आज फिर अनामिका की सुबह दर्द के साथ शुरू हुई। उसका बदन दर्द से टूट रहा था। उसमे उठ कर चलने की भी हिम्मत नही बची थी। लेकिन करण को ऑफिस जाना था और सारी चीजें समय पर नहीं मिलेंगी तो वो फिर गुस्सा करेगा। करण का गुस्सा मतलब अनामिका की पिटाई। शादी के एक साल के अंदर ही अनामिका की ज़िंदगी से सब खुशी जा चुकी थी। बस करण के साथ वो एक नाम का रिश्ता जी रही थी। क्योंकी उसके मम्मी-पापा ने हर बार यही समझाया की बेटा शादी के शुरुआत में थोड़ी दिक्कते आती है। कुछ सालों बाद सब ठीक हो जाता है और जब एक बच्चा हो जायेगा तो सब अपने आप ठीक हो जाएगा।
अनामिका बहुत हिम्मत कर के बिस्तर से रसोई तक आई और नाश्ते की तैयारी करने लगी। करण के नाश्ते में देरी न हो जाए इस लिए उसने चाय भी नही पी और जल्दी – जल्दी नाश्ता बनाने लगी। 9 बजते – बजते उसने करण के लिए नाश्ता और लंच दोनों तैयार कर के खाने की मेज पर रख दिया और जल्दी से कमरे की तरफ गयी। करण जाग गया था और बाथरूम में चला गया था। अनामिका ने जल्दी से उसके कपड़े और घड़ी, रुमाल सब बेड पर रख दिया और बाहर आ कर उसके जूते पॉलिश करने लगी। करण कमरे से तैयार हो कर आया और आते ही चिल्लाने लगा – कोई काम तुमसे सही से होता है?
मेरे मोजे कौन देगा तुम्हारा बाप… सॉरी…. भूल गयी अभी देती हूँ….अनामिका ने कहा और कमरे से मोजे ला कर करण को दे दिया। करण लंच ले कर ऑफिस के लिए चला गया। करण के जाने पर अनामिका सोफे पर बैठे गयी और रोने लगी। इस रिश्ते में अब उसका दम घुटता था। करण
छोटी – छोटी गलतियों पर अनामिका की बुरी तरह पिटाई कर देता था। कल उसकी छोटी सी गलती के लिए करण ने कितने बुरे तरीके से उसे मारा और गलती भी क्या थी….यही की उसके दोस्त के ज़िद करने पर अनामिका उनलोगो के साथ थोड़ी देर के लिए बैठे गयी। बस यही गलती थी उसकी। हर बार ऐसे ही छोटी- छोटी बातों पर अनामिका पर हाथ उठा देना अब करण की आदत हो चुकी थी। अनामिका आज पूरी तरह टूट चुकी अब उसमे ये सब और सहन करने की हिम्मत नही बची थी। उसने अभी माँ को फोन लगाया कहा – माँ अब बर्दास्त नही होता। माँ अब मैं करण के साथ और नही रह सकती, वो इंसान नही हैवान है।
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अब बहुत हो गया माँ अब नहीं। तब सविता जी( अनामिका का माँ) ने कहा- नही बेटा ऐसा नही कहते शादियां ऐसे ही बोल देने नहीं टूट जाती। सब्र कर बेटा सब ठीक हो जाएगा। कब ठीक होगा माँ जब मैं मार खाते -खाते मर जाऊंगी तब? अनामिका ने गुस्से में कहा। ऐसा मत बोल बेटा थोड़ा समय दे इस रिश्ते को सब ठीक हो जाएगा, सविता जी ने कहा। माँ मैंने गलती की आपको फोन कर के। आप जैसे माँ- बाप की ही बेटियाँ मार दी जाती है उसके बाद बैठे कर आप लोग रोते है। रहने दीजिये माँ मैं अपनी ज़िंदगी अपने आप देख लुंगी। इतना कह कर अनामिका ने फोन काट दिया।
सविता जी ने अनामिका के पिता जी रविकांत जी से कहा। उन्होंने करण के पिता जी मनोहर जी को फोन कर के सारी बात बतायी।
