बारिश की बूंदे सड़क को भिगो रही थी। अस्पताल की दीवारों पर खामोशी पसरी थी।
शाम से रोते रोते निकिता की आंखों में आंसू सुख चुके थे। वो आई सी यू के बाहर बैठी खामोश सी अपने ही विचारों में गुम थी। अंदर उसका पति अनिकेत जीवन और मौत के बीच जुझ रहा था।
उसकी और अनिकेत की लव मैरिज थी। उनकी शादी को 2 साल हुए थे। दोनों के बीच छोटी मोटी तकरार तो होती रहती थी, लेकिन आज बहस ने कड़वाहट का रूप ले लिया था जिसके नतीजतन अनिकेत का ये हाल हुआ था।
आज सुबह की ही घटना है। बात कुछ ज्यादा बड़ी नहीं थी। लेकिन आपस के विवाद ने उसे बड़ा रूप दे दिया था।
अनिकेत ने ऑफिस के लिए निकलते समय निकिता से कहा,
“दो दिन बाद गांव से मां बाऊजी आने वाले है। कुछ दिन रुकेंगे, तुम उनका ख्याल रख लेना क्योंकि मुझे उन दिनों के बीच में कुछ दिन ऑफिस के काम से बाहर जाना है!”
निकिता ने तुनक कर जवाब दिया,
“तुम्हारे मां बाउजी है तो तुम ही संभालो, मेरे सर पर क्यों मढ़ रहे हो?”
दरअसल निकिता के सास ससुर गांव में रहते है और उनका तौर तरीका गांव वालों जैसा है जो निकिता को पसंद नहीं है इसलिए उनके आने का सुन कर ही निकिता का पारा गरम हो गया।
बस इतनी छोटी सी बात पर वाद विवाद बढ़ता गया और दोनों ने एक दूसरे को कुछ ऐसे वाक्य भी कह दिए जो दिल को चोट पहुंचा गए।
निकिता नाराज हो कर उसी शहर में अपनी सहेली के यहां चली गई। अनिकेत गुस्से में घर से निकल गया।
शाम को निकिता को अनिकेत के एक दोस्त ने फोन पर अनिकेत के एक्सीडेंट की खबर दी।
निकिता भागती हुई रोती बिलखती अस्पताल पहुंची। जहां डॉक्टर ने अनिकेत के लिए 24 घंटे खतरनाक बताए थे।
ये सुन कर निकिता का सारा गुस्सा, शिकवा, शिकायतें अनिकेत को खो देने के डर में घुल गए। कई बुरे बुरे ख्याल उसके दिल में आने लगे।
वो आई सी यू के बाहर बैठी सुनी निगाहों से आई सी यू के दरवाजे को ताक रही थी। वो खुद को इस हादसे की जिम्मेदार समझ रही थी। हाथ जोड़े ईश्वर से अनिकेत की सलामती की प्रार्थना कर रही थी ताकि वो अनिकेत से अपनी गलतियों की माफ़ी मांग सके और उसके साथ अपने जीवन की राह पर उसका हाथ पकड़ कर चल सके। अनिकेत के बिना जीने की तो वो कल्पना ही नहीं कर सकती थी।
अनिकेत को खो देने के भय ने उसे अंदर से हिला दिया था।
तभी उसे अपने सिर पर किसी ममतामई स्पर्श का एहसास हुआ। उसने नजरें उठा कर देखा तो उसके सास ससुर खड़े थे, जिनका हाथ उसके सिर पर था।
“बेटी, चिंता मत करो, ईश्वर सब कुछ ठीक करेगा!” उसकी सास ने अपनत्व से उसके हाथ पर हाथ रख कर कहा।
वो उनके गले लग कर रो दी। इतनी देर से दिल में दबा कर रखा हुआ दर्द आंखों के रास्ते बाहर आ गया। और उस खारे पानी में उसके दिल का सारा मैल भी धुल गया।
कुछ देर बाद डाक्टर ने अनिकेत के खतरे से बाहर होने की सूचना दी और निकिता को मिलने की इजाजत दे दी।
निकिता धड़कते दिल के साथ अंदर गई। उसने अंदर जा कर अनिकेत को नलियों और मशीनों से घिरा देखा तो उसका दिल रो पड़ा।
उसने अनिकेत के हाथ पर हल्के से अपना हाथ रख दिया। हाथों की गर्मी पा कर अनिकेत ने धीमे से अपनी आँखें खोल दी।
निकिता ने डबडबाई आंखों से अनिकेत को देखा और रूंधे हुए स्वर में बोली,
“अनिकेत ईश्वर ने मुझे तुम्हारे साथ जीने का एक और मौका दिया है और अब मैं इस मौके को गंवाना नहीं चाहती। तुम्हे खो देने की कल्पना ने मेरी सांसे रोक दी थी। क्या तुम मुझे अपने साथ जिंदगी बिताने का एक और मौका दोगे?” वो फूट फूट कर रो पड़ी।
अनिकेत हल्के से मुस्कराया और अपनी हथेली को हल्के से दबा दिया। निकिता ने उसकी हथेली को अपनी आंखें से लगा लिया।
कुछ दिनों बाद अनिकेत डिस्चार्ज हो कर घर आ गया लेकिन डॉक्टर ने उसे कुछ दिन घर पर ही आराम करने के निर्देश दिए थे।
“मां बाउजी आप सुबह की सैर करके आइए,,तब तक मैं आपका चाय नाश्ता बना कर रखती हूं। मां का दलिया और पापा का पोहा!” निकिता आंखों में प्यार और सम्मान लिए अपने सास ससुर से कह रही थी। सास ससुर भी अपना इतना ख्याल रखने वाली बहू को पा कर निहाल हुए जा रहे थे।
उसने कमरे में लेटे अनिकेत को अपने हाथों से नाश्ता कराया तो अनिकेत ने उसके हाथों को प्यार से चूम लिया। जिस पर वो खिलखिला कर हंस पड़ी। उसकी आंखों में खुशियों की चमक आ गई थी।
आज उस घर के आंगन में हंसी और खुशियों के रंग बिखरे हुए थे क्योंकि जिंदगी ने उन्हें साथ जीने का एक और मौका दिया था।
रेखा जैन
#एक और मौका