एक मुंह दो बात – शुभ्रा बैनर्जी  :  Moral Stories in Hindi

“भाभी,एक खुशखबरी है।सबसे पहले तुम्हें ही दे रहीं हूं।तुम्हारी लाड़ली रिम्पा (भांजी)की शादी तय हो गई है।अभी लड़के के माता-पिता गएं हैं बात पक्की कर।लड़का यहीं पुणे में ही नौकरी करता है।तारीख अभी तय तो नहीं हुई,पर फाल्गुन में ही होगा।तुम तैयारी करके रखना।बच्चों को भी बता

देना।”छोटी ननद थी फोन पर।यह हमारे परिवार के किसी बच्चे की पहली शादी होगी।रेणु खुलकर खुश होना चाह रही थी ,पर मन में एक गांठ उभर आई।सब तय हो गया,तब बता रही हैं।ऐसा तो नहीं ना,कि अचानक से आसमान से उड़कर रिश्ता आ गया हो।मैरिज ब्यूरो से नोटिफिकेशन

आने,चुनने,फिर लड़के -लड़की की कुंडलियों का मिलान करने के बाद ही आगे बढ़ी होगी बात।जहां तक रिम्पा की बात है,लड़के को बिना जांचे-परखे शादी करने से रही।ननदोई जी भी ठहरे पंडित(पुरोहिताई करने वाले)गण-नक्षत्र मिलाए बिना बात बढ़ाएंगे ही नहीं।लड़के वाले आ भी गए,और बात पक्की भी हो गई,तब बड़ी मामी को बताया जा रहा है।वाह!!!!

मन में पाप आते ही सबसे पहले सुख छीन लेता है।शांति छीन लेता है।रेणु ने अपनी सास को बताया”अरुणा का फोन आया था।तुम्हारी नवासी की शादी पक्की हो गई है।अब तो तुम्हें नाचना पड़ेगा उसके लिए,वादा किया था तुमने।”खुशी तो थी,सास का माथा चूमकर उन्हें बधाई दी।अपनी बहू

,जो पिछले चालीस सालों से साथ रही है,को वे अच्छी तरह जानती हैं।बाहर से कड़क ,अंदर से नरम।रेढ़ु का माथा चूमकर उन्होंने आशीर्वाद देते हुए कहा”बहू,वह पहले तुम्हारी लाड़ली भांजी है,बाद में मेरी नवासी।पैदा होने के बाद से छह महीने तक तुमने अपना दूध पिलाया है उसे।अरुणा तो पिला नहीं पाती थी,तुमने ही मां का दूध पिलाया है।वह तुम्हें बहुत प्यार करती है,सबसे ज्यादा।तुम इकलौती

मामी हो उसकी।तुम पर जिम्मेदारी थोपूंगी नहीं,तुमने पहले ही सारी जिम्मेदारी निभाईं हैं।मेरे बेटे को पता भी नहीं चलता,और तुम भांजी-भांजे के अन्नप्राशन की हो,या भांजे के उपनयन संस्कार की,हमेशा अपनेपन‌ से दोनों हांथ खोलकर दिया है।अब तो बेटा नहीं है मेरा,तुम अकेली हो।तुम्हारी भी दो बच्चों की शादी की जिम्मेदारी है।जितना हो सके ,उतना ही करना।जाना जरूरी बहू,मामा का काम भी तुम्हें

ही करना है।”रेणु ने हां कहा और चल दी वहां से।खुशखबरी अपने बच्चों को भी सुनाई।बेटी पुणे में ही नौकरी करती थी।बुआ के घर से काफी दूर था उनका घर,सो बहुत कम जाना होता था उसका।अभी इस बार गर्मी में आकर ही पूछ गई थी,मां के मन की इच्छा,कि रिम्पा की शादी लगेगी,तो क्या-

क्या देना है?जैसे ही रेणु ने बेटी निमी को फोन कर बताया ,रिम्पा की शादी के तय होने की बात,उसने फाल्गुन सुनकर कहा”चलो मम्मी,अब हमें समय मिल जाएगा तैयारी करने के लिए।तुम गहने और

कैश का इंतजाम करो।मैं सूटकेस और कपड़ों की जिम्मेदारी लेती हूं।अभी समय है बहुत।शादी तक सब तैयारी हो जाएगी।तुम इतनी गुमसुम क्यों लग रही हो?कुछ हुआ है क्या?बुआ ने कुछ बोला क्या?”