मनोहर जी ने कहा माफ कीजियेगा रविकांत जी मैं अभी करण से बात करता हूँ और उसे समझता हूँ। इतना कह कर मनोहर जी ने फोन रख दिया और दिल्ली के लिए 2 फ्लाइट की टिकट ले ली। शाम में जब अनामिका खाने की तैयारी कर रही थी तभी घर की बेल बजी। उसे लगा करण आ गया होगा उसने तेजी से जा कर दरवाजा खोला। सामने मनोहर जी और अपनी सास कुमुद जी को देख कर वो चौंक गयी। मम्मी जी – पापा जी आप लोग ऐसे अचानक सब ठीक तो है न? मनोहर जी कहा- नहीं सब ठीक ही तो नही है वही ठीक करने आयें है। क्या हुआ पापा जी? अनामिका ने पूछा।
बतायेंगे करण ऑफिस से आ गया मनोहर जी पूछा। नही पापा जी बस आते ही होंगे, तब तक मैं आप लोगो की लिए चाय लाती हूँ, इतना कह कर अनामिका रसोई में चली गयी। कुमुद जी अनामिका को ध्यान से देख रही थी। अनामिका के रसोई में जाने के बाद उन्होंने मनोहर जी से कहा मुझे प्यास लगी मैं पानी पी कर आती हूँ। मनोहर जी ने कहा बहु से मांग लो। कुमुद जी ने कहा – नहीं मैं ही जाती हूँ देखूं तो बहु ने रसोई को कैसा रखा है। इतना कह कर वो रसोई में आ गयी। अनामिका ने रसोई में कुमुद जी को देख कर कहा – मम्मी जी कुछ चाहिए? कुमुद जी ने कहा – हाँ बेटा पानी चाहिए।
तो मम्मी जी आवाज लगा देती मैं ले आती अनामिका ने पानी देते हुए कहा। कोई बात नहीं बेटा इतनी भी बुढी नही है तेरी सास जो एक ग्लास पानी भी न ले सके, कुमुद जी हसंते हुए अनामिका की और देख कर कहा। अनामिका ने बस छोटी से मुस्कान दी। मम्मी जी ऐसे अचानक आप लोग दिल्ली आ गए क्या बात है?अनामिका ने कुमुद जी से पूछा। पता नही बेटा तुम्हारे ससुर जी कुछ बताते नही है बस कहा की सामान रखो और मैं आ गयी
आपने पूछा नहीं….अनामिका ने कहा। नहीं बेटा हमारे घर में औरतों को सवाल करने की इजाजत नही है….कुमुद जी के मुह से ये सुन कर अनामिका को अजीब लगा । तभी मनोहर जी ने आवाज दी अरे….चाय बन रही है या बीरबल की खिचड़ी? कुमुद और कितनी देर? मनोहर जी की कड़क आवाज सुन कर कुमुद जी की मुस्कान गायब हो गयी और वो तेजी से चाय ले कर जाने लगी, लेकिन थोड़ा आगे बढ़ कर वापस आ गयी और अनामिका से कहा चाय ले कर जाने को। अनामिका चाय ले कर गयी लेकिन वो अपनी सास की बातों से सोच में पड़ गयी थी
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और उसके ससुर जी के आवाज लगाने पर कुमुद जी का यूँ डर जाना अनामिका समझ नही पा रही थी। अनामिका के पीछे ही कुमुद जी भी आ गयी और माहौल को बदलने के लिए कहा – बहु तुमने तो अपने घर को बहुत अच्छे से रखा है । क्योंजी सही कह रही हूँ न? कुमुद जी ने मनोहर जी से पूछा। हाँ बहु ने तो घर को अच्छे से रखा है लेकिन हमारे बेटे को अपना घर सही से रखना नही आया अभी तक….मनोहर जी मोबाइल में देखते हुए बोले। अनामिका कुछ समझ पाती तभी उसका फोन और दरवाजे की घंटी साथ में बज पड़ी। अनामिका दरवाजे की ओर जाने लगी तभी कुमुद जी ने कहा बहु तुम फोन उठा लो दरवाजा मैं खोलती हूँ। करण हमे सामने
देख कर चौंक जाएगा। अनामिका ने फोन देखा तो सविता जी का कॉल था उसका मन तो नही था लेकिन सास- ससुर की वजह से फोन ले कर कमरे में आ गयी और फोन उठाते ही कहा क्या हुआ माँ अब आप क्यों फोन कर रही है? मैंने कहा न की मुझे अब आप लोगो से कोई बात नही करनी। सविता जी ने कहा बेटा सुन तो ले तेरे पिताजी ने करण के पिताजी से बात की है उन्होंने कहा है की वो इस पर करण से बात करेंगे तु परेशान न हो बेटा। अब अनामिका को मनोहर जी की वो बात समझ में आ गयी की ” हमारे बेटे को अभी तक अपना घर सही से रखने नही आया है। ” ठीक है माँ मेरे सास ससुर आये हुए है , मुझे खाना बनाना है
