डोर टूटी नहीं, लौट आई — एक कठपुतली की वापसी – ज्योति आहूजा : Moral Stories in Hindi

यह कहानी केवल कहानी की नायिका की नहीं है…

यह हर उस तीसरी, बल्कि हर दूसरी स्त्री की कहानी है —

जो ज़िंदगी भर एक अनदेखे रंगमंच पर,

कभी माँ, कभी बहू, कभी पत्नी की भूमिका निभाती है —

पर असल में… एक कठपुतली होती है।

जिसकी डोर कभी समाज के हाथों,

कभी रिश्तों की उम्मीदों के हाथों,

तो कभी अपने ही संस्कारों की गिरहों में बंधी होती है।

वह चलती है, मुस्कराती है, थकती है, झुकती है —

लेकिन उसके अपने हाथ… कभी उसके अपने नहीं होते।

और फिर एक दिन —

वह डोर टूट जाती है।

वह थकी हुई स्त्री,

जिसकी आँखों में पीड़ा है, दिल में चुप्पी, और चेहरे पर थकान —

इधर-उधर देखती है,

मानो पूछ रही हो:

“मैं कहाँ हूँ इस पूरी व्यवस्था में?”

एक उदास सी कठपुतली

जिसकी डोर वर्षों से किसी और के हाथों में थी ।

अब ज़मीन पर पड़ी है —

चुप, निशब्द, टूटी…

कहानी यहीं से शुरू होती है —

कि कैसे वह स्त्री… फिर से अपनी डोर अपने हाथों में लेने की कोशिश करती है।

अब वह फिर से कठपुतली नहीं बनना चाहती।

सीमा इस साल 42 की हो चली थी।

चेहरे पर अब भी वही गर्मजोशी थी, लेकिन आँखों के नीचे के हल्के गड्ढे अब गवाह थे कि उसने बहुत कुछ सहा है — चुपचाप।

घर के काम, बच्चों की ज़िम्मेदारी, बूढ़े सास-ससुर की दवाइयाँ —

सब कुछ संभालते-संभालते वो खुद को कब पीछे छोड़ आई, उसे पता ही नहीं चला।

लेकिन पिछले कुछ महीनों से उसका शरीर अब चुप नहीं रह पा रहा था।

हर महीने पीरियड्स पहले की तुलना में जल्दी आने लगे थे —

और इतनी ज़्यादा ब्लीडिंग कि दिन में कई बार कपड़े बदलने पड़ते।

शरीर थकने लगा।

चेहरा पीला, आँखें बोझिल और मन भारी।

उस दिन वो रसोई में चाय बनाते हुए अचानक वहीं नीचे बैठ गई।

हाथ काँपने लगे, सिर घूम गया।

सासु माँ रेखा देवी दौड़ी आईं, “क्या हुआ बहू?”

सीमा ने धीमे स्वर में कहा,

“थोड़ी कमजोरी लग रही है माँजी… शायद खून कम हो गया है…”

रेखा देवी ने सीमा की बात सुनते ही गहरी सांस ली और कहा —

“अरी बहू, तू अब 40 के पार हो चली है।

देख, मेरी पड़ोसन विमला की बहू के भी ऐसे ही अचानक महीना बंद हो गया था।

हो सकता है तेरे साथ भी वैसा ही कुछ हो रहा हो।”

सीमा बहुत समझदार थी।

उसे पता था कि ये पेरिमेनोपॉज़ हो सकता है —

लेकिन हर बार ऐसा ज़रूरी नहीं कि लक्षण सिर्फ यही हो।

कभी-कभी शरीर कुछ और भी कहना चाहता है,

जो धीरे-धीरे बाहर आता है — पर समझने वाला चाहिए।

अगले दिन उसकी सहेली प्रिया मिलने आई।

सीमा कुछ पल चुप रही, फिर टूटते शब्दों में कहा:

“प्रिया… मैं बहुत थक चुकी हूँ।

ये पीरियड्स… हर महीने लगता है जैसे मेरा शरीर मुझसे नाराज़ हो गया है।

पहले दो दिन होते थे, अब पाँच-छह दिन तक रुकते ही नहीं।

इतने भारी क्लॉट्स आते हैं कि डर लगने लगा है।”

प्रिया ने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा:

“सीमा, जब ब्लीडिंग इतनी हैवी हो रही है,

तो जाहिर है — हीमोग्लोबिन गिरा होगा।

तू चेक क्यों नहीं करवा रही?”

