पिंकी और उसके दो छोटे भाई बहन अभी इतने बड़े नहीं हुए थे कि अपने आप को अपनी मां के बिना संभाल पाते। पर भगवान को कुछ और ही मंजूर था। भगवान ने इन मासूम बच्चों से उनकी माता को अपने पास बुला लिया।
पिता ने छोटे बच्चों को पालने-पोसने के लिए दूसरी शादी कर ली। दूसरी शादी जिससे की थी,उसके भी पहले से दो बच्चे थे। जब पिता दूसरी शादी के बाद घर आए तो बच्चों ने पूछा पिताजी यह कौन है? तब पिता ने बताया कि यह तुम लोगों की दूसरी मां है। बच्चे बहुत छोटे थे। उन्हें मां की बहुत जरूरत थी, इसलिए उन्होंने मां को स्वीकार कर लिया। पिंकी थोड़ी समझदार थी, उसे इतना तो समझ थी कि यह मां दूसरी मां है पर उसके छोटे भाई बहन यह नहीं समझते थे।
दूसरी मां ने अपने बच्चों के साथ-साथ पिंकी और उसके भाई बहनों को बहुत प्यार दिया।अच्छे से पालन-पोषण किया। छोटे बच्चे तो यह बिल्कुल ही नहीं जानते थे कि यह उनकी दूसरी मां है लेकिन पिंकी को यह बात समझ थी पर उसने भी कभी उसको दूसरी मां नहीं समझा था बल्कि अपनी मां की तरह ही उसे प्यार करती थी और आजा मानती थी। मां की किसी बात को वह तीनों भाई बहन कभी नहीं टालते थे।
फिर पिंकी इतनी बड़ी हो गई कि उसे अच्छे बुरे की समझ आने लगी।उसके जीवन में एक लड़का आया। जिसको वो चाहने लगी।वह लड़का पिंकी की जात बिरादरी का ही था पर उसकी एक टांग में पोलियो था और वह टेंपो चलाता था। जब यह बात मां को पता चली तो मां ने इस रिश्ते के लिए साफ इन्कार कर दिया। उसने अपनी बेटी की भावनाओं को समझने की चेष्टा तक नहीं की। पिंकी ने उनको समझाने की कोशिश की कि वह उसे लड़के के साथ खुश रहेगी। अगर कोई तकलीफ हुई भी तो उनसे कभी शिकायत नहीं करेगी पर मां नहीं मानी।लड़का इतना समझदार और आज्ञाकारी था कि उसने भी कभी पिंकी को गलत सलाह नहीं दी। पिंकी ने कहा कि वह अपनी मां के खिलाफ नहीं जा सकती। इसलिए वह उससे शादी नहीं कर सकती। दोनों का मन टूट गया।
मां को लगा पिंकी ने उसकी परवरिश पर उंगली उठाई है। उसे ऐसा कुछ करना ही नहीं चाहिए था। मां ने कहा तुमने एक ड्राइवर से विवाह करना है तो अब देख मैं तुम्हारे लिए एक ड्राइवर ही ढूढ़ूंगी।इससे भी बड़ी बल्कि सबसे बड़ी गाड़ी का ड्राइवर। उसने पिंकी के लिए ट्रक ड्राइवर ढूंढा और पिंकी की शादी कर दी।
यह जरूरी नहीं कि सारे ट्रक ड्राइवर बुरे हों पर पिंकी की किस्मत अच्छी नहीं थी। वह असल में ऐसा ड्राइवर निकला जिसको जिंदगी की गाड़ी चलाने की बिल्कुल भी समझ नहीं थी।वह पिंकी को ना तो कभी प्यार दे पाया और ना ही इज्जत। अगर दिया भी तो सिर्फ एक भयानक बीमारी। जिसका कोई इलाज़ नहीं था। इस भयानक बीमारी का नाम एड्स था।
इस दौरान पिंकी गर्भवती हो चुकी थी।वह अपना बच्चा खोना नहीं चाहती थी। सब ने सलाह दी कि बच्चे को जन्म मत दो। कहीं बच्चे को भी एड्स की बीमारी ना हो।लेकिन वह नहीं मानी। उसने एक स्वस्थ और सुंदर बेटी को जन्म दिया लेकिन खुद इस बीमारी से जूझते हुए इस दुनिया को अलविदा कह गई।
अंतिम क्षणों में उसकी हालत इतनी भयानक थी कि वह चारपाई से जुड़ चुकी थी। उसकी पीठ और पेट मिलकर एक हो गए थे। अब वही मां सबसे यह छुपाने की कोशिश कर रही थी कि उसको कौन सी बीमारी हुई है? क्योंकि असल में उसे पता चल चुका था कि उसकी परवरिश पर पिंकी ने नहीं बल्कि खुद उसने प्रश्न पैदा कर लिया था। आखिर उसने खुद को दूसरी मां साबित कर ही दिया था।
जब पिंकी की मां मरी थी तब पिंकी की आयु भी लगभग उतनी ही थी जितनी की पिंकी के मरने पर पिंकी की बेटी की थी। पिंकी की दूसरी मां की गोद में पिंकी की बेटी थी। दूसरी मां को यह समझ आ गई थी कि भगवान ने उसे यह सजा दी है कि दोबारा से इतने साल मेहनत करके फिर एक बेटी को बड़ा करें। लेकिन अब की बार उस बेटी के साथ मरी हुई बेटी की तरह दूसरापन ना दोहराए। यही उसका पश्चाताप था। अक्सर उसकी आंखों से पिंकी को याद करके आंसू छलक पड़ते थे।लेकिन पिंकी की बेटी को सामने देखकर उसे लगता था कि पिंकी उसके पास है। पिंकी की बेटी पिंकी को ना तो भूलने देती थी और ना ही वह अच्छे से याद कर पाती थी। उसको बहुत बड़ी सजा मिली थी। सच कहा है कि कर्मों का फल इसी धरती पर मिलता है।
डॉ हरदीप कौर (दीप)