एक अदद घर – ऋतु गुप्ता :  Moral Stories in Hindi

मिडिल क्लास के सपने क्या होते हैं? कैसे होते हैं? और कब पूरे होते हैं? इन सपनों को पूरा करने में कितना संघर्ष होता होगा? कितना मायने रखता है…..

हर वह पल जो किसी जरूरत को जुटाने के लिए खर्च होता है। छोटे छोटे सपने पूरा करने के लिए एक मध्यम वर्ग के परिवार को कितनी तपस्या करनी पड़ती है यह एक मध्यम वर्ग का व्यक्ति ही जान सकता है। ऐसी ही विचारधारा पर यह मेरी न‌ई कहानी है जिसका शीर्षक है “एक अदद घर” 

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आलोक जी अपनी मां शांति देवी और पत्नी पत्नी लक्ष्मी और दो बच्चों के साथ अपनी जिंदगी अपनी सीमित आय में किसी तरह बस गुजार रहे थे। आए दिन घर में एक नए तरह के खर्चे लगे रहते, कभी कोई बीमार पड़ जाता ,कभी स्कूल की फीस

कभी मां का चश्मा,दवाई, कभी किसी के कपड़े, कभी ब्याह शादी का लेना देना,कभी किसी को देने लेने का खर्च, मिडिल क्लास फैमिली का होना जैसे एक अभिशाप ही लगता।। क्योंकि एक छोटे परिवार वालों को तो समाज ये कह देता है कि इसके पास तो इतने ही साधन है

तो इतना ही कर पाएगा और बड़े परिवार अपना खर्चा बड़ी मौज मस्ती से निकाल सकते हैं। एक मध्यम वर्गीय परिवार ही है जिसे उच्च वर्ग और निम्न वर्ग के बीच पिसना पड़ता है यदि खर्च करें तो सुने और ना करें तो सुने। 

आलोक जी भी ना जाने कितने दिनों से अपनी आंखों में एक अपना घर होने का सपना पाले हुए बैठे थे, वह अब बहुत परेशान हो चुके थे हर 11

महीने में जब घर बदलना पड़ता तो अपना घर ना होने की बात उनके मन को बहुत चुभती। अब बच्चे भी बड़े हो चले हैं। अब उन्हें फिर दो महीने बाद घर बदलना है तो वो अपने परिवार के साथ किराए का घर देखने के लिए दूसरी सोसाइटी में ग‌ए।

उस घर को देखकर उनका 12 वर्षीय बेटा प्रखर बोला… क्या पापा यह तो उस घर से भी छोटा है जिसमें हम रह रहे हैं। हम पांच लोग इस छोटे से घर में कैसे रह सकेंगे ।  इस पर आलोक जी ने अपने बेटे को जवाब दिया बेटा गुजारा तो हम कर ही लेंगे इसका किराया

भी उस घर से पूरे ₹1000 काम है बस जरा सा छोटा है हम मिलजुल कर सब एडजस्ट कर लेंगे तो वह ₹1000 की बचत जो होगी उसे हम अपने बचत खाते में जोड़ पाएंगे और हो सकता है ईश्वर करें हम अगले साल तक अपना घर खरीद पाए। 

फिर भी उनका बेटा बोल पापा इसमें तो दो ही कमरे हैं दादी, मैं और प्रगति इस छोटे से कमरे में कैसे रहेंगे।  इस पर आलोक जी की पत्नी बोली तुम चिंता ना करो बेटा इस छोटे वाले कमरे में मैं और पापा रह लेंगे और तुम तीनों बड़े कमरे में रह लेना, और तुम्हें पढ़ना ही तो है तुम्हें जहां मन हो वहां पढ़

सकते हो। इस पर प्रखर बोला क्या कह रही हो मां,  ये कैसी बातें करती हो… दादी के साथ उन्हें खर्राटे भी आते हैं उन्हें खासी भी उठती है तो मैं अपनी पढ़ाई पर बिल्कुल भी कंसंट्रेट नहीं कर पाता हूं। अब तो आपको कुछ करना ही होगा। 

उसकी बात भी सही थी।इस पर  आलोक जी और उनकी पत्नी लक्ष्मी ने कहा कुछ ना कुछ तो हम  कर ही लेंगे। इस पर उनकी बेटी बोली भैया आप अपनी जब तक पढ़ाई करोगे मैं और दादी बाहर हाँल में रह लेंगे तो आप अपनी पढ़ाई अच्छे से कर पाओगे। 

