एक धागे की कठपुतली – मीनाक्षी गुप्ता : Moral Stories in Hindi

एक बड़े से शहर में एक मध्यम वर्गीय परिवार रहता था। माता-पिता और उनके तीन बच्चे – संजय, विक्रम और सबसे छोटा अमन।

सभी बच्चे बड़े हो गए थे और संजय और विक्रम की शादी हो चुकी थी। घर में रौनक थी, लेकिन एक दिन अचानक सब बदल गया। माता-पिता का साया सिर से उठ गया। अब घर में सिर्फ तीनों भाई और उनकी पत्नियाँ थीं।

माता-पिता के जाने के बाद, सबसे छोटा अमन अकेला पड़ गया। अमन स्वभाव से बहुत सीधा-सादा और भोला था। वह अपने बड़े भाइयों संजय और विक्रम को अपने माता-पिता के बराबर मानता था। उनकी हर बात मानता और उनका सम्मान करता था।

संजय और विक्रम का अपना अच्छा-खासा बड़ा कारोबार था, जो उनके पिता का था। अमन की नौकरी छोटी थी, किसी और की दुकान पर। उससे उसका गुजारा मुश्किल से ही हो पाता था।

संजय और विक्रम, और उनकी पत्नियाँ प्रीति और कविता, मन ही मन अमन को लेकर खुश नहीं थे। वे चाहते थे कि  अमन हमेशा उनके इशारों पर नाचता रहे ।

उनके मन में लालच आ गया था। उन्होंने सोचा कि क्यों न अमन की शादी किसी गरीब घर की सीधी-सादी लड़की से करवा दें, ताकि वह उनकी बातों में रहे और घर के सारे काम भी करे।

उन्होंने नेहा नाम की एक लड़की देखी। नेहा बहुत भोली और सीधी थी। उसकी शादी अमन से तय कर दी गई। शादी के सारे फैसले संजय और विक्रम ने लिए। उन्होंने शादी में बहुत कम खर्चा किया, बस नाम भर की शादी कर दी। नेहा के लिए नए कपड़े, नए गहने कुछ नहीं लाए गए।

प्रीति और कविता ने अपने पुराने कपड़े और गहने नेहा को पहनने के लिए दिए। अमन को भी समझाया गया कि यह सब बहुत अच्छा है। नेहा ने चुपचाप सब पहन लिया। शादी के मंडप से लौटते ही, भाभियों ने नेहा से उसके गहने तुरंत वापस ले लिए और अपनी तिजोरी में रख दिए।

नेहा के लिए शादी के बाद की जिंदगी किसी डरावने सपने से कम नहीं थी। सुबह से रात तक उसे घर का सारा काम करना पड़ता। प्रीति और कविता हाथ पर हाथ धरे बैठी रहतीं, अपने बच्चों का काम भी नेहा पर छोड़ देतीं।

अमन अपनी नौकरी से देर से घर आता था। अमन की भाभियों  का तो पूरे घर पर अपना कंट्रोल था । वह अक्सर ऐसा करती कि सबके खाने के बाद बहुत ही कम खाना बचाती । जिसमें सिर्फ एक इंसान ही ढंग से खाना खा सकता था। नेहा के लिए तो खाना बहुत ही कम बचता था । कभी वह सूखी रोटी खाती थी कभी वह सूखी सब्जी खा रही होती थी।

खाना कम बचता था या बासी मिलता था। नेहा अमन के खाने के बाद ही खाना खाती थी । अमन तो  उसका खाने के लिए कभी इंतजार करता नहीं था इसलिए उसे पता ही नहीं था कि नेहा क्या खा रही है क्या नहीं खा रही है । अमन के खाना खाने के बाद जो कुछ बचता था नेहा उसी को खाकर अपना काम चला लिया करती थी। 

अमन की दोनों भाभियों नेहा को सारा दिन काम में लगा कर रखती थी सुबह से लेकर रात हो जाती थी वह थककर चूर हो जाती थी लेकिन उसके बाद भी उन लोगों को तरस नहीं आता था।  कभी नेहा थककर अमन से कुछ कहती, तो अमन अपनी भाभियों के पक्ष में रहता। वह नेहा को चुप करा देता, और कभी-कभी तो गुस्से में उसे थप्पड़ भी मार देता था।

