एक आँख न भाना – मीरा सजवान ‘मानवी’

राधा और सुषमा एक ही मोहल्ले में रहती थीं। दोनों पहले बहुत अच्छी सहेलियाँ थीं—साथ बाजार जातीं, त्यौहार मनातीं, और हर बात साझा करतीं। पर वक्त के साथ रिश्तों में एक छोटी सी दरार आ गई।

हुआ यूँ कि एक दिन राधा की बेटी ने स्कूल प्रतियोगिता में पहला स्थान पा लिया तो सुषमा के मन में ईर्ष्या- ने जन्म ले लिया।सबने उसको बधाई दी, पर सुषमा ने केवल बाहरी मन से शुभकामनाएँ दी, मगर उसके दिल में कुछ चुभ सा गया।

धीरे-धीरे वह राधा की किसी खुशी पर खुश न रह पाई। राधा नई साड़ी पहन ले तो सुषमा कहती, “ज्यादा दिखावा मत कर।”

राधा घर की सजावट करती तो बोलती, “कहाँ से इतना पैसा आता है?”

अब तो राधा का सुख, सुषमा को “एक आँख न भाता” था।

राधा समझ नहीं पाई कि उसकी खुशी सुषमा को क्यों चुभ रही है। वह कई बार पास जाने की कोशिश करती, बात करने की कोशिश करती, पर सुषमा की ईर्ष्या-जैसे दोनों सखियों के बीच दीवार बन गई थी।

एक दिन राधा बीमार पड़ गई।उसके पति भी उस समय विदेश में थे तो साथ में मदद के लिए कोई न था।सुषमा ने देखा कि राधा अस्पताल में अकेली पड़ गई है।राधा के बच्चों की देखभाल करने वाला भी कोई नहीं है तो उसका मन द्रवित हो उठा,उसे खुद पर ग्लानि हो रही थी।उसे याद आया कि राधा कैसे उसके सुख-दुःख में हमेशा निस्वार्थ भाव से उसको मदद करती थी।उस क्षण उसके मन की सारी ईर्ष्या पिघल गई।

वह दौड़कर आई, राधा का हाथ थाम लिया—“मुझे माफ़ कर दे, राधा। तेरी खुशी मुझसे देखी न गई थी।”

राधा की आँखों में आँसू आ गए, “सुषमा, तू तो मेरी अपनी थी… पर तूने वैमनस्य की दीवार क्यों बना ली थी?”

दोनों गले लगकर रो पड़ीं। उस दिन के बाद दोनों के बीच की कड़वाहट मिट गई।

राधा का सुख अब सुषमा को भाने लगा, और सुषमा का प्रेम फिर राधा को सँभालने लगा।

मीरा सजवान ‘मानवी’

स्वरचित मौलिक 

फरीदाबाद, हरियाणा

#एक आँख न भाना

error: Content is protected !!