आपसे कल बात करती हूँ कह कर अनामिका ने फोन कट कर दिया और हॉल में चली गयी। करण ने जब अपने पापा – मम्मी को देखा तो वो भी हैरान रह गया। मम्मी पापा आप लोग अचानक क्या हुआ सब ठीक तो है न? करण ने मनोहर जी और कुमुद जी को देख कर पूछा। सब ठीक ही तो नही है बेटा मनोहर जी ने करण को गले लगाते हुए कहा। क्या हुआ पापा बताइये तो क्या बात है? करण ने कहा। अरे नही बेटा ऐसे ही मजाक कर रहा था, हम तेरे माँ – बाप है…तेरे पास नही आ सकते क्या आने से पहले तुझसे परमिशन लेनी होगी क्या मनोहर जी ने हँसते हुए कहा। नहीं पापा कैसी बात रहे है, ये तो आपका ही घर है ,आप जब चाहे आ सकते है
अनामिका ने कहा। मनोहर जी ने अनामिका को देखते हुए कहा – बहु मुझे पता है की ये मेरा ही घर तुम मुझे मत बताओ और मैं अपने बेटे से बात कर रहा हूँ तुम्हे बीच में बोलने को किसने कहा ? जब दो मर्द बात कर रहें हो तो औरतों को बीच में नहीं बोलना चाहिए तुम्हे किसी ने सिखाया नहीं । जाओ रसोई में जा कर खाना बनाओ। अपने ससुर के मुँह से ऐसी बात सुन कर अनामिका को झटका सा लगा वो बिना कुछ बोले चुप – चाप रसोई में चली गयी। उसे रोना आ रहा था लेकिन वो जल्दी – जल्दी खाना बनाने लगी। उधर करण और मनोहर जी भी कपड़े बदल कर खाने की मेज पर बैठ गए, और कुमुद जी रसोई में अनामिका के पास आ गयी।
ला बहु मैं कुछ मदद कर दूँ? कुमुद जी ने कहा तो अनामिका ने कहा नहीं मम्मी जी सब हो गया है आप भी खाने के लिए बैठे जाइये मैं खाना लगा देती हूँ। नहीं बहु पहले घर के मर्द खायेंगे उसके बाद मैं और तुम खा लेंगे। मुझे पता है बहु तुझे थोड़ा अजीब लगेगा लेकिन तेरे ससुर जी थोड़े पुराने ख्यालात है तो बेटा तु कुछ दिन थोड़ा संभाल लेना…. फिर हमारे जाने के बाद तुम और करण साथ बैठे कर खाना। मुझे पता है मेरा बेटा ऐसा नहीं है। वो तो पढ़ा लिखा है लेकिन बेटा……… तभी मनोहर जी ने आवाज लगायी और कितनी देर? खाना बनाने में इतना समय लगता है क्या? अनामिका और कुमुद जी ने जल्दी -जल्दी सारा खाना ला कर मेज पर रख दिया
और कुमुद जी मनोहर जी को खाना परोसने लगी। अनामिका अपनी सास को गौर से देख रही थी जैसे वो करण के कामों को करने में डरा करती है ठीक वैसे ही कुमुद जी भी डर- डर कर मनोहर जी को खाना परोस रही थी। तुम्हे क्या हाथ जोड़ बोलूँ तब खाना परोसोगी करण ने अनामिका से गुस्से में कहा। अनामिका ने भी जल्दी – जल्दी करण को खाना निकाल कर दिया। करण के ऐसा बोलने पर कुमुद जी करण को हैरान हो कर देखने लगी। तभी उनसे थोड़ी सी दाल मनोहर जी कुर्ते पर गिर गयी। मनोहर जी तेजी से उठे और कुमुद जी को देखते ही देखते एक जोर का चांटा जड़ दिया। अनामिका सुन्न सी खड़ी रही गयी और कुमुद जी तेजी से रसोई में जा कर कपड़ा ले आयी और दाल साफ करने लगी। अनामिका को तो जैसे सांप सूंघ गया था, वो उसकी सास में खुद को देख रही थी
