. अब तो शाम को ही जा सकते हैं । चलिए, आपको घर छोड़कर आता हूँ । अभी मीना और नीरा यहीं है , तब तक मैं आ जाऊँगा । 

ना बेटा … आज तो कालजे में धड़क- धड़क हो रही है । जा … तू ऐसा कर … तू चला जा । मैं तो आज यहीं रुक जाऊँगा ।

नहीं बाबा …. उठो , चलो मेरे साथ…. क्या होगा यहाँ बाहर बैठकर …. फिर बाद में कौन ले जाएगा आपको घर ? 

तभी छोटी बहन नीरा बोली —-

भइया … आप आराम से जाओ । मैं जाते समय बाबा को घर छोड़ती चली जाऊँगी…. अगर इनका अभी मन नहीं है तो ज़बरदस्ती मत करो । 

बहन की बात से सहमत होकर संजीव घर थोड़ा आराम करने और रात में रुकने की तैयारी के इरादे से चला गया । दो दिन पहले ही उसकी माँ बाथरुम में फिसल कर गई थी…. गिरते ही सिर दीवार से जा टकराया और वे बेहोश हो गई ।

अस्पताल में आकर पता चला कि ब्रेनहेमरेज हो गया है…. आई० सी० यू० में भर्ती थी । दिन में तो संजीव के पिता भूषण जी के पास कोई न कोई रिश्तेदार आता रहता था । दोनों बेटियाँ मीना , नीरा भी उसी शहर में रहती थी । 

मीना के पति की कोरोना के समय मृत्यु हो गई थी और अब वह अपने  बूढ़े सास- ससुर तथा  अपनी तीन लड़कियों के साथ वहीं रहती थी । घर में ही परचून की छोटी सी दुकान खोली हुई थी । पर नीरा का विवाह काफ़ी बड़े घर में हुआ था । पति एक अच्छी कंपनी में कार्यरत थे । ससुर भी रिटायर्ड जज थे ।

दो बेटे थे जो शहर के काफ़ी महँगे स्कूल में पढ़ रहे थे । संजीव भी इनकम टैक्स डिपार्टमेंट में उच्च पद पर नियुक्त थे …. हाँ कुछ महीने पहले ही उनका तबादला दूसरे शहर में हुआ था पर वे हर रोज़ गाड़ी से आते जाते थे । उनकी पत्नी शिखा सरकारी अध्यापिका थी और शहर के पास के छोटे क़स्बे में रोज़ घर से अप-डाउन करती थी । 

भूषण जी बैंक मैनेजर के पद से रिटायर होकर अपनी पत्नी कमलेश और बच्चों के साथ आराम से रहते थे ।  मीना के कारण  कमलेश जी चिंतित रहती थी । वे अक्सर अपने पति भूषण जी से कहती थी—-

भगवान की दया से सब कुछ बढ़िया है । बस …. मीना की चिंता रहती है । चारों तरफ़ से उस पर ही वक़्त की मार पड़ी है । वैसे तो नीरा और संजीव उसकी मदद करते हैं और तीनों भाई- बहनों में प्यार भी बहुत है पर मन में संतुष्टि नहीं है जी …. ऐसा करेंगे कि जो मेरा खुद का ज़ेवर है वो मैं मीना को ही देना चाहती हूँ….. कम से कम कुछ तो हौसला रहेगा । 

हाँ- हाँ….. जब समय आएगा, कर लेना जैसा तुम्हें ठीक लगेगा । वो नोएडा वाला फ़्लैट भी सोच रहा हूँ कि उसे दे दूँ । नीरा को  तो ज़रूरत नहीं…. रही बात संजीव की …. ये घर और गाँव की सारी ज़मीन तथा दो ख़ाली प्लॉट पड़े हैं…. उसके लिए भी बहुत है …. 

