सोनिया गाड़ी की चाभी कहां है दो ज़रा,क्यों कहां जाना है चाभी मेरे पास है सोनिया बोली । तुम्हें पता है न गाड़ी दहेज की है और मेरे मम्मी पापा के पैसे की है । तुम्हारी इतनी औकात तो है नहीं कि एक गाड़ी खरीद सकों। इसलिए जब मुझे कहीं जाना होगा तो तभी चाभी दूंगी मैं वरना नहीं । सोनिया की इस तरह की जली कटी सुनकर अनुज अपने आपको बहुत अपमानित सा महसूस करता।
सोनिया हर वक्त हर चीज का ताना देती रहती कि अनुज तुम्हें पता होना चाहिए कि ये सब सामान दहेज का है और मेरा है तुम्हारा नहीं। हां हां पता है कि दहेज का है तो क्यों लेकर आई थी मेरे मम्मी पापा ने तो मना कर दिया था दहेज लेने को ।हर वक्त मुझे अहसास कराकर अपमानित करती रहती हो।जब हर वक्त ये मेरा सामान वो मेरा सामान करना था तो शादी ही क्यों की थी । रहती रहती अपना दहेज के सामान के साथ अनुज बोला।
सोनिया और अनुज की अभी चार महीने पहले शादी हुई थी ।अनुज इकलौता बेटा था और एक बहन थी। आईं आई,टी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई की थी।और सोनिया भी पी, एच, डी थी । दोनों का रिश्ता मां बाप ने ही सुझाया था और कहा था तुम लोग आपस में बातचीत कर लो , तुम दोनों का मन मिलना चाहिए आखिर रहना तुम दोनों को भी संग में है यदि ठीक लगा
तो ही बात आगे बढ़ाई जाएगी। कुछ दिन बात करके और एक मुलाकात करके ही दोनों तैयार हुए थे शादी को । दोनों के पसंद होने के बाद ही दोनों के माता-पिता ने आपस में बात की । दोनों के माता-पिता ने दोनों को आपस में देखा और रिश्ता पक्का हो गया। एकं भाई बहन अनुज था और एक भाई बहन सोनिया थी ।अनुज के घर तो सब ठीक था कोई पुराने ख्यालों के नहीं थे
अनुज के तीन ताऊजी थे सबके बच्चों की शादियां हो चुकी थी कोई रोक टोक या पर्दा वगैरह कुछ नहीं था। लेकिन सोनिया एक बहुत छोटी सी जगह से थी ।और पढ़ाई करने के लिए कई साल से घर से बाहर रह रही थी । सोनिया का भाई बैंक में नौकरी करता था और अनुज की बहन गुड़गांव में नौकरी करती थी।
दोनों परिवारों के मेलजोल के बाद शादी तय हो गई।अनुज के माता-पिता ने कहा मुझे दहेज में कुछ नहीं चाहिए । ईश्वर की दया से हमारे पास सबकुछ है ।आप बस बारातियों का स्वागत सत्कार अच्छे से कर दें बस यही बहुत है ।और जो कुछ भी आपको देना है अपनी बेटी को दीजिए।उसको जिस चीज की जरूरत है उसके अनुसार दे दीजिएगा।तो सब मिलाकर पंद्रह लाख की शादी तय हुई । जिसमें पांच लाख बारात के स्वागत और खाने पीने में खर्च हुए और एक गाड़ी सोनिया के कहने पर उसी के नाम से ली गई ।और डेढ़ दोलाख रूपया अपने आने जाने और ख़र्च के लिए रखा क्योंकि दूर से आना था । साढ़े तीन लाख रुपए बचे तो अनुज के पापा सुनील जी ने कहा सोनिया और अनुज के नाम ज्वाइंट एकाउंट खुलवा कर उसमें जमा कर दें वो लोग अपने मन मुताबिक सामान खरीद लेंगे। ऐसा ही हुआ।