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और अपने ससुर में करण को। तभी उसके गाल पर भी एक जोर का चांटा पड़ा जिससे वो गिरते – गिरते बची। कहा ध्यान है तुम्हारा कब से आवाज दे रहा हूँ, थोड़ी सब्जी दो । खड़े – खड़े ख्यालों में खो गयी हो होश में आ जाओ… करण ने चिल्लाते हुए कहा। अनामिका ने जल्दी से कटोरी में सब्जी दी और और सब्जी ले कर आती हूँ कह कर रसोई में चली गयी। कुमुद जी भी अपने बेटे की ये करतुत देख कर हैरान सी रह गयी। वो कपड़े को रखने के लिए रसोई में आ गयी। अब दोनों सास बहु एक- दूसरे को देख रोने लगी और अपने आँशु पोंछ कर खाने की मेज के पास आ गयी।
अनामिका को तो कुछ समझ ही नही आ रहा था। कहाँ उसे लगा था की उसके ससुर जी करण को समझायेंगे लेकिन यहाँ तो उल्टा ही है। उसे तो करण अपने ससुर जी का ही दूसरा रूप लगने लगा था। खाना खाने के बाद मनोहर जी ने करण से कहा – बेटा मुझे तुझसे ये उम्मीद नही थी । तुम्हे अपना घर अच्छे से चलाना नही आया बेटा। क्या हुआ पापा क्या कर दिया मैंने? करण ने आश्चर्य से मनोहर जी से पूछा। बेटा मेरी शादी को 35 साल हो गए 30 साल से तुम भी देख रहे हो आज तक तुम्हारी माँ की इतनी हिम्मत नही हुई की मेरे घर की बात अपने मायके में बता सके और तुम्हारी बीवी….।
मेरी बीवी क्या पापा साफ साफ कहिये न। बेटा तुम्हारी बीवी को तो अभी 1 साल ही हुए है और वो अपने माँ- बाप से तुम्हारी शिकायत करने लगी है। तुम अपनी बीवी को इतना भी कंट्रोल नही कर सके। तुम मेरी ही औलाद हो न? यही सिखा 30 सालों में तुमने मुझसे। तुम्हारे ससुर जी ने मुझे फोन किया था और तुम्हे समझाने को कहा वही करने आया हूँ। संभाल लो अपने पत्नी को। मनोहर जी की ये बातें सुन कर अनामिका का डर से बुरा हाल हो गया था और करण भी गुस्से से उसे देख रहा था। कुमुद जी तो बेजान सी हो गयी ये जान कर की उनके बेटे का स्वभाव भी उनके पति की ही तरह है।
मनोहर जी अपने कमरे में चले गए। करण भी गुस्से में अनामिका को देखता हुआ अपने कमरे में चला गया। अनामिका डर के मारे हिल भी नहीं रही थी। सबके जाने के बाद कुमुद जी अनामिका के पास आयी और उस गले लगा कर रोने लगी। अनामिका भी कुमुद जी के गले लग कर जोर – जोर से रोने लगी। अनामिका के रोने की आवाज कमरे में न चली जाए इस डर से कुमुद जी अनामिका को ले कर रसोई में आ गयी। अनामिका लगातार रोई जा रही थी साथ में कुमुद जी भी रोने लगी………वो रोते- रोते बोलने लगी मुझे माफ कर दे बेटा मुझे नही पता था,
की करण भी अपने बाप की ही तरह निकलेगा नहीं तो मै मर भी जाती तब भी कभी उसकी शादी नही होने देती। मैं नही चाहती थी की जिस घुटन भरे रिश्ते में मैं जीती आयी हूँ उसमे कोई और जिए। मेरी परवरिश में ही कहीं कमी रह गयी बेटा, जो मेरा बेटा मेरे इतने समझाने के बाद भी अपने बाप के ही नक्शे कदम पर चल रहा। मुझे माफ कर दे मेरी बच्ची ये सब मेरी ही गलती है, अगर आज से 35 साल पहले मैंने इनके खिलाफ आवाज उठा ली होती तो आज तेरी भी ज़िंदगी बर्बाद नही हुई होती। मम्मी तो आपने क्यों नहीं कुछ किया? क्यों अपने घर में नही बताया?