नेहा चुपचाप सब सहती थी। उसे पहनने के लिए मुश्किल से दो-तीन कपड़े मिले थे वह भी उसकी भाभियों के पुराने कपड़े थे, सर्दी में सिर्फ वही एक पुराना स्वेटर था जो उसे शादी में मिला था। जब भी वह कभी अमन से कहती कि उसे सर्दी लग रही है उसको गर्म कपड़े पहनने के लिए चाहिए या उसके कपड़े पुराने हैं  तो वह कह देता

की छोटी-छोटी बातों के लिए मुझे परेशान मत करो अगर तुम्हें किसी भी चीजक जरूरत हो तो भाभी से बात कर लिया करो मैं तो सुबह का गया हुआ रात को घर पर आता हूं और रात को भी तुम मुझे शांति से नहीं रहने देती। धीरे-धीरे नेहा ने अमन से कुछ भी कहना सुनना बिल्कुल बंद कर दिया । अब अगर वह बीमार होती या भूखी प्यासी रहती है

या कुछ भी होता उसके साथ तो वह अमन से कभी कुछ नहीं कहती और अब अमन को लगने लगा कि उसकी पत्नी परिवार के सदस्यों के साथ घुल मिल गई है। अब तो वह बिल्कुल ही बेफिक्र हो गया नेहा की तरफ से। नेहा को उसके मायके भी अमन के साथ या किसी और के साथ

सिर्फ एक-दो घंटे के लिए भेजा जाता था, मानो वह निगरानी में हो। रिश्तेदार आते, तो नेहा से सारा काम करवाते, फिर उसे छत पर या बाथरूम में कपड़े धोने भेज देते, ताकि मेहमानों के सामने उसकी बुरी हालत न दिखे।

कुछ महीने इसी तरह बीत गए। एक दिन नेहा को पता चला कि वह माँ बनने वाली है। यह खबर उसे खुश करने के बजाय और डरा गई। वह सोचती, “मुझे खुद भरपेट खाने को नहीं मिलता, मेरा ही कुछ नहीं हो रहा, मेरा पति मेरी नहीं सुनता… तो बच्चे का क्या हाल होगा?”

जब नेहा ने अपनी गर्भावस्था की खबर घर में बताई, तो प्रीति और कविता के मन में ईर्ष्या जाग उठी। वे आपस में फुसफुसाईं, “अच्छा, इसके बच्चा हो जाएगा तो फिर हमारे काम कौन करेगा?” इस डर से उन्होंने नेहा पर और ज़्यादा अत्याचार करना शुरू कर दिया।

गर्भावस्था में भी उससे खूब काम करवाया, उसे आराम नहीं करने दिया, और पौष्टिक खाने की जगह बचा-खुचा खाना देती रहीं। अमन इन सब को अपनी भाभियों का ‘ख्याल रखना’ समझता था और नेहा की शिकायतें अनसुनी कर देता था।

एक दिन नेहा को तेज़ बुखार आया।  रोज सुबह से जाकर काम में लगने वाली नेहा आज उठी ही नहीं तो अमन की भाभियों जोर-जोर से चिल्लाने लगी और उन्होंने अमन से नेहा की शिकायतें लगे कि नेहा रोज-रोज ही ऐसे ढंग करती है और काम नहीं करती और भी झूठ सच्चे आरोप लगाए । अपनी भाभियों की बात सुनकर अमन गुस्से में कमरे के अंदर आया और नेहा के ऊपर चिल्लाने लगा  ।

बुखार की वजह से नेहा को बहुत कमजोरी हो रही थी । अमन के चिल्लाने से वह डर जाती है और खड़े होने की कोशिश करती है लेकिन कमजोरी की वजह से उसे चक्कर आ जाता है और  वह नीचे गिरने लगती है उसने अमन को कुछ कहने की कोशिश की, पर अमन गुस्से में था। अपनी भाभियों की बातों से प्रभावित होकर, उसने नेहा पर फिर गुस्सा किया और उसे थप्पड़ मार दिया।

नेहा वहीं ज़मीन पर गिर गई। नीचे गिरते ही नेहा पूरी तरह से बेहोश हो जाती है । उसके सर से खून निकलने लगता है और नेहा को नीचे गिरा देखकर उसके कमरे में सभी इकट्ठे  हो जाते हैं और आपस में काना फूंसी करने लगते हैं फिर अमन से कहते हैं कि उसको अस्पताल लेकर चला जाए । उसके साथ कोई नहीं जाता सब घर में रुक जाते हैं । अमन नेहा को सरकारी अस्पताल ले गया।