और शादी हो गई । सोनिया के मां बाप बहुत सीधे और सरल इंसान थे और इधर अनुज के मम्मी पापा को भी बहू बेटे के जीवन में दखलंदाजी देने का कोई शौक नहीं था।अनुज और सोनिया दोनों ही नौकरी पर थे सोनिया यहां गुड़गांव में और अनुज पूना में। शादी के लिए एक महीने के छुट्टी पर थे दोनों इस बीच हनीमून के लिए दोनों श्री लंका घूमकर आ गए थे।
और फिर सोनिया कुछ दिन पूना में रहकर वापस गुड़गांव आ गई थी। गुड़गांव में पी जी में रह रही थी सोनिया लेकिन शादी के बाद एक फ्लैट किराए पर ले लिया सोनिया ने पच्चीस हजार में।और वहां पूना में भी अनुज चार दोस्तों के साथ फ्लैट शेयर करता था ।इन सब जगहों पर फ्लैट बहुत महंगा होता है पच्चीस तीस हजार से नीचे फ्लैट मिलते नहीं है
और थोड़ा अच्छा लो तो चालीस के आसपास पहुंच जाओगे।अब दो दो जगहों का खर्चा मुश्किल हो रहा था ।अनुज लगा हुआ था दोनों में से किसी एक का ट्रांसफर एक जगह हो जाए । लेकिन ये सब काम इतनी जल्दी होते नहीं है समय लगता है।अब सोनिया अपने फ्लैट का किराया और रहने और खाने पीने कि खर्चा अनुज से मांगने लगी कहने लगी अब शादी हो चुकी है
हमारी तो मेरे खाने पीने रहने का खर्चा देना सब तुम्हारा काम है।अनुज ने कहा वो तो ठीक है हमारा काम है लेकिन अभी दो साल हुए हैं मुझे नौकरी करते शुरू शुरू में इतना पैसा नहीं मिलता कि दो दो जगहों का खर्चा उठाया जाए ।और फिर तुम भी तो नौकरी कर रही हो न ,न करती होती तो मैं देता ही शादी से पहले भी तो दे ही रही थी न तो अभी खुद से करो ।एक जगह रहने का हो जाए कोशिश में लगा हुआ हूं।
बस इसी तरह छोटी छोटी बातों पर कहा सुनी होने लगी। हालांकि सोनिया कमातीं थी लेकिन एक पैसा वो घर पर खर्च नहीं करती थी। यहां तक कि थोड़ी सी सब्जी और दूध लाना हो तो उसका पैसा भी अनुज सै लेकर जाती ।हर समय कहती रहती कि ये सामान मेरे मायके का है जबकि अभी तक उनके पास कोई सामान नहीं था। सिर्फ गाड़ी थी ।अनुज खुद कई सालों से घर से बाहर रहा था तो उसने घर गृहस्थी का काफी कुछ सामान जैसे कि बर्तन भांडे ,फ्रिज छोटा सा , वाशिंग मशीन ,गैस का चूल्हा सब खरीद रखा था ।जो एक बेचलर लड़कों के लिए काफी था।
शादी के तीन महीने बीत गए ।अनुज की मम्मी ने सोचा कि एक बार बहू बेटों के पास जाकर देखना चाहिए कि क्या कर रहे हैं ये लोग।और अनुज के मम्मी पापा चले गए । वहां पर अनुज की मम्मी रजनी जी और सुनील को बड़ा अजीब लगा । क्योंकि बैठने को कुछ नहीं था बस प्लास्टिक की चार कुर्सियां थी और खाने के लिए भी कोई व्यवस्था नहीं थी ।
एक प्लास्टिक का स्कूल था उसी पर प्लेट रख कर खा लो या हाथ में प्लेट पकड़कर खाओ । फिर दो दिन बाद अनुज के पापा सुनील जी ने पूछा कि बेटा घर में कोई सामान नहीं है,न बैठने का सोफ़ा है न कोई सेंटर टेबल है ,न फ्रिज है ढंग का न ही डाइनिंग टेबल है क्या है ये सब । अभी तुम्हारे बैंक का कोई बंदा आया था पेपर साइन करवाने तो ढंग की एक टेबल तक नहीं है ।