अनामिका ने कुमुद जी से पूछा। बताया था बेटा अपने माँ- बाप दोनों को बताया था, लेकिन उनका कहना था की शादी के शुरुआत में सबको थोड़ी दिक्कत आती है, धीरे – धीरे सब ठीक हो जाएगा थोड़ा सब्र रखो। 2,3 साल तक जब कुछ नही बदला फिर जब कहा तो कहने लगे एक बार एक बच्चा हो जाने तो फिर पक्का सब ठीक हो जाएगा। मैंने बच्चा भी कर लिया फिर भी कुछ ठीक नही हुआ। फिर करण बड़ा होने लगा और उसके भविष्य की वजह से मैं इस रिश्ते में बंधी रह गयी , कुमुद जी इतना कह कर फुट -फुट कर रोने लगी। अनामिका भी उनसे लिपट कर रोने लगी।
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फिर अचानक कुमुद जी ने अपने आँसू पोछे और अनामिका को दोनों हाथों से पकड़ कर उसकी आँखों में आँखे डाल कर उन्होंने कहा बेटा मैं तो घुट- घुट कर जीती रही लेकिन तुझे नही जीने दूँगी। तु चली जा बेटा तु करण को छोड़ कर चली जा। मैं तो कम पढ़ी लिखी थी लेकिन तु तो काफी पढ़ी लिखी है । तु नौकरी कर के अपनी ज़िंदगी बिता सकती है और बेटा तु करण से तलाक़ ले कर दूसरी शादी कर लेना । चली जा बेटा चली जा यहाँ से ऐसे घुटन वाले रिश्ते में जीना बहुत मुश्किल है बेटा बहुत मुश्किल है। ये लोग कभी नहीं बदलेंगे कभी नहीं। यहाँ तो अपने मन से सांस लेना भी मुश्किल है। तु चली जा यहाँ से। और मम्मी आप?
आप कब तक ऐसे ही जीतीं रहेंगी? अनामिका ने कुमुद जी देख कर कहा तो कुमुद जी उसे देखती रह गयी। फिर हंस कर कहा बेटा अब मैं कहा जाऊँगी….. जब माँ – बाप जिंदा थे तब तो वो ले नहीं गए अब मुझे कौन रखेगा। माँ- बाप नहीं है तो क्या हुआ मम्मी आपकी बेटी तो है न..हम दोनों एक साथ रहेंगे। मुझे अपने माँ- बाप के पास नही जाना वो फिर मुझे यहाँ भेज देंगे। हम दोनों ने ये घुटन वाली ज़िंदगी देखी है इस लिए हम दोनों ही इससे आज़ाद होने का अहसास समझ सकते है,मम्मी और कोई नही समझेगा हमारे दर्द को । चलिए मम्मी हम दोनों चलते है यहाँ से। मैं आपकी बेटी जैसी आपकी देखभाल करूँगी। मम्मी ये लोग इंसान नही हैवान है
मेरे जाने के बाद पता नही ये लोग आपके साथ क्या करेंगे। अगर आप नहीं जायेंगी तो मैं भी नही जाऊँगी। नहीं बेटा अब मैं इस उम्र में कहाँ जाऊँगी, मेरी तो आधी से ज्यादी ज़िंदगी गुजर गयी है , तु चली जा तेरे सामने तो पूरी ज़िंदगी पड़ी है। कुमुद जी ने अनामिका से कहा तो अनामिका ने साफ़ मना कर दिया नहीं मम्मी जी हम जाएंगे तो साथ जायेंगे नही तो साथ ही रह कर सब सहेंगे, आधी ज़िंदगी तो घुट – घुट कर गुज़ार ही दिया मम्मी जी अब बाकी की बची ज़िंदगी को कम से कम अच्छे से गुज़ार लीजिये ।
