एक और मौका – सुदर्शन सचदेवा

रात के साढ़े ग्यारह बज रहे थे। शहर की सड़कें लगभग सो चुकी थीं, लेकिन रेलवे स्टेशन के प्लेटफ़ॉर्म नंबर 3 पर बैठी भावना की आँखें अभी भी जाग रही थीं। उसके सूटकेस पर धूल जमी थी और चेहरे पर थकान… पर असली थकान उसके दिल में थी—हार मान लेने की।

आज उसकी ज़िंदगी जैसे एक झटके में बिखर गई थी। कॉलेज की छात्रवृत्ति किसी और को मिल गई थी, जबकि उसे उसकी सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी। घर की हालत खराब थी, पिता बीमार… और अब ये सपना भी टूट गया।

वह बुदबुदाई,

“शायद मेरे लिए नहीं था… शायद मुझे अब छोड़ देना चाहिए।”

इसी बीच एक ठंडी हवा का झोंका आया, और उसके पास बैठा एक अधेड़ उम्र का आदमी असहज होकर खाँसने लगा। उसके कपड़े पुराने थे, हाथ में टूटा हुआ म्यूज़िक बॉक्स और पैरों के पास एक थैला।

भावना ने उसकी ओर देखा तो आदमी मुस्कुराया,

“बिटिया, दुनिया थक जाए… तो क्या आप भी थक जाएँगी?”

भावना ने हल्के खीझ के साथ कहा,

“आप नहीं समझेंगे। जब सपने टूटते हैं, तब आदमी टूट जाता है।”

वह आदमी धीरे से बोला,

“और जब आदमी टूटता नहीं… तभी सपने फिर से बनते हैं।”

भावना चिढ़ते हुए बोली,

“मैंने कोशिश की थी। बहुत कोशिश की थी। पर ये दुनिया मौके सिर्फ उन्हीं को देती है जो पहले से मजबूत होते हैं।”

वह आदमी थोड़ी देर चुप रहा। फिर उसने अपना टूटा हुआ म्यूज़िक बॉक्स खोला। उसमें से एक अधूरी धुन निकली—कटी-फटी सी, पर अजीब तरह से दिल को छू लेने वाली।

वह बोला,

“जानती हो? मैं पहले एक बड़ा संगीतकार था। शहर के बड़े-बड़े मंचों पर बजाता था। लोग खड़े होकर तालियाँ बजाते थे। लेकिन एक दुर्घटना ने मेरा दायाँ हाथ हमेशा के लिए कमज़ोर कर दिया। मेरे साथी, मेरा परिवार, मेरा करियर—सबने मुझे छोड़ दिया।”

भावना चौंक उठी,

“फिर? आपने क्या किया?”

आदमी ने आसमान की ओर देखते हुए कहा,

“पहले तो हार मान ली। स्टेशन पर आ बैठा। सोचा, अब खत्म। लेकिन उसी रात एक बच्चा मेरे पास आकर बोला—

‘अंकल, ये धुन बहुत प्यारी है। क्या आप मुझे भी बजाना सिखाएँगे?’

मैं हँस पड़ा। मैंने कहा—

‘मेरे पास तो खुद अपना हाथ नहीं।’

पर उस बच्चे ने कहा—

‘जो टूटा है, वही सबसे पहले नया बनता है।’

उसकी बात सुनकर मैं खड़ा हुआ… और दोबारा सीखना शुरू किया। एक हाथ से। धीरे-धीरे। छोटा-छोटा। लेकिन रोज।

आज मैं फिर संगीत सिखाता हूँ—उन बच्चों को जिन्हें कोई मौका नहीं देता। जानते हो क्यों?

क्योंकि मुझे पता है…

मौका दुनिया नहीं देती। मौका हम खुद बनाते हैं।”

भावना की आँखें भर आईं।

“पर अगर रास्ता ही बंद हो जाए तो?”

आदमी मुस्कुराया।

“बंद रास्ते सिर्फ यह बताते हैं कि अब मोड़ लेना है। चलते रहो… बस यही। जब तुम थक जाओ, तब याद रखना—”

वह अपनी उंगली उठाकर बोला,

“हार मानना आसान है… पर जीतना हमेशा उसी का होता है, जो एक और कोशिश करता है।

और बिटिया, एक कोशिश और करने का नाम ही तो एक और मौका है।”

भावना के अंदर कुछ जागा—जैसे बुझी चिंगारी में फिर से आग की लपट फूट पड़ी हो।

तभी स्टेशन पर घोषणा हुई—

“प्लेटफ़ॉर्म नंबर 3 पर खड़ी ट्रेन थोड़ी देर में रवाना होगी।”

भावना उठी।

“मुझे जाना होगा… घर नहीं। एक और आवेदन करना है। दूसरी स्कॉलरशिप, दूसरा रास्ता… शायद एक और मौका।”

आदमी की आँखों में चमक आ गई।

“यही तो! रास्ते बंद नहीं होते, हम रुक जाते हैं। चलो, चलकर नए रास्ते ढूँढो।”

भावना जल्दी से अपना बैग उठाने लगी, तभी उसे याद आया—

“आपका नाम?”

आदमी ने म्यूज़िक बॉक्स बंद करते हुए कहा,

“नाम की क्या ज़रूरत? मैं बस वो आवाज़ हूँ… जो लोगों को याद दिलाती है कि कोशिशें कभी खत्म नहीं होतीं।”

भावना ट्रेन में चढ़ गई। खिड़की से बाहर झाँकते हुए उसकी आँखें चमक रही थीं। ट्रेन चल पड़ी।

वह सोच रही थी—

“हो सकता है दुनिया मुझे फिर गिरा दे… पर अब मैं हर बार उठने के लिए तैयार हूँ।”

उसके दिल में पहली बार, लंबे समय बाद… उम्मीद की गर्माहट थी।

ट्रेन की खिड़की पर ठंडी हवा टकराई।

और उसके मन में एक ही वाक्य गूंजता रहा—

“अगर सपना टूट जाए… तो उसे नए रंग में फिर से बनाओ। हर किसी को मिलती है ज़िंदगी में… एक और मौका।”

सुदर्शन सचदेवा

error: Content is protected !!