भूषण जी और उनकी पत्नी बेटी मीना की काफ़ी मदद करते रहते थे । कभी तीज- त्योहार के बहाने तो कभी बच्चों के जन्मदिन वग़ैरहा पर ….. इस तरह लेना-देना करते कि उन्हें भी बुरा ना लगे और किसी चीज़ की कमी भी ना रहे । 

समय गुज़र रहा था । अक्सर दोनों पति- पत्नी बेटे संजीव के साथ भी मीना के प्रति चिंता प्रकट करते रहते थे । 

अस्पताल में बेटियों के साथ बैठे भूषण जी अपनी पत्नी के बारे में बात कर रहे थे कि तभी उनके कानों में आवाज़ आई—-

आई० सी० यू० में भर्ती कमलेश गुप्ता के साथ वाले तुरंत काउंटर नंबर – पाँच पर पहुँचे । 

इतना सुनते ही भूषण जी की टाँगें काँपने लगी । उन्होंने पास बैठी बेटी का हाथ पकड़ कर कहा —-

ये तुम्हारी माँ का नाम लेकर हमें क्यों बुला रहे हैं ? 

बाबा …. घबराने की बात नहीं है…. हो सकता है कि डॉक्टर साहब माँ की हालत की सुधार संबंधी कोई जानकारी देना चाहते हों ….. चलिए, हम दोनों आपके साथ चलती है । 

काउंटर पर पहुँच कर पता चला कि डॉक्टर अंदर बुला रहे हैं । ऐसे में नीरा ने आगे बढ़कर मीना से कहा —

मीना , तुम बाबा के साथ बाहर बैठो , मैं डॉक्टर से मिलकर आती हूँ । 

तक़रीबन दस मिनट के बाद नीरा बाहर आई तो उसका चेहरा सफ़ेद पड़ा था…. आते ही बोली —

माँ को वेंटिलेटर पर शिफ़्ट किया जा रहा है….

इतना सुनते ही भूषण जी की आँखों से आँसू निकल पड़े —

बेटा …. तुम्हारी माँ के जाने का समय आ गया है, संजीव को फ़ोन करके बता दें । 

नहीं बाबा …. ऐसा मत कहिए, वेंटिलेटर का अर्थ जाना थोड़े ही होता है, भैया को आराम से आने दें …. थोड़ी देर में खुद ही पहुँच जाएँगे ।

आधा घंटे बाद भाई के आने पर दोनों बहनें चली गई पर भूषण जी बच्चों के ज़ोर देने के बाद भी नहीं गए । ऐसे में नीरा ने कहा —

भैया… मैं ड्राइवर और गाड़ी को यहीं भेज देती हूँ, जब बाबा घर  जाने के लिए राज़ी होंगे उसी समय भेज देना …. प्लीज़ आज ज़बरदस्ती मत करें । 

और रात के साढ़े तीन बजे के क़रीब डॉक्टरों ने कमलेश जी को मृत घोषित कर दिया । जिस समय दोनों बेटियाँ रोती बिलखती घर पहुँची…. भूषण जी पत्थर की मूर्ति बने पत्नी को एकटक देखे जा रहे थे । उन्होंने तो सोचा भी नहीं था कि इतनी जल्दी जीवन साथी का हाथ छूट जाएगा ।

ख़ैर…. समय बड़े से बड़ा ज़ख़्म भर देता है । कमलेश जी की तेरहवीं के बाद सबका जीवन पटरी पर आने लगा सिवाय भूषण जी के…. उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि उम्र के इस पड़ाव पर अकेले जीना कैसे सीखें । वे दिन- रात गुमसुम से रहते …. बच्चे समझाते , उनका मन बहलाने की कोशिश करते पर शायद पिता का हँसना बोलना सब माँ अपने साथ ले गई थी । भूषण जी को चिंता थी तो केवल बेटी मीना की । एक दिन उन्होंने संजीव और नीरा को बुलाकर कहा—-

बेटा …. जीवन का कोई भरोसा नहीं है । तुम दोनों को मीना की स्थिति का पता है , मैंने और तुम्हारी माँ ने यह फ़ैसला किया था कि ….