खैर  घर नहीं मिलना था नहीं मिला , और सभी ले देकर इसी छोटे से घर में सेट हो गए। बस आलोक जी के साथ-साथ इस घर में हर सदस्य को अब एक ही सपना दिखता था, एक अदद घर…. जो बस अपना हो ।

पर कभी-कभी जिंदगी भी ना ठीक उसी समय हमसे विश्वासघात करती है जब हमें उसकी सबसे ज्यादा जरूरत होती है। आलोक जी के साथ-साथ घर का हर सदस्य छोटी-छोटी बचत करता, पैसे बचाता। लक्ष्मी जी अपनी सास की सेवा और घर के सारे काम खुद करती क्योंकि हेल्पर रखने पर ₹5000 महीने का एक्स्ट्रा खर्च बढ़ जाता था ।

आलोक जी ना जाने कितनी दूर-दूर बिना रिक्शे के पैदल जाते। कपड़े बिल्कुल ना के बराबर बनवाते और दोनों बच्चे भी स्कूल बस से ना जाकर रिक्शा से स्कूल जाते जिसमें उनका काफी समय लग जाता ।

पर इन सब में  कम से कम 10000से 15000 तक की बचत तो आलोक जी का पूरा परिवार कर ही लेता। और उस बचत को वह घर खरीदने की रकम में डाल देते।

  अगले 6 महीने तक घर की रकम लगभग जुड़ भी गई थी । आलोक जी ने एक छोटा सा फ्लैट बुक करने का मन भी बनाया, लोकेशन भी सही थी, बस कुछ और पैसों का इंतजाम करना बाकी था ।

तब उनकी पत्नी ने कहा आप फिक्र ना करो जी घर हमारी प्राथमिक जरूरत है मेरे गहने भी कुछ ज्यादा काम नहीं आते हैं चार से साढ़े चार लाख तो उनसे भी हमें मिल ही जाएंगे , वैसे भी आज के टाइम में गहने लॉकर में ही तो पड़े रहते हैं। आलोक जी ने कहा …नहीं नहीं लक्ष्मी मैं तुम्हारे गहने नहीं ले सकता ।

पर लक्ष्मी जी ने जोर देकर कहा कि पहले हमें घर जरूरी है गहने तो हम फिर बनवा लेंगे। 

सब कुछ जोड़-तोड़ कर घर की रजिस्ट्री करने का मन बना लिया पर अचानक अम्मा की तबीयत नासाज़ हुई और वह स्वर्ग सिधार गईं। मिडिल क्लास फैमिली में एक व्यक्ति का जाने में भी

और उसके अंतिम क्रियाकर्म में भी इतना ज्यादा खर्च हो जाता है यह सोचकर कि लोग क्या कहेंगे,  यह लोग क्या कहेंगे जैसे सवाल मध्यम वर्ग के परिवार के लोगों को चैन से जीने नहीं देता है।

आलोक जी ने अब फिर एक बार रजिस्ट्री ना करके अम्मा की  तेरहवीं  और रस्म पगड़ी आदि पर थोड़ा ठीक से खर्च करने का निर्णय लिया क्योंकि यह कुछ रस्में  भी समाज के लिए मिडिल क्लास फैमिली के स्टैंडर्ड का आईना हुआ करती है। 

अब एक बार फिर से खर्च हुए तीन चार लाख रुपये जुटाने की  जद्दोजहद में पूरा परिवार लग गया। लक्ष्मी जी अब घर से नमकीन सेव बनाकर छोटा सा व्यापार करने लगीं, बच्चे भी समय मिलने पर उनकी पूरी हेल्प करते।

बेटा आप 10वीं पास करके ग्यारहवीं में आ गया था,  तो आलोक जी ने फैसला लिया कि घर तो फिर हम बाद में भी ले लेंगे इस समय बेटे का एडमिशन अच्छे कॉलेज में होना जरूरी है। 

उन्होंने लक्ष्मी से कहा घर का क्या है लक्ष्मी,  हम रह तो घर में ही रहे हैं,  किराए का हो या  अपना क्या ही फर्क पड़ता है,  और फिर अब लिया या 2 साल बाद, बात तो एक ही है , इस समय हमारे बेटे का अच्छा भविष्य होना बहुत जरूरी है।

