एक औरत कठपुतली नहीं – अमिता कुचया : Moral Stories in Hindi

नताशा ने जैसे ही दरवाजा खोला उसकी आंखे आंसू से भीग गयी उसे लगा जमीन पर जाके गड़ जाऊं ,,पर क्या जीवन का अंत आसान है, वो दो बच्चों के बारे में सोचकर सह जाती है। हुआ यू कि नताशा के पति को पीने की आदत हो गई है।अब ये है, कि जिंदगी के इस पड़ाव में कुछ कर भी नहीं सकती है। जब दरवाजा खोल रही थी, तब नीरज चिल्लाने लगा कि दरवाजे खोलने में देर कैसे लग गयी? बहरी हो गई है क्या…उसने इतनी पी कि होश ही न था कि मोहल्ले वाले खड़े हो जाएगें। 

नीरज के हिसाब से दोस्तों यारो के साथ पीना पिलाना चलता है। जब सामने वाला खर्च करता है तो हम भी कम है क्या….इसी के चलते वो घर में देर से आने लगता है,वो एक कंपनी में मैनेजर है।

खाने में बारह बजे वो डिमांड करता है जो घर में न बना हो ऐसे में नताशा बेबस होकर उसका मन न होने के बावजूद बनाती है,उसे डर रहता है बच्चे इस हालत में न देख ले। बस यही देखकर वह चुप रह जाती है ,जब उसने कहा- देखो नीरज बच्चे बड़े हो रहे हैं सोचो वे इस हाल में देखेंगे तो क्या कहेंगे… 

  ये भी सोचो कि आप बच्चों को क्या सिखा रहे हो ……तब वो तैस में आकर कहता – कुछ बोलने की जरूरत नहीं है। समझी तुम चुपचाप काम करो और पड़ी रहो। तब वो कहती वो क्या मैं आपके हाथ की कठपुतली हूं , जैसा नचाओ और मैं नाचूँ मुझे पता होता तो कभी आपसे शादी न करती। 

 तब वह कहता – सब कुछ है तुम्हारे पास किस चीज की कमी….क्या दो वक्त का खाना भी नहीं दे सकती हो, तुम ऐसा क्या ही कर रही हो जोअपनेे आपको कठपुतली कह रही हो। 

वो रोने लगती और कहती देखो तुम्हें अभी करेले की ही सब्जी खानी थी ,जबकि तुम्हारे मन की मैंने भरवा भिंडी बनाई ,अब बताओ कठपुतली नहीं तो मैं क्या हूं तुम्हारे लिए,अब तो मेरे लिए आप ही सब कुछ हो जो भी हो… बस मैं चाहती हूं कि पीना पिलाना छूट जाए। इससे ज्यादा कुछ नहीं चाहिए ,मैं तो हर जिम्मेदारी निभा रही हूं। 

 तब वो कहता बस बस बहुत हो गया…मुझे कुछ नहीं सुनना और ज्यादा बोलने की जरूरत नहीं है ,समझी ज्ञान बांटना है तो दुनिया को बांटो। वह वही बिस्तर पर पसर जाता है… 

वह जानती ज्यादा बोलने पर नीरज की आवाज तेज हो जाएगी। 

इस तरह रात काफी होने पर वह हंगामा नहीं चाहती थी। 

अब उसकी आंखों से आंसू बहने लगते हैं ,वह सोचती है मैं तो पति के हाथ की कठपुतली बन गयी हूं। जैसा कहे वैसा ही करती रहूं,,क्या यही है मेरी जिंदगी, क्या ये सब सहने की आदी हो जाऊं,क्या यही है मेरे लिए एक चुटकी सिंदूर की कीमत……. 

और सिसकने लगती है उसके पास कोई चारा नहीं बचता है वो सोचती है कि मायके में बताती हूं, इनकी बदनामी होगी। और इसी आदत के चलते हमें बाबू जी अलग कर चुके हैं, जिम्मेदारी होगी तो सुधर जाएंगे। 

अब दिन रात इसी में कुढ़ने लगती है कि क्या करे। उसे लगता कि बच्चो की खातिर वह केवल कठपुतली बनकर रह गयी है। ऐसे ही दिन बीतते जाते हैं … 

वह भगवान से दिन रात यही प्रार्थना करती है कि नीरज सही रास्ते पर आ जाए। 

पर कहते हैं कि ये लत उसकी छूटने का नाम नहीं ले रही है ,,अब हालात ये हो रहे कि जितना पैसा चाहिए होता निकाला और जेब में रख लिया,जब नताशा पूछती तो  तब वह कहता तेरे को क्या करना मेरे से ज्यादा बोलने की जरुरत नहीं समझी…..