बाबा ….. मुझे तो कोई आपत्ति नहीं है और ना ही यह बताने की ज़रूरत है कि आपका क्या फ़ैसला है । बाक़ी आप भैया से पूछ लीजिए । मैं चलती हूँ क्योंकि आज पापाजी की तबीयत थोड़ी ढीली है । 

इतना कहकर नीरा चली गई । भूषण जी ने संजीव को अपने और कमलेश जी के फ़ैसले के बारे में सब कुछ बताया और कहा कि शिखा को भी इस बारे में बता दें ताकि किसी भी बात में ग़लतफ़हमी ना रहे । 

अगले दिन उन्होंने  वकील , दोनों बेटियों, दामाद और बहू- बेटे को बुलाकर सबके सामने अपनी वसीयत लिखवाने की औपचारिकता निभानी चाही पर जब बहू को मेज़ की दराज से अलमारी की चाबी लेकर कमलेश जी के गहनों का डिब्बा निकाल कर मीना को देने के लिए कहा तो उसने साफ़ इंकार करते हुए कहा—-

बाबा , ये तो कोई बात नहीं हुई कि माँ के गहने मीना को दिए जाएँ …. अगर बेटियों को ही देने हैं तो फिर नीरा को भी मिलने चाहिए । 

बहू… तुम तीनों को हमने बराबर का सोना चढ़ाया था । ये तेरी सास के थोड़े से गहने हैं और उसकी इच्छा के अनुसार केवल मीना को ही दिए जाएँगे । और सुनो … नोएडा वाला फ़्लैट भी मैं मीना को ही दूँगा । 

क्या….. बाबा ! आपका बेटा तो मुँह बंद करके बैठा है पर मैं अपने बच्चों का हक़ किसी दूसरे को नहीं दूँगी ।

बहू ,  यह मत भूलो कि भगवान सब कुछ देखता है । जैसी स्थिति में मीना है , ईश्वर दुश्मन की बेटी को भी ऐसा दुख ना दे । पढ़ी- लिखी होने के बाद भी नौकरी नहीं मिली, एक छोटी सी  दुकान से क्या आमदनी होती होगी ….. कहते-कहते उनका गला रुँध गया । 

तभी संजीव उठा और अलमारी से डिब्बा निकालकर पिता के हाथों में थमाते हुए बोला —

बाबा … ये रहे माँ के जेवर …. मीना को दीजिए क्योंकि माँ की इच्छा थी और फ़्लैट के पक्के काग़ज़ात वकील साहब जल्दी ही बनवा देंगे । बाबा , ये सब कुछ आपने और माँ ने इकट्ठा किया है, आप  किसे देंगे, ये फ़ैसला केवल आप करेंगे । 

तभी नीरा ने कहा—-

बाबा …. अपने आप को अकेले मत समझना, वैसे तो भैया- भाभी आपका बहुत ख़्याल रखते हैं पर ज़रूरत पड़ी तो आपकी बेटियाँ हमेशा आपके पास ही मिलेंगी । 

भूषण जी ने देखा कि शिखा पैर पटकती हुई कमरे से बाहर निकलते हुए बोली—-

इस घर के तो नियम ही सारी दुनिया से अलग हैं । जिसे अपनी धन- दौलत दे रहे हैं ना , सेवा भी उन्हीं से करवाना ।

पत्नी के जाने के बाद संजीव ने अपनी दोनों बहनों के सिर पर हाथ रखते हुए कहा—

कोई चिंता मत करना । तुम्हें तो पता ही है कि शिखा केवल ज़ुबान चलाती है । दो- चार दिन बाद सामान्य हो जाएगी । और फिर पिता की देखभाल करनी मेरी ज़िम्मेदारी है । तुम बेफ़िक्री से जाओ और आती रहना । 

भूषण जी को पत्नी के शब्द याद आ रहे थे—

मेरे तीनों बच्चों में बहुत प्रेम है , भगवान! बुरी नज़र से बचाए । 

करुणा मलिक 

# बहू ये मत भूलो कि भगवान सब देखता है ।

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