रेणु ने तुरंत कहा”अरे नहीं रे।मैं ठीक हूं।किसी ने कुछ नहीं कहा।मैं सोच रही थी,हमें क्या तैयारी करनी है?कैश का हो जाएगा,और एक सोने का सामान दे देंगें।इससे ज्यादा कहां दे पाएंगे रे कुछ?पापा होते तो और भी बहुत कुछ देते।मैं अब और क्या ही दे पाऊंगी?”

बेटी ने तुरंत रेणु के जहर को निकलना शुरू किया”मम्मी आपको इस बात का दुख लगा ना कि पहले नहीं बताया।देखो तुम्हीं कहती हो ना अपने परिवार में सब कुछ पक्का हो जाए तभी किसी और को

बताना चाहिए।यही नियम बनाई हो ना तुम।बाद में रिश्ता ना जमने पर रिश्तेदार तरह-तरह की बातें बनाते हैं।मेरी शादी के समय क्या शुरू से उन्हें सारी खबर बताओगी तुम।लड़के वालों के जाने के

बाद ना अच्छी खबर सभी को बताओगी।तो उन्होंने वही तो किया।रही बात क्या देना है ,क्या नहीं।तुमने पहले ही मुझे बता दिया था।मैंने सूटकेस ऑर्डर कर दिया है।लड़की और लड़के के पांच जोड़ी कपड़े मैं ले लूंगीं। कास्मेटिक का सामान भी मैं ले लूंगी।अगर बोलो तो एप्लिक वाला बेडसैट भी ले लूंगी।तुम वहां सोना और कैश का देख लो।”,

रेणु को चिढ़ लगने लगी अब,बोली वह”अरे!इतना सब तू क्यों देगी?हम देंगें।सूटकेस बहुत मंहगा पड़ जाएगा।तेरे लिए खरीद के रख।हम कपड़े थाल में सजा कर दे देंगें।”

“निमी ने समझाते हुए कहा”मम्मी,तुमने हमेशा हमें सिखाया है,देने से हम बड़े बनते हैं।बड़ा बनना ही सब कुछ नहीं है,बड़प्पन भी होना चाहिए मन में।तुम तो दिलेर सदा देती रही हो दूसरों को।रिम्पा की शादी के लिए अपने शास्त्री जी से कितनी बार मिली होगी तुम।तुम्हारे प्रयासों से ही शादी पक्की हुई

है।अब तुम क्यों अपने आप को छोटा बना रही हो।याद है तुमने कहा था कि पापा का बहुत मन था बड़ी भांजी की शादी में दिल‌ खोलकर खर्च करने का।आज वो तो नहीं‌ हैं,पर उनकी जीवनसाथी हो ना तुम

अब तुम कुछ नहीं दे रही,तुम्हारे पति,जो इकलौते मामा थे,वो‌ दे रहें हैं।अब तुम्हें दो-दो सम्मान‌ की लाज रखनी है।”रेणु बेटी के तर्क के आगे निरुत्तर हो गई।वास्तव में वह भर‌ देना चाहती थी,रिम्पा को गहनों से।मुंह से कभी कहा नहीं‌ उससे प्रत्यक्ष।बेटे -बेटी को हमेशा कहती थी”रिम्पा की शादी पापा

का बड़ा सपना था।ऐसी अच्छी भेंट दूंगी ना मैं,कि उसे मामा की कमी नहीं खलेगी।यह तो उसने खुद‌से कहा था,किसी और से नहीं।रेणु बाध्य भी तो नहीं थी इन सब के लिए।खैर‌!अभी समय है,सोचेंगे,ऐसा