अब पैसा आलमारी में कम लगता तो नताशा अलग रखती है ।  एक दिन

वह आलमारी में कम पैसे देखकर तमतमा जाता है और पूछने लगता है कि बीस हजार कहाँ गये , अब वह उसके पर्स में देखने लगता है तभी नेहा नहीं देती तो उससे छीन लेता है। तब उसे बुरा लगता है।

ऐसे हालात में क्या करे!!वह समझ नहीं पा रही थी। उसने अपने ससुर को फोन लगाया ,तब सब कुछ बताया तो उसके ससुर ने आश्वासन देकर कहा – नताशा बहू मैं बात करुंगा। अति नहीं होने दूंगा। सब ठीक है जाएगा। और धैर्य रखो। 

अब जैसे आदत नीरज पर हावी हो रही थी। वैसे ही घर पर पैसे की कमी होने लगी थी। 

एक दिन तो नताशा को पैसा न देने पर खींच कर बाहर करने लगा। तब नताशा को मजबूरी में एक फैसला लेना पड़ता है कि वो मायके जाएगी, और सब कुछ पापा मम्मी को बताएगी और अपनी जिंदगी का फैसला लेगी।फिर जो होगा वो मंजूर करेगी। 

इस तरह वो बच्चों को लेकर मायके चली जाती है। वहां से उसके पिता जगदीश प्रसाद जी उसके ससुर को फोन करते हैं। बताइये समधी साहब आपके बेटे ने मेरी बेटी को कमरे से धक्के से बाहर कर दिया ये क्या सही है,उससे ये उम्मीद नहीं थी। मैंने तो पढा़ लिखा काबिल समझकर अपनी बेटी ब्याही थी। हमें पता नहीं था कि पीने पिलाने वाला है ,नहीं तो मैं अपनी बेटी की शादी कभी न करता है। 

तब मनोहर जी कहते है,, मैं माफी चाहता हूं, जो हमने अपने बेटे की इस आदत को न बताया,मैंने तो समझा कि एक सुलझी लड़की घर आएगी और जिम्मेदारी बढ़ेगी तो सुधर जाएगा। तब नताशा कहती- पापा मेरा जीवन तो एक कठपुतली की तरह बन गया है। मैं इनके अनुसार इतने दिन ढलती रही पर अब तो अति हो रही है,

पहले भी आपको बताया लेकिन अब तो नीरज के साथ मेरा धैर्य जवाब देने लगा है, आप ही बताइये मैं क्या करु। मेरे भी सपने थे ,मेरा खुशहाल जीवन हो। बच्चों को पूरा प्यार मिले। पर इनके नशे में होने के कारण मुझे बच्चों को जल्दी सुलाना पड़ता है ,ताकि इनको समझाऊँ। कभी ज्यादा बोलो तो गुस्से में चिल्लाने लगते हैं। मैं आखिर कब तक ये एक चुटकी सिंदूर की कीमत चुकाऊं?? 

तब मनोहर जी नताशा और   जगदीश जी से कहते- देखिए समधी जी हम सब बैठकर समझाते हैं।ऐसे में नीरज और उसके माता पिता उसके मायके आते हैं। तब नीरज से पूछा जाता है कि अब क्या करना है। तुम्हारे छोटे – छोटे बच्चे हैं, कल के दिन बड़े होंगे। और खर्च बढ़ेगें। तुम्हारा ये रवैया कितना प्रभावित करेगा। सोचा है तुमने!!

तब नीरज कहता मैं हर जिम्मेदारी तो पूरी करता हूँ इससे ज्यादा क्या करु!!!! घर का खर्च भी उठा रहा हूँ। 

कभी कभार ज्यादा हो जाती है। 

तब नताशा कहती- मैं यही नहीं चाहती कि ज्यादा हो और आप आपे से बाहर हो जाओ मैं तो बस अलग होना चाहती हूँ। मैंने एक चुटकी सिंदूर की कीमत देख ली तुम्हें मेरी कितनी परवाह है। अब मेरे बच्चे बड़े हो रहे हैं इसलिए मैं ऐसा माहौल नहीं चाहती कि उन पर बुरा असर पड़े। 

तब नताशा के पापा समझाते हुए नीरज से कहते- बेटा अपनी गृहस्थी सुख चैन से चलाओ, अलग होने में क्या रखा है , मैंने इस विश्वास पर तुम्हें अपनी बेटी के हाथ में दिया कि तुम इसे खुश रखोगे।ये तो नहीं चाहा कि मेरी बेटी जीवन भर ये सब सहती रहे यदि समय रहते तुम नहीं सुधरे तो पता नहीं तुम्हें कल के दिन क्या झेलना पड़े। कहीं कोई शरीर पर बुरा असर हो, या किडनी खराब हो जाए।