और तुम्हारी मम्मी कह रही थी कि फ्रिज भी ठीक से काम नहीं कर रहा है दरवाजा उसका ढीला हो गया है बंद नहीं होता ठीक से क्या है ये सब। बेटा अब तुम एक शादी शुदा जिंदगी जी रहे हो बैचलर तो हो नहीं कि चाहे जैसे रह लोगे। सोनिया के पापा ने चार लाख रूपए तुम्हारे और सोनिया के ज्वाइंट एकाउंट में डलवाया था ।
इसलिए कि जिस सामान की जरूरत है ले लो तो लिया क्यों नहीं।अनुज चुप रहा , फिर पूछा सुनील जी ने बोलो बेटा,वो पापा मुझे नहीं लेना कोई सामान क्यों। क्योंकि सोनिया नहीं चाहती , सोनिया नहीं चाहती सुनील जी बोले क्यों, क्योंकि वो कहती हैं वो पैसा मेरा है और मेरे पैसे से सामान नहीं आएगा तुम अपनी कमाई के पैसे से सामान ले आओ।
हम दोनों का ज्वाइंट एकाउंट है तो वो पैसे निकलवाने नहीं देती है ।और कहती हैं आज के समय में लड़का लड़की दोनों बराबर है और दोनों ही नौकरी कर रहे हैं तो तुम अपने घर में मदद करते हैं तो मैं अपने घर में मदद करूंगी।और ये शादी में जो पंद्रह लाख खर्च हुए हैं न उसको भी आधा आधा करो ।
सात लाख तुम्हारे खर्च होंगे तो सात आठ लाख मेरे।ये क्या हैं कि सिर्फ मेरे ही मम्मी पापा के पैसे खर्च हो। मुझे भी तो पढ़ाया लिखाया है उनने ।तो बेटा क्या सोनिया घर के खर्च में तुम्हारी कोई मदद करती है नहीं पापा अच्छा।
इसलिए अब मैं उसके पैसे से सामान नहीं खरीदूंगा।जब मेरे पास होंगे तो खरीद लूंगा । इसलिए वो चार लाख रूपए तो सोनिया के पास ही है तो तीन लाख मैं और दें दूंगा तो हिसाब किताब बराबर हो जाएगा। लेकिन सोनिया के मम्मी पापा से तो ऐसी कोई बात ंनहीं हुई थी । आने दो सोनिया को मैं बात करता हूं ।
आज शनिवार था सोनिया और अनुज घर पर ही थे तो सुनील और रजनी ने बात छेड़ दी। सुनील बोले सोनिया ये मैं क्या सुन रहा हूं कि तुम शादी का आधा पैसा मांग रही हो अनुज से ।तो इसमें हर्ज ही क्या है पापा जी। आजकल लड़का लड़की बराबर है तो दोनों को मिलकर पैसा खर्च करना चाहिए आधा आधा
।मैं भी अपने घर में सपोर्ट करना चाहती हूं इसमें बुरा क्या है। लेकिन ये पैसा तो तुम्हारे मम्मी पापा ने खर्च किया है तुम्हारा कहां से आ गया।मेरा हो या पापा का है तो हमारा ही ।और तुम गाड़ी भी अनुज को नहीं चलाने देती हो कहती हो जब मैं कहीं जाऊंगी तब चाभी दूंगी ,तो गाड़ी तो मेरी है न ।
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देखो बहू ऐसे शादी शुदा जिंदगी नहीं चलती जब तक ये तेरा मेरा रहेगा तो अपनापन कहां से आएगा।जब एक लड़का लड़की शादी के बंधन में बंधकर एक होते हैं तो बीच मे एक तेरा मेरा नहीं होता।और मैं ये भी देख रही हूं कि प्रेस वाला कपड़े दे गया तो तुम अपना कपड़ा ले गई और अनुज का छोड़ दिया रजनी बोली ।