डॉक्टर ने जांच की और अमन को बताया, “आपके बच्चे को हम बचा नहीं पाए। और आपकी पत्नी के शरीर में खाने-पीने के पोषक तत्वों की गंभीर कमी है। ये बहुत कमज़ोर हैं।” डॉक्टर ने अमन की लापरवाही देखकर उसे चेतावनी भी दी,

“यह पुलिस केस भी हो सकता है! अगर आपने इनका ध्यान नहीं रखा, तो गंभीर परिणाम होंगे।” पुलिस की बात सुनकर अमन थोड़ा डर गया, पर अभी भी उसे पूरी बात समझ नहीं आ रही थी। उसने डॉक्टर से कहा कि वह घर जाकर अपने भाई-भाभियों से बात करेगा।

अमन अस्पताल से सीधा घर आया। उसका गला सूख रहा था। वह किचन में पानी पीने के लिए मुड़ा, और उसी वक्त उसे ड्रॉइंग रूम से भाभियों की फुसफुसाहट सुनाई दी। वे सोच रही थीं कि अमन जा चुका है।

प्रीति राहत भरी आवाज़ में बोल रही थी, “अच्छा हुआ बला टली! न बच्चा, न उसका झंझट। अब ये (नेहा) फिर से हमारे काम में लगेगी, पूरे घर की नौकरानी बनकर!”

कविता खुशी से बोली, “हाँ! सोचा था, बच्चा पैदा होगा तो सिर पर चढ़ जाएगी। अब जिंदगी भर यहीं सड़ेगी, हमारी कठपुतली बनकर रहेगी! अब तो कोई बहाना भी नहीं चलेगा।”

संजय और विक्रम ने भी हाँ में हाँ मिलाई। दोनों भाई भी कहने लगे कि अमन की  घर परिवार के चक्कर में नहीं पड़ेगा तो वह हमारी दुकान में हिस्सा नहीं मांग पाएगा और सब कुछ हम दोनों भाइयों और हमारे बच्चों का ही रहेगा ।

यह बातचीत अमन के कानों में पड़ी और वह पत्थर बन गया। उसके हाथ से गिलास छूट गया। उसे लगा जैसे किसी ने उसके सिर पर वज्रपात किया हो। उसकी आँखों के सामने नेहा के दर्द भरे पल घूम गए – उसके थप्पड़, उसकी शिकायतें, और भाभियों का क्रूर व्यवहार।

उसे समझ आया कि वह अपने ही परिवार की सबसे बड़ी कठपुतली था, जिसकी डोर इन लालची और क्रूर लोगों के हाथ में थी। और सबसे भयानक बात तो यह थी कि उसने अपनी पत्नी नेहा को भी अपने ही हाथों से एक बेजान कठपुतली बना दिया था, जिसकी न कोई आवाज़ थी, न कोई इच्छा।

यह सोचकर उसके रोंगटे खड़े हो गए कि उसी की वजह से, उसी की अनदेखी और उसके भाई-भाभियों की क्रूरता के कारण, उसके अपने बच्चे का अस्तित्व ही खत्म हो गया था। यह एक तरह से उसके बच्चे का खून था, जिसकी ज़िम्मेदारी उसी पर आती थी।

अमन चुपचाप अस्पताल लौट आया। उसकी आँखों में अब आँसू थे और दिल में भारी बोझ। वो अस्पताल की बेंच पर ही बैठ गया आज उसे रोना आ रहा था और सच्चा पश्चाताप भी हो रहा था  वह नेहा के होश में आने का इंतजार करने लगा ।

एक नर्स ने आकर उसे बताया कि नेहा को होश आ गया है तो वह बड़े भारी कदमों और झुकी हुई गर्दन के साथ नेहा के पास गया । उसने नेहा का हाथ पकड़ा और रोते हुए उससे माफी मांगी। उसने अपनी भाभियों की सारी बातें बताईं, और स्वीकार किया कि वह खुद उनके हाथों की कठपुतली था।

जब नेहा को होश आया, तो उसने अपनी सारी पीड़ा और अपमान अपनी आँखों में लिए अमन की तरफ देखा। उसे अमन की माफी और पछतावा दिखा, लेकिन जो नुकसान हुआ था, वह भर नहीं सकता था। उसने शांत और दृढ़ आवाज़ में कहा, “तुम्हारा बदलना ज़रूरी है, अमन, लेकिन मेरे लिए बहुत देर हो चुकी है।

मेरा बच्चा… उसे मैंने खोया है।  तुम तो अपने भाई भाभियों के हाथ की कठपुतली बने हुए ही थे , तुमने मुझे भी उनके इशारों पर नाचने वाली कठपुतली बना दिया ।

