अविनाश ने अपने पापा जगन्नाथ जी से कहा-” पापा, परसों तो आप रिटायर हो रहे हैं, फिर तो आप फ्री रहेंगे हर समय, आपके तो मजे हैं। घर पर सारा दिन आराम करेंगे, गरमा गरम खाना खाएंगे और चैन की बंसी बजाएंगे। ”
पापा-” क्यों भई अविनाश, रिटायर होने का मतलब यह तो नहीं होता कि सारा दिन आराम करो, कुछ काम मत करो, अरे बेटा यह तो जिंदगी की दूसरी शुरुआत होती है मतलब कि दूसरी पारी। क्या तुमने कभी अपनी मां को खाली बैठे देखा है। दूसरी पारी में भी वह कितनी व्यस्त रहती है। पहले तुम लोगों को संभालती थी, अब तुम्हारे बच्चों को देख रही है। ”
सामने खड़ी अविनाश की माँ मालती और अविनाश की पत्नी दिव्या दोनों मुस्कुरा रही थी। तब दिव्या ने भी अपने ससुर जी से कहा, ” आपको रिटायरमेंट की बहुत-बहुत बधाई पापा जी। ”
पापा जी ने कहा-” थैंक यू बेटा ”
पापा जी जल्दी से नाश्ता करके निकल गए। ऑफिस में रिटायरमेंट की पार्टी में जगन्नाथ जी परिवार सहित गए। सबका बहुत आदर सत्कार किया गया और जगन्नाथ जी की सभी ने बहुत प्रशंसा की और उन्हें ढेर सारे उपहार दिए।
रिटायरमेंट के 2 दिन बाद जगन्नाथ जी सुबह-सुबह जल्दी-जल्दी नाश्ता कर रहे थे। उनकी पत्नी ने पूछा-” इतनी जल्दी-जल्दी नाश्ता क्यों कर रहे हैं, कहीं जाना है क्या? ”
जगन्नाथ जी ने कहा-” हां तुरंत निकालना है आकर पूरी बात बताता हूं? ”
वे चले गए। दोपहर के खाने के समय वह आए। अपनी पत्नी मालती से कहने लगे, 15 दिन बाद हम लोग गुजरात चल रहे हैं। तैयारी कर लेना। ”
मालती ने कहा-” ऐसे कैसे अचानक आपने प्रोग्राम बना लिया, बहू बेटा की छुट्टी के बारे में तो सोचो, उन्हें पता नहीं छुट्टी मिलेगी या नहीं। ”
जगन्नाथ जी-” मालती, हम दोनों जा रहे हैं वे लोग नहीं। ”
मालती-” सिर्फ हम दोनों? ”
जगन्नाथ जी -” हां भई, सिर्फ हम दोनों, पूरी जिंदगी हमने जिम्मेदारियां निभाने के अलावा किया ही क्या है? अब हम लोगों की बारी है,
अलग-अलग शहरों में घूमने की, वहां के मंदिरों के दर्शन करेंगे, जिंदगी को खूब इंजॉय करेंगे, मैंने एक ग्रुप ज्वाइन कर लिया है, वही थोड़े थोड़े दिनों में कोई ना कोई घूमने का प्रोग्राम बनाते रहते हैं,हम लोग उन सब के साथ चलेंगे। ”
मालती -” लेकिन पीछे से बच्चों को कौन देखेगा? ”
जगन्नाथ जी-” देखो,तुम बहुत जिम्मेदारियां निभा चुकी हो, अब बच्चों को उनके हाल पर छोड़ दो,उन्हें खुद जिम्मेदार बनने दो, शुरू शुरू में उनको दिक्कत आएगी, फिर वह अभ्यस्त हो जाएंगे।”
शाम को जगन्नाथ जी ने बहू बेटे को अपना प्रोग्राम बता दिया। उन्होंने कहा आप चिंता मत करो हम सब संभाल लेंगे।
जगन्नाथ जी और मालती 15 दिन बाद घूमने चले गए। वापस आने पर दोनों बहुत खुश थे। अब हर छह महीने मे कहीं ना कहीं घूमने का कार्यक्रम बनने लगा। अब बहू बेटे को यह बात खलने लगी थी।
इस बार दोनों जब घूम कर वापस आए,तो बेटे ने उनसे कहा-” पापा जी एक बात कहूं, बुरा मत मानिएगा, आप लोग घूमने में बहुत पैसा बर्बाद कर रहे हैं, पैसा अपने पास रखेंगे तो बुढ़ापे में काम आएगा। ”
जगन्नाथ जी ने कहा-” बेटा देखो ऐसा है कि मैं पैसा जोड़ कर रखा है, कितना खर्च करना है और कहां पर करना है, बुढ़ापे के लिए मेरे पास पैसा है या नहीं, यह सब कुछ मुझे पता है, तुम लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अगर मैं मर भी गया तो तुम्हारी मां, तुम्हारे ऊपर बोझ नहीं बनेगी, मैं उसके लिए सारा इंतजाम करके जाऊंगा।
तुम लोग अपने बुढ़ापे के लिए बचत करो। न जाने हम लोगों की अब कितनी उम्र बची है, पूरी जिंदगी हमने जिम्मेदारियां पूरी करने में बिता दी, तो क्या अब हमारा अपने पैसों पर कोई हक नहीं है। क्या हमारा दिल नहीं होता घूमने का या फिर मनपसंद खाना खाने का।
रिटायरमेंट का मतलब यह नहीं होता कि बूढ़े होकर घर पर पड़े रहो, या फिर आगे की जिम्मेदारियां उठाकर उन्हें पूरा करते रहो। रिटायरमेंट के बाद ही इंसान अपनी अधूरी इच्छाओं को पूरा कर सकता है। यह हमारी जिंदगी की दूसरी पारी है और हम इस खुशी-खुशी जिएंगे। ”
बहू बेटा को बात सही लग रही थी इसीलिए उन्होंने आगे से कभी भी उन्हें टोका नहीं और अपनी जिम्मेदारियां निभाने में लग गए। आखिरकार उन्हें भी तो एक दिन रिटायर होना था और अपनी अधूरी इच्छाएं पूरी करनी थी।
अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली
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