तो क्या हुआ मम्मी जी अपना अपना काम खुद करो ऐसे गृहस्थी नहीं चलती बहू सबकुछ भूलकर एक होना पड़ता है ये तेरा ये मेरा ये सब नहीं होता।अजीब रवैया है रजनी बोली ।अब कल के सोफ़ा घर में आ गया बैंक में जमा पैसे से तो तुम कहोगी सोफे में मत बैठो ये मेरे पैसे का है।तो देखो मैं ये सब बर्दाश्त नू करूंगा सुशील जी बोले।
शादी के तीन महीने बाद अनुज के मम्मी पापा बेटे बहू के घर गए थे तो सोनिया के मम्मी पापा भी मिलने आ गए ।तो सुनील ने अपनी बात रखी ऐसी बात कर रही है आपकी बेटी बताइए ऐसा कहीं होता है क्या।और शादी का आधा खर्च मांग रही है ।और हर समय अनुज को ताने देती है कि तुम्हारी औकात नहीं है गाड़ी खरीदने की दहेज की गाड़ी चलाता है ।
आखिर कमातीं तो सोनिया भी है न लेकिन एक पैसा खर्च नहीं करती है और कहती हैं अनुज से शादी की है तो जिम्मेदारी तुम्हारी है सब खर्च उठाने की । सुनकर सोनिया के मम्मी पापा आश्चर्य में पड़ गए कि बेटी तुम ये क्या कर रही हो ।वो बोले जब शादी में सब पैसे हमने खर्च किया है तो तुम कौन होती है मांगने वाली ।बहते डांट लगाई सोनिया को।और बोले आज ही जाओ बैंक से पैसे निकालो
और घर का सामान ख़रीदो। सोनिया के पापा बोले समधी जी आप अपने सामने पैसा निकलवा दीजिए और सामान खरीदवा दीजिए ।और एक बात और समधी जी सामान आ जानने पर फिर एक बार भी सोनिया ने कही कि ये मेरे पैसे का सामान है तो सारी चीजें मैं बाहर फिंकवा दूंगा ये समझ लीजिए सुनील जी बोले।
नहीं नहीं सुनील जी ऐसा कुछ नहीं होगा मैं बेटी को समझा देता हूं। फिर घर में सोफ़ा, टीवी, फ्रिज, डाइनिंग टेबल सब सामान घर में आया। इतनी धमकी देने पर सोनिया थोड़ा डर गई थी लेकिन अब थोड़ा शांत हो गई थी ।
लेकिन अनुज ने गाड़ी चलाना छोड़ दिया था। कभी कभी कोई बात खत्म सम्मान को ठेस पहुंचा देती है । अनुज ने नई गाड़ी उठा ली थी।अब दहेज़ की गाड़ी खड़ी रहती थी क्योंकि सोनिया को तो चलाने आता नहीं था।
कभी कभी इस तरह के बेफालतू के झगडे होते हैं घर में जिनका कोई सिर पैर नहीं होता। अनुज जब ही गाड़ी चलाता जब उसका मन होता उसकी अपनी गाड़ी थी कौन दहेज की थी। पता नहीं ऐसा कैसा फितूर आजकल बच्चों के दिमाग में आता है ।
जिससे अच्छी खासी घर गृहस्थी बर्बाद हो जाती है और ऐसे में रिश्ते संभल गए तो ठीक नहीं तो रोज रोज़ की तू तू मैं मैं से रिश्तों में दरार आते आते टूटने की कगार पर आ जाते हैं।
अनुज और सोनिया दोनों के मम्मी पापा के हस्तक्षेप से विवाह टूटते टूटते बच गया।लोग करते तो है शुभ विवाह उल्लास और हंसी खुशी से फिर न जाने कैसी परिस्थितियां आ जाती है ।जो पति पत्नी बनने जा रहे है बच्चे और बच्चों के पेरेंट्स समझ से काम लें तो परिवार टूटने से बच सकते हैं । फिर शुभ विवाह ,शुभ विवाह बनकर रह जाता है ।
मंजू ओमर
झांसी उत्तर प्रदेश
17 जून
रचना एक सत्य घटना पर आधारित है ।