दूसरा मौका – खुशी

रागिनी और सुबोध दोनो कॉलेज में एक साथ पढ़ते थे।जिधर रागिनी अपने माता पिता की इकलौती संतान थी वहीं सुबोध तीन भाई माता पिता चाचा चाची ऐसा परिवार था।फाइनेंशियली तो दोनों ही सॉलिड थे।पर जहां रागिनी अपने बाप के कारोबार की अकेली वारिस थी पर सुबोध का खानदानी बिज़नेस था

जिसमें सब भागीदार थे।सुबोध के बड़े भाई विजय की शादी थी जिसमें रागिनी भी आई थी।वहां सुबोध ने रागिनी को अपने परिवार से मिलवाया।सबको रागिनी पसंद आई सिर्फ सास शारदा और नई बहु सलोनी को क्योंकि सलोनी शारदा की दूर के रिश्तेदार की बेटी थी और वो चाहती थी

कि सुबोध की शादी भी उन्हीं की पसंद की लड़की से हो। परंतु सुबोध अपनी जिद पर अड़ा रहा और उन्हें सुबोध की शादी रागिनी से करनी पड़ी।रागिनी नाजों में पली बढ़ी थी जिसके घर हर काम के लिए नौकर चाकर थे। जिसने कभी पानी का गिलास भी खुद उठकर नहीं पिया था।

वह एक ऐसे घर में आ रही थी जहां सब काम खुद करने पड़ते थे पहले दो दिन तो सास और भाभी ने बिठा कर खिलाया फिर उसके बाद शारदा बोली मेरे से तो अब घर के काम होते नहीं तुम दोनों काम बाट लो।रागिनी बोली मुझे तो घर का काम आता नहीं है तो  मै कैसे करूंगी।

सास बोली लो फूहड़ हमारे माथे मद दी जिसे रसोई का काम नहीं आता चलो बहु खाने का तुम देख लेना बाकी काम इससे करवाना अगले दिन सलोनी बोली एक काम करो खाना तो तुम बनाना जानती नहीं हो ये घर के 5 washroom साफ कर दो नहाने से पहले रागिनी बोली मै सलोनी बोली हा माजी ने कहा था

तुम्हे काम देने के लिए ।रागिनी ने सारे वाशरूम क्लीन किए तभी वहां पर सुबोध आया बोला ये क्या कर रही हो ये तुम्हारा काम थोड़ी है।उसने शारदा से पूछा मां ये क्या काम करवा रही है आप रागिनी से।शारदा बोली रसोई का काम ये नहीं कर सकती तो जो कर सकती हैं

वो तो करे पर मां तभी सलोनी आ गई बोली ये क्या 2 दिन शादी को नहीं हुए और तुम मां से इस लहजे में बात कर रहे हो तभी सलोनी का बड़ा भाई अमर आ गया तो श्रवण कुमार था उसने सुबोध को बहस करते देखा तो उसे ही डाट दिया घर का माहौल खराब ना हो इसलिए रागिनी ने सुबोध को इशारे से चुप होने को कहा।रागिनी समझदारी से घर में 

एडजेस्ट होने की कोशिश कर रही थी पर शारदा और सलोनी रोज ही कोई नया महज छेड़ देती।रागिनी की मां का फोन आता वो कुछ भी पूछती पर रागिनी उन्हें कुछ नहीं बताती।वो मिलने आते तो भी दिखावा करती की सब ठीक है।रागिनी के घर से कुछ आता तो सलोनी चीड़ जाती

क्योंकि रागिनी के यहां से जो आता वो बहुत महंगा होता जबकि सबके लिए कुछ ना कुछ आता पर जाहिर सी बात है अपनी बेटी को तो वो अच्छा ही देंगे। क्योंकि सलोनी के माता पिता की हैसियत रागिनी के माता पिता जैसी नहीं थी।रागिनी कही बाहर जाती तो सलोनी पीछे से उसके कमरे का सामान देखती

उसका मेकअप use करती और फिर सास के कान भारती की ये सुबोध का खर्चा करवाती है। शारदा की देवरानी  मीना दूसरे पोर्शन में रहती थी बीच में सिर्फ एक दरवाजा था वो बंद तो घर अलग नहीं तो एक ।मीना को शारदा का स्वभाव बिल्कुल पसंद नहीं था उसके पति महेश घर का कारोबार संभालते थे।बेटा धवल mba कर रहा था बेटी दिया 12 में थी उससे रागिनी की बहुत पटती थी

ये भी शारदा और सलोनी को पसंद ना था।सलोनी आए दिन कोई ना कोई उल्टा काम करती  और रागिनी का नाम लगा देती।एक दिन तो हद हो गई धवल और उसकी बहन दिया छत पर थे रागिनी भी कपड़े सुखाने गई तो उनके साथ ही बैठ गई दिया मां ने बुलाया तो नीचे गई

धवल और रागिनी बाते कर रहे थे कि अचानक सलोनी आ गई और नीचे आ कर चिलाने लगी हमारे एक देवर को फॉस लिया अब दूसरे पर डोरे डाल रही है। उसके चिल्लाने की आवाज सुन सब आ गए बोले क्या हुआ सलोनी बोली रागिनी धवल के साथ अकेली ऊपर बैठी है चाची बोली अरे दिया भी थी अभी तो नीचे आई है

