दूसरा मौका – गीता वाधवानी

 अपनी बहू मुस्कान के बाजार जाने के बाद, सुमित्रा देवी ने अपने बेटे आशीष से कहा-” बेटा, मेरे पास आकर बैठ, मेरी बात सुन। “

 आशीष अपनी मां के पास आकर बैठ गया और बोला-” कहो माँ। ” 

 सुमित्रा देवी-” बेटा, तेरे ऑफिस से आते ही मुस्कान तुझे इतना कुछ सुनाती रहती है, कभी बच्चों की शिकायतें करती है कभी तुझसे नाराज होती है, तू उसे कुछ कहता क्यों नहीं, उससे कहा कर ना कि अभी-अभी तो आया हूं दो पल चैन से बैठने दो,फिर बात करना। बेटा तू इतने ट्रैफिक में स्कूटी चलाता हुआ थका हारा घर पहुंचता है, मुझे तेरी चिंता लगी रहती है और ऊपर से बहू ना जाने क्या-क्या बड़बड़ाती रहती है। नाम तो उसका मुस्कान है पर कभी भी चेहरे पर मुस्कान नहीं होती। ” 

 आशीष माँ की बात सुनकर मुस्कराने लगता है और कहता है” आपको तो पता है उसकी आदत का, अगर उसकी तरह मैं भी बोलने लग जाऊंगा तो रोज लड़ाई होगी, क्या फायदा लड़ने का, इसीलिए मैं चुप ही रह जाता हूं। ”         गीता वाधवानी

 सुमित्रा देवी-” लेकिन बेटा ऐसे तो वह सिर पर चढ़ जाएगी। याद है ना पिछले साल जब तू प्रिया के जन्मदिन वाले दिन ऑफिस से आने में लेट हो गया था तो उसने कितनी लड़ाई की थी तुझसे। जो व्यक्ति घर से बाहर निकलता है उसे ही बाहर के हालात पता होते हैं, वह कभी लेट भी हो जाता है पर इसमें इतना लड़ने वाली कौन सी बात थी। मुझे बिल्कुल अच्छा नहीं लगा। बाहर ट्रैफिक में चलने वाले व्यक्ति के ऊपर कभी भी कोई तनाव नहीं होना चाहिए। भले ही देर से घर पहुंचे, लेकिन सुरक्षित पहुंचे। ” 

 आशीष-” हां आप ठीक कह रहे हो। ” 

 तभी मुस्कान बाजार से लौट कर आ जाती है। थोड़े दिन बाद मुस्कान और आशीष की शादी की सालगिरह थी। मुस्कान ने आशीष से पहले ही कह दिया था कि” हम उस  दिन बाहर   खाना खाने चलेंगे, उस दिन कोई बहाना नहीं चलेगा। आप कभी भी मेरा फोन नहीं उठाते हो, उस दिन ऐसा मत करना और ट्रैफिक में फंंस गया था ऐसे बहाने मत बनाना।” 

 शादी की सालगिरह वाले दिन मुस्कान अपने लिए कुछ मेकअप का सामान खरीदने बाहर गई थी और आकर खाना खाकर कुछ देर सोने चली गई। 

 कुछ देर बाद वह रोती हुई बाहर अपनी सास के पास आई और बेहोश होकर गिर गई। उसकी सास ने उसे पानी के छींटे मारे और उसे होश में लेकर आई। सुमित्रा देवी ने उससे पूछा -” उठो बहू, होश में आओ, क्या हुआ तुम रो क्यों रही थी और फिर बेहोश हो गई। ” 

 मुस्कान-” मांँ जी, कुछ देर पहले एक फोन आया था, फोन पर एक पुलिस वाला बात कर रहा था। उसने कहा कि आशीष का एक्सीडेंट, इतना कहकर वह फिर से रोने लगी। माताजी ने कहा पूरी बात बताओ, आशीष का एक्सीडेंट हो गया है और आपको आकर लाश की पहचान करनी है। उन्होंने हेलमेट नहीं पहना हुआ था और फूलों की दुकान के सामने उनका एक्सीडेंट हुआ है। माँ जी, अब मैं क्या करूं ऐसा कहकर मुस्कान फिर से रोने लगी। माँ जी, वह जरूर मेरे लिए ही फूलों की दुकान पर फूल लेने गए होंगे, इसीलिए उन्होंने हेलमेट उतारा होगा और स्कूटी तेज चला कर घर आ रहे होंगे ताकि लेते ना हो जाए  ं। यह सब मेरी वजह से हुआ है। ना मैं गुस्सा करती, ना उन्हें जल्दी आने को कहती, तो यह सब कुछ नहीं होता। ” 

 फिर वह भाग कर भगवान की तस्वीर के आगे हाथ जोड़कर खड़ी हो गई और कहने लगी-” हे ईश्वर! मेरे पति को कुछ ना हो, वह बिल्कुल ठीक-ठाक हो, मुझे दूसरा मौका दे दीजिए भगवान, मैं कभी भी उनको तेज स्कूटर चला कर जल्दी आने के लिए नहीं कहूंगी, मैं उनके ऊपर बिल्कुल गुस्सा नहीं करूंगी और ना ही मैं उनके लेट हो जाने पर नाराजगी दिखाऊंगी, फिर चाहे जन्मदिन हो या शादी की सालगिरह। ” 

  सुमित्रा देवी-” बहु इधर आ, रो मत, लगता है तूने कोई बुरा सपना देखा है। ” 

 मुस्कान-” नहीं माँ जी, सचमुच में फोन आया था। ” 

 सुमित्रा देवी-” अच्छा, जा रसोई में जा, जाकर चाय बना। ”             गीता वाधवानी 

 मुस्कान को बहुत ही गुस्सा आ रहा था। वह रसोई में गई तो देखा कि आशीष चाय बना चुका है। वह आशीष से लिपटकर रोने लगी। तब तक उसकी सास भी वहां आ गई थी। 

 सुमित्रा देवी ने कहा-” जब तू सो रही थी तब आशीष आ गया था और वह चाय बनाने चला गया, लेकिन तुझे संभलने के लिए सचमुच ईश्वर ने दूसरा मौका दे दिया है। अब तू इसे तनाव मत दिया कर, बहू इस बात को समझ कि बाहर इतना ट्रेफिक होता  है, इंसान को देर सवेर हो जाती है, इसमें गुस्सा करने वाली कौन सी बात है। व्यक्ति को सुरक्षित घर पहुंचना जरूरी होता है। ” 

 मुस्कान -” हां आप सही कह रहे हो, अब से मैं ऐसी बातों पर कभी नाराज नहीं होऊंगी। ” 

 आशीष-” मतलब कि दूसरी बातों पर तो नाराज होगी ना। ” 

 तब मुस्कान ने मुस्कुराते हुए कहा-” क्या आप भी, नहीं बाबा, किसी भी बात में गुस्सा नहीं करूंगी। ” 

 सब मुस्कुरा रहे थे। एक खतरनाक सपने ने मुस्कान को सबक सिखा दिया था। 

 अप्रकाशित स्वरचित गीता वाधवानी दिल्ली

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