 तब वह यह सुनकर कहता -पापा जी

मेरी ये आदत एक दिन में तो छूट नहीं जाएगी ,पर वादा करता हूँ कि धीरे धीरे कम करने की कोशिश करुंगा। 

तब नताशा कहती -जब कम हो जाए तो बता देना मैं आ जाऊंगी। लेकिन मेरे बच्चे मेरे पास रहेंगे। 

तब नताशा के ससुर कहते -बहू नताशा कोई बेटी कितने दिन मायके में रह सकती है ,ऐसा करो इसे अलग ही रहने दो, जब अकेला रहेगा तब अकल ठिकाने आ जाएगी।  तुम हम लोग के साथ रहो। 

पापा और ससुर जी के कहने पर नताशा और उसके बच्चे सास ससुर के घर में रहते हैं। इधर नीरज अकेले अपने घर में….. उसे किसी भी चीज़ की जरुरत होती तो नताशा चिल्लाता…… और वह नशे में रहता तो पट्ट हो जाता है। जब अगले दिन देर से उठता है तब

उसे घर में शांति का एहसास होता और वह समझ जाता कि नताशा तो है ही नहीं….. 

घर में बच्चों के ना रहने से रौनक भी नहीं है। वह जल्दबाजी में आफिस के लिए तैयार होता है, उसे कुछ न मिलने से झल्लाहट होती है। वह चाय ब्रेड ही खाकर निकलता है। तो आफिस से फोन पर बात होने पर पता चलता है कि मीटिंग वाली फाइल तो घर में ही भूल गया है। वह वापस गाड़ी घुमाता है। फाइल लेता है और आफिस जाता है तभी उसे काफी लेट होता है। आफिस पहुंचने पर मीटिंग का टाइम ओवर होने पर कहता सर काफी रश था। इस कारण से लेट हुआ हूं। 

इस तरह उसका ये दिन काफी तनाव में निकलता है….. 

और वो मूड अच्छा करने के लिए दोस्तों के साथ पार्टी करता है। इस तरह देर रात को घर पहुंचकर सो जाता है। 

ऐसे  ही कुछ दिन ये सिलसिला चलता  है … 

अब वह बाहर ही खाना खाता और और देर रात में सोता है। 

उसे लगने लगा कि चलो कोई रोकने टोकने वाला नहीं है उसकी पीने की आदत ऐसी हो गयी कि घर पर बाटल लाने लगा। 

एक दिन उसे खूब उल्टियां हुई। फिर दवाई खाकर छुट्टी लेकर घर में पड़ा रहा। नशा तो उतर चुका था। कमजोरी की वजह वह उठने बैठने में दिककत होने लगी और  उसे भारी -भारी सा शरीर लगने लगा था। 

अब तो जैसे उसे नताशा और बच्चों की कमी एहसास हो रहा था। उसने बोटल उसी समय फेंका और निश्चय कर कहा और अब नहीं…. 

जब नीरज के आफिस से नताशा के पास फोन आया कि भाभी जी नीरज की तबियत कैसी है?? वह दो दिन से आफिस नहीं आ रहे हैं, अब कैसे है,उनका फोन क्यों स्वीचऑफ बता रहा है। ऐसे में नताशा को चैन नहीं पड़ती है ,उसी समय उसे नीरज की फिक्र होती है। वह भागे -भागे घर पहुंचती है तो उसकी हालत देखकर कहती है ये क्या हुआ आपको ?आपने तो किसी को फोन करके बताया भी नहीं , अगर आफिस से फोन नहीं आता तो हमें पता ही नहीं चलता। 

तब वो माफी मांगते हुए कहता – नताशा मुझे माफ कर दो किस मुँह से तुम्हें ये बताता,आज मुझे खुद से एहसास हो रहा था कि मैं कितनी बड़ी गलती कर रहा था। और मेरी अति ने मुझे इस हालत तक पहुंचाया। मुझे माफ कर दो ,जो मैं तुम्हारी बात समझ ना सका। अकेला रहकर मैंं खुद को  स्वतंत्र समझ बैठा। अब कभी नहीं पीऊंगा। 

मैं भी समझ चुका हूँ मेरी खुशी तुम्हारे साथ है। देखो मैंने ही ये बाटल कल तोड़ डाली। और फूटी बाटल देखकर उसे एहसास हुआ कि नीरज अब सुधर जाएगें। और फिर सास ससुर नताशा के साथ नीरज को भी घर वापस ले आते है । इस तरह उनके सुखी संसार में खुशियों की बारिश होने के कारण उनका खुशियों भरा रिश्ता महकने लगता है। 

स्वरचित मौलिक रचना

अमिता कुचया ✍️

कठपुतली

Leave a Comment

error: Content is protected !!