सोचकर छोटी ननद से रोज बतियाना शुरू कर दिया।बातों -बातों में सारी पहले से हुई तैयारियां और बची हुई करने लायक तैयारियां पूछती रहती।अरुणा भी सहेली समान भाभी को हर बात बताती।शादी का दिन‌ नजदीक आ जाएगा देखते-देखते।

बेटी को फरमान जारी कर दिया रेणु ने”सूटकेस बहुत छोटा मत लेना।सारे कपड़े आ जाएं।और सुन‌ ना सूट,साड़ी,हर डिजाइन का एक ड्रेस जरूर रखना।वहां‌ तो मैंचिंग ज्वेलरी भी मिलती है,ले लेना हर ड्रेस के साथ।बड़ा शौक है‌ उसे सजने का

एक मेकअप किट भी दे ही देना रे।दादा सोने का सामान अगले महीने खरीदेगा।मैं कैश‌ जमा कर लूंगी।”,

निमी ने रोकते हुए कहा””अरे मां!बस करो।ये डिमांड की गाड़ी रोको।अभी तो कह रही थी ,कैसे दे पाएंगे इतना ?ज्यादा नहीं कर पाएंगे।कोई जिम्मेदारी नहीं‌ है मेरी।अब क्या हुआ, मदर इंडिया?”

यह निमी की आदत थी शरारत करने की।पर उसने भी संस्कार तो मां से ही सीखें थे।फिर कैसे वह अपनी प्रिय भांजी की शादी में जिम्मेदारी ना निभाए।वह तो प्रतिनिधि हैं अपने पति की।जो भी तैयारी

होगी,वही करवाएंगे।पैसे खर्च तो होंगे,पर अपने प्रेम में लांछन नहीं लगने दे सकती रेणु।रिम्पा का ननिहाल के लिए हमेशा विशेष लगाव था।मामी तो उसकी सहेली ही थी।अरुणा की शादी भी तो रेणु ने ही दी थी,एक एक चीज ढूंढ़ ढूंढ़ कर भेजा था साथ में।

अब मन को बहुत शांति मिली।भांजी की शादी में मन से सम्मिलित हो पा रही थी अब रेणु।

बेटी ने उसे इस पाप से बचा लिया,और झूठी शान भी चली गई।अब रेणु ,अरुणा को यही कहती हैं”जिस चीज की कमी पड़े,सबसे पहले बताना।भतीजा -भतीजी नौकरी करतें हैं। भाई-बहन हैं रिम्पा के।संकोच मत करना।अगर‌ मन से अपना मानती हो,तो उस मान का मान रखना।”

ये सब सुनकर निमि ने कहा”वही तो मम्मी,आपका एक क्लास है।आप एक मुंह से दो बात कैसे कर सकती हैं।आपकी जबान पत्थर की लकीर है,ऐसा सिर्फ हम ही नहीं सभी जानते हैं।चलो सब डन हो गया ना।अब इस मुद्दे पर तो बात करो कि,ननद की बेटी की शादी में ,भाभी अपने बच्चों को क्या

खरीदवा रहीं हैं।मैं तो बनारसी साड़ी लूंगी,और दादा सूट -पैंट।दादी को भी सुंदर साड़ी देनी होगी।तभी हम तुम्हारी ननद की बेटी की शादी में आएंगें।”

बेटी के कटाक्ष ने रेणु को सामान्य कर दिया।परिवार लोगों से मिलकर बनता है।वैसे ही रिश्तों में इतनी दूरियां आ गईं हैं ,कि रिश्तों से विश्वास ही उठने लगा है बच्चों का।ऐसे में परिवार में होने वाली शादी एक पुल का काम करती है।सारे पुराने मतभेद भुलाकर,लोग सामने से अपना योगदान देने की विनती

करतें हैं।बड़े होने की जिम्मेदारी तभी निभ सकती है,जब आपमें बड़प्पन हो।मुंह से एक बार में जो बात आप बोल रहें हैं,वे समय, परिस्थिति और पैसों के हिसाब से कभी बदलने नहीं चाहिए।मुंह एक है तो उससे निकलने वाली बात भी एक ही रहे,दो नहीं।

शुभ्रा बैनर्जी 

मुहावरा आधारित लघुकथा

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