उनके बेटे के नही चहाने पर भी उन्होंने बेटे को साइंस दिला दी क्योंकि आजकल के हिसाब से आईटी सेक्टर में जाँब अच्छे हैं प्लेसमेंट अच्छे हैं और पैसा अच्छा है। 

एक बार फिर से घर की जरूरत, ज्यादा जरूरत वाली चीजों में कहीं दब गई। जिंदगी अपनी रफ्तार से चलती रही, किराए के घर बदलते रहे पर अपना घर ना हुआ। उनकी बेटी भी बीकाँम  करके अपने पैरों पर खड़ी हो गई ।

और काफी उठा पटक के बाद बेटा भी  लाख जतन करने पर भी बीटेक में अच्छे स्कोर ना ला सका,  क्योंकि उसकी पहली च्वाइस बीटेक नहीं थी वह तो कला क्षेत्र में लेक्चरार बनना चाहता था ।

पर मिडिल क्लास फैमिली में  मन कहां देखा जाता है , वह तो ज़रूरतें देखी है। आलोक जी ने उससे कहा था कि आईटी सेक्टर में अच्छे जाँब मिलते हैं, जब तुम्हारी जॉब अच्छी मिलेगी तो परिवार को सहारा होगा। 

पर जब बच्चे का मन का काम ना हो तो उसमें सफलता पाना ज्यादा मुश्किल होता है,  पर फिर भी प्रखर ने अपनी पूरी कोशिश करके बीटेक पास किया अब उसे छोटी-मोटी जॉब मिल भी गई। 

अब चूंकि दोनों बच्चे भी कमाने लग गए थे,  तो फिर से एक बार घर खरीदने का मन बनाया गया,…..पर हाय री किस्मत जब भी घर लेने की बात आती कुछ ना कुछ ऐसा होता कि घर की रजिस्ट्री ही ना हो पाती। आलोक जी को

एक दिन सीने में दर्द उठा और अस्पताल में एडमिट हो गए डॉक्टर ने बताया कि माइनर अटैक है फिक्र की कोई बात नहीं है पर छोटा सा छल्ला दिल में डालना पड़ेगा, छोटी सी सर्जरी है फिर सब कुछ सामान्य हो जाएगा। 

आलोक जी का ऑपरेशन हुआ एक बार फिर घर की बचत का पैसा जरूरत में लग गया। अब आलोक जी इस बात को अपने दिल पर ले गए। अस्पताल से डिस्चार्ज होकर वह घर पर आ गए। अब वह अपनी नौकरी से भी रिटायरमेंट ले चुके थे। एक दिन अपनी पत्नी लक्ष्मी से बोले की लक्ष्मी यह जरूरी नहीं की

 विश्वासघात कोई इंसान ही करें कभी-कभी जिंदगी भी इतने रंग बदलती है कि हम समझ ही नहीं पाते । हम पूरी जिंदगी मेहनत मशक्कत करते रहे पर अपने बच्चों के सिर पर एक छत ना दे सके, एक घर की हमें अदद जरूरत थी पर मैं वो भी अपने बच्चों के लिए नहीं कर सका। 

इस पर उनकी पत्नी लक्ष्मी ने कहा,  आप अपना जी क्यों छोटा करते हो जी, अब बेटा भी कमाने लगा है अब आप फिक्र ना करो। एक दिन हम अपना घर ले ही लेंगे। लेकिन आलोक जी तो सोते जगते सिर्फ घर लेने के बारे में ही सोचते रहते , रिटायर होने के बाद

आदमी का दिमाग वैसे भी अपनी समस्याओं में ही ज्यादा उलझा रहता है।उनके दिल पर इसका बहुत प्रेशर पड़ा और उन्हें एक बार फिर अटैक आया और इस बार किस्मत उनका साथ ना दे सकी और वे  घर खरीदने का सपना देखते देखते ही एक दिन इस दुनिया से विदा हो गए पर “एक अदद घर ” उन्हें नही मिला।

ऋतु गुप्ता 

खुर्जा बुलन्दशहर 

उत्तर प्रदेश 

विश्वासघात

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