Moral Stories in Hindi
अमृता पापा की बहुत लाड़ली थी।पापा उसके नाज -नखरे उठाते रहे जिससे वह जिद्दी हो गई थी। बात-बात पर बगावत कर देती मां से।नकचढ़ी हो गई थी बहुत अमृता।काम काज में बहुत होशियार थी,पर करती अपने मन की थी।कॉलेज में सेकेंड इयर में थी,तभी एक अच्छा रिश्ता आया उसके लिए।
लड़के के पिता कस्टम में थे।उनकी आकस्मिक मृत्यु के कारण बड़े बेटे को नौकरी मिली थी।अमृता के घर का रहने सहन साधारण मध्यमवर्गीय परिवार की तरह था।शादी के बाद जब ससुराल पहुंची,तो वहां आधुनिक विचारधारा की सास,पति और देवर मिले।रसोई में एप्रिन पहने सास को काम करते
देखा।देवरों को अंग्रेजी में घर पर बात करते सुना।पहले पहल तो सामंजस्य करने में मुश्किल आई,पर बाद में उसने अपना लिया था नई जीवनशैली को।मायके में आते ही अब भाई और मां पर धौंस जमाने लगी।एक छोटी बहन थी,जिससे उसे बहुत स्नेह था।शादी के एक साल बाद मां बन गई अमृता।
यहां मायके में भाई की शादी की बात भी चलने लगी।अमृता की सास ने उसके कानों में यह मंत्र घोल दिया कि छोटी बहन को देवरानी बना कर ले आए,तो बर्चस्व बना रहेगा।अमृता की छोटी बहन थी भी गऊ।पापा को तो कोई ऐतराज नहीं था,पर मां जिद पर अड़ी रहीं कि एक ही घर में दो बहनें नहीं जाएंगी।वे खुद अपनी ही दीदी के देवर से ब्याही थीं,इसलिए बड़ी बहन के आधिपत्य का दंश झेला था उन्होंने।
अमृता की शादी को छह साल होने लगे,पर छोटी बहन अर्पिता की कहीं बात भी शुरू नहीं हो पाई शादी की।
इसी बीच अच्छी लड़की की जानकारी मिलने पर मां ने बड़े बेटे का ब्याह भी कर दिया।बहू के आने से मां बहुत संतुष्ट हुईं।एक दिन सभी से बचकर बहू से धीरे से कहा”अब तुम अपनी छोटी ननद की शादी की जिम्मेदारी लें लो बेटा।बहुत रिश्ते आए पर बड़े दामाद जी और तुम्हारे पति कुछ ना कुछ कमी
निकालकर मना कर देतें हैं।बेटा मेरा भोला है,जीजाजी की योजना नहीं समझता,पर मैं जानती हूं।जब अर्पिता की शादी तय नहीं हो पाएगी,हारकर मुझसे उनके भाई के साथ शादी करवाने की सोच रहें हैं।अब तुम आ गई हो,तो मुझे बल मिला है बहू।तुम जरूर शादी तय करवा लोगी।”
बहू तो खुशी से फूलकर कुप्पा हो गई ।सास ने इतनी जल्दी नई आई बहू पर विश्वास किया,यह बहुत बड़ी बात थी।बहू(उमा)ने रिश्ते की मौसी को लगा दिया इस काम पर और संयोग वश लड़का भी मिल गया रेलवे में।दोनों पक्षों की फोन पर बात हुई। सासू मां ने बेटे-बहू को भेजा,लड़के का घर परिवार देखने के लिए।अपनी छोटी ननद से बहुत प्रेम करने लगी थी उमा।उसका बुरा कभी नहीं चाहेगी,यह
बात भाई को भी पता थी।अब तक बड़े बहनोई हमेशा साथ में जाते थे,और अब पत्नी है साथ में।घर परिवार ,लड़के की नौकरी सब कुछ ठीक था।उमा ने सास-ससुर से सलाह मशवरा कर जवाब देने की बात करी,और लड़के वालों के घर से विदा लिया।आते समय पति के चेहरे पर कोई खुशी नहीं थी,शायद मीन-मेख ना निकाल पाने का अफसोस हो।
घर आकर लड़के वालों का पूरा ब्यौरा उमा ने सास-ससुर को बता दिया।लड़के की नौकरी की जगह का पता भी पकड़ा दिया ससुर को ,और बोली”आपकी बेटी है।एक बार जाकर अच्छे से खोज-खबर ले लीजिए।साथ में बेटे को लेकर जाइये।जल्दी से सब देख सुन लीजिए।अगले महीने तक जवाब देना होगा उन्हें।