सीमा ने जैसे बहाना खोजा,

“टाइम ही कहाँ मिलता है… बच्चों की ट्यूशन, राशन-पानी…

कभी ननद की शादी, कभी पापा का चेकअप…”

प्रिया ने बात काटी —

“बस! बहाने बंद कर।

मुझे पता है तू पढ़ी-लिखी है, लेकिन जो सबसे ज़रूरी बात है, वो भूल गई है —

‘तुम्हारा शरीर तुम्हारी ज़िम्मेदारी है।’

ये मेनोपॉज़ भी हो सकता है, लेकिन कारण कुछ और भी हो सकता है।

CBC, थायरॉइड, हॉर्मोन — सब कुछ चेक करवा।”

सीमा ने उसी शाम खुद से वादा किया —

अब और नहीं टालूँगी।

अगले दिन वो अकेले एक महिला डॉक्टर के पास गई।

डॉक्टर ने ध्यान से उसकी सारी बातें सुनीं।

सीमा ने बिना हिचक कहा:

“डॉक्टर साहिबा, पहले मेरे पीरियड्स दो दिन में खत्म हो जाते थे।

अब पाँच, छह, कभी-कभी सात दिन…

इतनी ज़्यादा ब्लीडिंग होती है कि हर दो घंटे में कपड़े बदलने पड़ते हैं।

कमज़ोरी इतनी हो गई है कि रसोई में खड़े-खड़े चक्कर आ जाते हैं।”

डॉक्टर ने गहरी नज़र से देखा और कहा:

“सीमा जी, ये लक्षण सामान्य पेरिमेनोपॉज़ के नहीं लगते।

उसमें अनियमितता होती है —

कभी दो महीने नहीं आते, कभी एक महीने में दो बार।

लेकिन इतनी लगातार, भारी ब्लीडिंग, क्लॉट्स के साथ —

ये किसी और कारण की ओर इशारा कर रही है।”

“मैं भी एक महिला हूँ — और एक डॉक्टर भी।

मैं समझती हूँ कि कब शरीर चुपचाप हमें कुछ बताने की कोशिश करता है।”

डॉक्टर ने कहा:

“हमें आपकी एक TVS (Transvaginal Sonography) करानी होगी,

ताकि गर्भाशय की अंदरूनी स्थिति देखी जा सके।”

सीमा थोड़ी घबराई —

“इसमें दर्द तो नहीं होगा न?”

डॉक्टर मुस्कराईं,

“नहीं सीमा जी, थोड़ा असहज लगेगा, पर तकलीफ़देह नहीं है।

और साथ में एक पैप स्मीयर टेस्ट भी

अक्सर महिलाएं इस टेस्ट को नजरअंदाज़ कर देती हैं।

लेकिन इससे हमें ये पता चलता है कि कहीं गर्भाशय की ग्रीवा में कोशिकाओं में असामान्य परिवर्तन तो नहीं हो रहे,

जो आगे चलकर बड़ा रूप ले सकते हैं।

ये टेस्ट हर महिला को 40 वर्ष के ऊपर होते ही तीन साल में एक बार ज़रूर कराना चाहिए।”

सीमा ने दोनों टेस्ट करवाए।

TVS रिपोर्ट में एंडोमेट्रियम (गर्भाशय की अंदरूनी परत) की मोटाई सामान्य से ज़्यादा निकली।

हीमोग्लोबिन सिर्फ 8.1 था।

डॉक्टर ने इस पर गहराई से बात की।

“ये सब हार्मोनल बदलावों से भी हो सकता है,

पर इसे नियंत्रित करना ज़रूरी है।

हम आपकी जाँच रिपोर्ट्स के अनुसार तीन महीने का ट्रीटमेंट शुरू करेंगे।”

कुछ दिन बाद पैप स्मीयर की रिपोर्ट भी आ गई — सौभाग्य से सब कुछ सामान्य था।

सीमा ने राहत की साँस ली।

डॉक्टर ने तीन महीने की दवाइयाँ दीं —

आयरन, हार्मोन बैलेंसिंग, और न्यूट्रिशन सप्लीमेंट्स।

हार्मोन संतुलन के लिए जो दवाई दी गई थी वो गर्भाशय की भीतरी परत को अपनी नार्मल स्थिति में लाने के लिए थी जिससे वक्त के बाद सब सही हो गया।

सीमा ने पहली बार अपने लिए समय निकाला।

दवाइयाँ लीं, थोड़ी वॉक शुरू की, खाने पर ध्यान दिया।

तीन महीने बाद जब फिर से चेकअप हुआ —

ब्लीडिंग सामान्य थी, थकान घट चुकी थी, हीमोग्लोबिन बढ़ा हुआ।

डॉक्टर ने मुस्कराकर कहा:

“आपने खुद को समय दिया — यही सबसे बड़ा इलाज था।”

सीमा ने आंखों में आत्मविश्वास के साथ जवाब दिया:

“हाँ डॉक्टर साहिबा, इस बार मैंने सबकी नहीं — खुद की सुनी।”

अब सीमा सिर्फ एक बहू, पत्नी या माँ नहीं थी —

वह अब खुद की भी जिम्मेदार एक महिला थी।

अब वह कठपुतली नहीं थी —

जिसकी डोर केवल समाज, जिम्मेदारियों और चुप्पियों के हाथ में थी।

अब उसकी डोर — उसके खुद के हाथों में थी।

#कठपुतली !!

– ज्योति आहूजा

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