इस घुटन भरे रिश्ते से तो कुमुद जी भी आज़ाद होना चाहती थी। बस कभी किसी ने उनका साथ नही दिया। आज अनामिका के कहने पर उन्हें एक उम्मीद दिखी। और सही तो कह रही थी अनामिका आधी ज़िंदगी तो ऐसे ही कट गयी अब जो थोड़ी सी ज़िंदगी बची है उसे तो खुल कर जी लूँ। उन्होंने अनामिका का हाथ पकड़ा और कहा – चलो बेटा अब हम दोनों अपनी ज़िंदगी खुल कर जिएँगे। दोनों सास – बहु के चेहरे पर एक अलग ही चमक थी। दोनों अपने – अपने कमरे में गयी। मनोहर जी और करण दोनों सो चुके थे। अनामिका ने अपना समान पैक किया और धीरे से कमरे से बाहर आ गयी। कुमुद जी ने भी अपना बैग उठाया
और दोनों उस घर से निकल गयी। अनामिका ने एक कैब बुक किया और दोनों एक होटल में जा कर रुक गयी। जब सुबह हुई और कुमुद जी और अनामिका दोनों घर में नही दिखी तो करण ने अनामिका को फोन किया पहले तो अनामिका ने फोन नही उठाया, फिर जब करण ने लगातार फोन किया तो अनामिका ने फोन उठाया फोन उठाते ही करण चिल्लाने लगा कहा हो तुम? तुम्हारा दिमाग तो ठीक है? पापा को और मुझे चाय चाहिए , मम्मी कहाँ और ये बताओ तुम सुबह – सुबह कहा सैर करने गयी हो? घर आओ फिर तुम्हे बताता हूँ….. कल रात भी मैं सो गया था इस लिए तुम्हारा मन ज्यादा उड़ने लगा, जल्दी घर आओ।
इतना बोल कर भी जब करण चुप नही हुआ तब अनामिका ने भी चिल्लाते हुआ कहा – एक मिनट करण थोड़ा साँस ले लो और अच्छे से सुनो… … अपनी और अपने पिता जी की चाय खुद बना लो और हो सके तो अपना काम करना सीख लो क्योंकी मैं और मम्मी जी ने खुद को तुम लोगो की गुलामी से आज़ाद कर लिया है। इतना कह कर अनामिका ने फोन कट कर दिया और करण का नम्बर भी ब्लॉक कर दिया।
उसने अपने पापा – मम्मी को भी फोन कर के बता दिया। उसके पिताजी जब उसे समझाने लगे तो कुमुद जी ने फोन ले लिया और कहा की आप अब अनामिका की चिंता मत कीजिए हम माँ- बेटी अपनी ज़िंदगी मजे से गुज़ार लेंगे और फोन कट कर दिया। अनामिका ने एक नौकरी पकड़ ली और कुमुद जी भी घर में ही छोटे- छोटे बच्चों को टूयूशन पढाने लगी। अनामिका की एक दोस्त वकील थी । उसने उन दोनों का तलाक़ भी करवा दिया। कोर्ट के लिए भी ये एक अनोखा ही केस था जहाँ सास और बहु एक साथ तलाक़ ले रही थी। इस लिए उनका तलाक़ भी जल्दी ही हो गया। उन दोनों सास – बहु को ” एक घुटन भरे रिश्तें से आख़िर आज़ादी मिल ही गयी।”
दोनों सास- बहु माँ- बेटी की तरह खुशी- खुशी अपनी ज़िंदगी गुज़ारने लगी।
#स्वरचित
नितु कुमारी
दिल्ली