तुम्हारी कठपुतली बनकर मैंने अपनी ज़िंदगी का सबसे अनमोल हिस्सा गंवा दिया। मैं अब किसी की कठपुतली नहीं रहूँगी, तुम्हारी भी नहीं। मुझे आज़ादी चाहिए।” उसने अमन से कहा कि वह इस घर में अब और नहीं रह सकती।

नेहा अस्पताल से डिस्चार्ज होने के बाद अमन के साथ घर नहीं गई, बल्कि सीधे अपने मायके चली गई। उसने अमन को अपने साथ नहीं आने दिया। अमन पूरी तरह टूट चुका था। वह घर वापस आया, अपने भाई-भाभियों से कोई झगड़ा नहीं किया, बस चुपचाप अपना सामान पैक किया।

वह अब उनकी बातें नहीं सुनता, न ही उन्हें देखता था। वह अब उनकी कठपुतली नहीं था। अमन उस घर और उस ज़हरीले रिश्ते को छोड़कर चला गया। उसने अपना अलग रहने का फैसला किया और अपने भाई-भाभियों से सारे संबंध खत्म कर दिए।

अगले कुछ साल बीत गए। अमन ने नेहा के घर के पास ही एक  छोटा सा कमरा किराए पर ले  लिया और कोई भी छोटी-मोटी नौकरी करके अपना गुज़ारा चलाता रहा। वह हर दिन, चाहे बारिश हो या धूप, नेहा के मायके जाता। वह उसके दरवाज़े पर खड़ा रहता, कभी-कभी बस इतना कह पाता, “मुझे माफ़ कर दो, नेहा।

मैंने तुम्हारी ज़िंदगी बर्बाद कर दी।” नेहा का परिवार उसे बेइज़्ज़त करता, उसे “क़ातिल” कहता, पर अमन चुपचाप सब सहता। नेहा जब भी उसे देखती वह उसे हर बार यही एहसास दिलाती कि वह उसके खुशियों का उसके  बच्चों का कातिल है । उसे बहुत भला बुरा  बोलती। अमन जानता था  कि वह इसी नफरत का हकदार है।

नेहा शुरू में उससे बात भी नहीं करती, उससे नफ़रत करती थी। पर धीरे-धीरे, अमन के इस अटल पश्चाताप और सहनशीलता को देखकर, उसके मन में बदलाव आया। उसने देखा कि अमन अब वह कठपुतली नहीं रहा।

उसने अपना घर, अपना परिवार, सब कुछ छोड़ दिया था। नेहा को  अमन से सच्चा प्यार था, जो इन परिस्थितियों में कहीं दब गया था। उसे एहसास हुआ कि अमन बदल चुका है और सच्चा पश्चाताप कर रहा है। उसके दिल में अमन के लिए बचा हुआ सच्चा प्यार फिर से जागने लगा।

एक दिन, नेहा का परिवार, अमन की निरंतर कोशिशों और उसके सच्चे पश्चाताप से प्रभावित होकर, उसे माफ़ करने का फैसला करता है। नेहा अमन से बात करती है। वे दोनों अपने दर्द और पुरानी बातें साझा करते हैं। नेहा, जो अब पहले से कहीं ज़्यादा मज़बूत और आत्मनिर्भर है, अमन को माफ़ी दे देती है।

वे दोनों मिलकर अपनी ज़िंदगी की एक नई शुरुआत करने का फैसला करते हैं। अमन अब किसी की कठपुतली नहीं है, और नेहा भी अब वो दबी हुई आवाज़ नहीं है। वे दोनों एक-दूसरे का हाथ थामते हैं, यह जानते हुए कि रास्ता मुश्किल होगा,

लेकिन वे साथ हैं। वे एक छोटे से, लेकिन प्यार और सम्मान से भरे घर में खुश हैं। वे जानते हैं कि पुरानी यादें हमेशा रहेंगी, लेकिन उनका प्यार और विश्वास उन्हें आगे बढ़ने की शक्ति देता है। अमन हमेशा इस बात को याद रखता है कि वह कैसे अपने ही हाथों

अपने और अपनी पत्नी के जीवन को एक कठपुतली बना दिया था और अपने बच्चे को खो दिया था, पर अब वह आज़ाद था, और नेहा भी। यह उनकी आज़ादी की कहानी थी।

समाप्त 

मीनाक्षी गुप्ता

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