ससुर ने हर बार की तरह बड़े दामाद को ही यह जिम्मेदारी सौंपी।अब इसके बाद उमा ननदोई जी से कुछ कह नहीं सकती थी।पंद्रह दिनों के बाद,दामाद जी आए,और लगे गिनाने बुराईयां होने वाले दामाद की। नागपुर जाकर लड़के के ऑफिस में गए,वहां लोगों से पूछताछ की,किसी ने अच्छा नहीं बताया लड़के के बारे में।
उमा को खटका लगा,तो सास की बहन से कहा और सास को ही भेज दिया।ससुर का एक पैर कृत्रिम था, उम्र बढ़ने के कारण कहीं आने-जाने में परेशानी होती थी।पति से कहती ,तो वो पहले बहनोई को ही बुलाते।इसलिए सोच विचार कर दोनों बहनों को इस मिशन पर भेजा उमा ने।मौसी सास ने अपने बेटे को लिया और अच्छे से खोज-खबर ली लड़के की।
निश्चिंत होकर सास ने कहा उमा से”अब पूरी शादी तुम्हें ही संभालना है।जो सही लगे,करो बेटा।लड़के वालों को बुलवा कर तारीख पक्की कर लेतें हैं।”तारीख पक्की वाले दिन बड़ी बेटी दामाद को भी निमंत्रण दिया गया,पर दोनों नहीं आए।
अर्पिता के आभूषणों में कान और गले का अमृता देगी,ऐसा बोल कर रखा था उसने।शादी को एक सप्ताह बचा ,तब तक अमृता,और उसके पति नहीं पहुंच पाए,तो उमा का माथा ठनका।अपनी मां के गहनों में से कुछ गिरवी रखकर अर्पिता के गहनों का इंतजाम हो गया।बाकी की तैयारियां भी भाई ने कर ही लीं ,उमा के नेतृत्व में।यहां ससुर हलाकान और परेशान कि बड़ी बेटी आए बिना शादी कैसे होगी?
शादी की रात ही बेटी और दामाद पहुंचे।बहानों की लिस्ट बहुत बड़ी थी।अपने वादे को पूरा ना कर पाने का पश्चाताप भी दिखा रही थी,अमृता।मां ने केवल इतना ही कहा”तुम लोग आ गए हो,बस और क्या चाहिए?अगर अर्पिता के भाग्य में विवाह लिखा है ,तो होगा, नहीं तो ईश्वर की मर्जी।”
दामाद जी ने तुरंत याद दिलाया”मां,मैंने और अमृता ने तो सोचकर ही रखा है,यदि किसी ने हमारी अर्पिता की बेइज्जती की,तो वहीं तोड़ देंगे रिश्ता।जाहिल गंवार दिख भी तो रहें हैं लड़के वाले।
अर्पिता शादी की वेदी पर बैठ चुकी थी।कम ही सही पर पर्याप्त गहने थे तन पर।शादी निर्विघ्न संपन्न हुई।सुबह विदाई के समय अमृता बहन से लिपटकर रोने लगी।उस रोने में दो भाव थे,जो होशियार उमा से छिपा नहीं पाई वह।उसके ससुराल पक्ष की योजना क्रियान्वित नहीं हो पाई।लड़के वालों ने
कहीं कोई बदतमीजी नहीं की। अर्पिता के ससुराल से भी एक अच्छा सा सोने का सैट आया था।गहनों से लदी आ रही थी अर्पिता सबसे मिलने।मां,पापा,दादा(बड़े भाई)भाभी सभी के पैर छूकर आशीर्वाद लिया उसने।रो रहें थे सभी,पर सगी बहन अमृता को अब भी यकीन नहीं हो पा रहा था कि शादी हो कैसे गई।उसने तो मदद के किए हुए सारे वादे तोड़ दिए थे।
अर्पिता को भी अब समझ आ रहा था। अर्पिता के पति को देखते ही नाक मुंह सिकोड़कर बोली अमृता”हमारी छोटी बहन का ख्याल रखना।रानी की तरह पली है वह।”सुनकर नए दामाद को शायद अच्छा ना लगा हो।अब अर्पिता बड़ी बहन और जीजा के पैरों में झुकी जब,दोनों ने उठा लिया।अमृता
उसे गले से लगाकर रोने लगी।ये आंसू हार के थे या क्रोध के पता नहीं।अमृता की एक आंख रो रही थी,और एक हंस रही थी।रो रही थी अपने मंसूबों को ढहते देख,हंसी शायद भाभी को नीचा दिखाने की कोशिश कर रही थी।गले मिलती हुई बड़ी बहन तक दिखावे का रोना रो सकती है,यह पहला अनुभव था।
शुभ्रा बैनर्जी
मुहावरा आधारित लघुकथा