वो और रागिनी तो धवल को पढ़ाई के कुछ टिप्स दे रही थी अरे हमे सब पता है कि ये लड़की कैसी है?  भाभी आपको अपनी बहु के बारे मे ऐसा नहीं कहना चाहिए।रागिनी रोती हुई कमरे में गई।सुबोध आया पूछा तो उसने सारी बात बताई सुबोध बोला मां और भाभी का स्वभाव ही ऐसा है ध्यान मत दिया करो।

अगले दिन सलोनी कही बाहर गई हुई थी उस दिन का खाना रागिनी ने बनाया खाना इतना स्वादिष्ट था कि सब तारीफ करते रहे ससुर साहब श्याम जी ने तो बहु को नेग के साथ ये भी कह दिया बेटी अब मेरा खाना तुम ही बनाया करो।सलोनी को लगा मेरे हाथ से सत्ता छीन रही है

उसने अब नए तरीके ढूंढने शुरू कर दिए।रागिनी खाना बनाती  तो कभी नमक तेज तो कभी मिर्च मसाले सास शारदा चिल्लाते हुए बोली अरे उस दिन कैसे बनाया था तूने मां मुझे तो लगता है बाहर से मंगवाया होगा।नहीं मां मैने बनाया था सुबोध रागिनी के हक में कुछ कहना चाहता पर बोल ही नहीं पाता घर के बड़ों के आगे। सलोनी ने रागिनी से 

रसोई के काम छीन लिए और उसे घर के बाहर आंगन में झाड़ू लगाने का काम दे दिया उसी समय अचानक से रागिनी के माता पिता आ गए जो अमेरिका गए हुए थे।बेटी को झाड़ू लगाते देख मां बाप दोनो को बहुत गुस्सा आया बोले हमारी बेटी महलों में पली है और आप लोगों ने उसका क्या हाल कर दिया

शारदा और सलोनी उनसे भी बतमीजी करने लगी।रागिनी गुस्से में बोली जो आपने मेरे साथ किया वो मैने सहन किया पर अपने माता पिता का अपमान मै सहन नहीं करूंगी।सुबोध तुम्हारे कारण मैने सब सह लिया बस अब और नहीं मै जा रही हूं।सुबोध रोकता रहा पर रागिनी चली गई।सुबोध टूट गया था पर वो कुछ कह नहीं सकता था।

उसका छोटा भाई मनीष आया बोला भैया आपने बहुत गलत किया भाभी आपके प्यार के सहारे यहां आई थी आपने घर वालो को समझा पर भाभी को नहीं मम्मी और भाभी कितना गलत करती थी रागिनी भाभी के साथ आपने भी गलत किया।कल को मैं अपनी पत्नी के साथ यहां नहीं रहूंगा

ताकि उसे ये सब ना सहना पड़े।आज सुबोध को लग रहा था कि उसने चुप रह कर गलत किया।अगले दिन सुबह सुबह सुबोध रागिनी के घर पहुंचा उससे माफी मांगने और बोला मुझे माफ करदो मेरी वजह से ये सब तुमने सहा प्लीज़ मुझे माफ करदो मेरे साथ चलो

अब हम एक साथ अलग रहेंगे अब हम उस घर में नहीं रहेंगे।रागिनी के पापा राजेंद्र जी बोले नहीं सुबोध मेरी बेटी अब तुम्हारे साथ नहीं जाएगी तलाक़ करवा कर वो तुमसे अलग हो जाएगी ।प्लीज़ पापा ऐसा मत कहे सुबोध बोला मुझे एक मौका दीजिए मैं सब ठीक कर दूंगा प्लीज़ मैं रागिनी के बिना नहीं जी सकता।रागिनी बोली पापा हमे सुबोध को दूसरा मौका देना चाहिए।

पर सुबोध इस बार मेरा मान टूटा तो मै टूट जाऊंगी सुबोध बोला नहीं रागिनी मै दूसरा घर लेकर ही तुम्हे लेने आऊंगा सुबोध घर आया और उसने अपना फैसला सुनाया उसके पापा और शारदा ने बहुत रोका पर वो नहीं रुका सुबोध ने अपने बड़े भाई विजय को भी कहा कि भैया

यदि आपने भाभी पर लगाम नहीं डाली तो कल मेरी तरह मनीष भी यहां से चला जाएगा।सुबोध अपने कमरे में आया और अपना और रागिनी का सामान पैक करने लगा। उसके पापा वहां आए और बोले बेटा मैं समझता हूं मेरी मां भी तुम्हारी मां के कारण मेरे साथ नहीं रही मेरा भाई

जिससे मुझे इतना प्यार था वो भी दीवार के पीछे हो गया एक घर दो हिस्सों में बट गया ये लो बेटा ये फ्लैट की चाबी तुम्हारा ही है मैने तुम भाइयों के नाम एक ही सोसायटी में ले कर रखे थे। जाओ अपनी जिंदगी जियो और हा रोज ऑफिस आना ताकि तुम्हे देख सकू।रागिनी सुबोध अपने घर में आ गए बहुत खुश थे दोनो और सुबोध भी अपना दूसरा मौका गंवाना नहीं चाहता था।

स्वरचित कहानी 

आपकी सखी 

खुशी

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