दो किनारे – बालेश्वर गुप्ता :  Moral Stories in Hindi

        सरिता जी की मानसिक उलझन सुलझ कर ही नही दे रही थी।अब उन्होंने सब कुछ ईश्वर पर छोड़ दिया था।जो हाथ मे न हो उसे मनुष्य भगवान भरोसे ही तो छोड़ता है।

        सल्लू-हां-सल्लू नाम से ही तो सब उसे पुकारते थे।उम्र होगी तब मुश्किल से 5-6बरस।पड़ोस में ही मजदूरों की बस्ती में रहता था।उसका बाप उसकी माँ को छोड़ किसी अन्य महिला के साथ रहने लगा था।अकेली माँ उसे मजदूरी कर पाल रही थी।सल्लू जब सरिता जी के पास, माँ को क्या हो गया है,वह तो उठ ही नही रही,कहने आया।तो सरिता जी बच्चे के आर्तनाद से अंदर तक हिल गयी थी और तुरंत ही उसका हाथ पकड़ कर उसके घर की ओर दौड़ ली थी।जा कर देखा तो उसकी माँ के तो

प्राण पखेरू कब के उड़ चुके थे।पड़ोस के अन्य मजदूर इकठ्ठा होने शुरू हो गये थे।अंतिम संस्कार कौन करेगा,कैसे होगा,खुसर पुसर चल रही थी।इतने में ही सल्लू का बाप भी अपनी पत्नी की मृत्यु की खबर पा कर आ गया। पत्नी के जीते जी जिसने  उसे नितांत अकेला छोड़ दिया था,अपने बच्चे तक की भी परवाह नही की थी,वह सबके सामने बिलख बिलख कर विलाप कर रहा था।सल्लू को अपने से चिपटाये पत्नी की मृत देह से बार बार क्षमा मांग रहा था।सरिता जी ने ही सल्लू की माँ के अंतिम संस्कार की व्यवस्था की।

         सरिता जी उस मजदूरो की बस्ती में स्वेक्षा से वहां के बच्चो को पढ़ाने जाती थी।उन बच्चों में सल्लू भी था।वह अभी पढ़ने लिखने की अवस्था मे तो नही था,पर जिज्ञासा के कारण वह बाकी बच्चो के साथ आता अवश्य था।सल्लू सबसे छोटा था,मासूम था,इस कारण उसे सब प्यार करते थे,सरिता जी भी उससे खूब स्नेह करती।सल्लू सरिता जी से काफी हिल मिल गया था।

       सरिता जी के खुद 11 वर्षीय एक बेटा पुलिन था।सल्लू कभी सरिता जी के साथ उनके घर आ जाता तो पुलिन को बुरा लगता।सल्लू के जाने के बाद पुलिन अपनी मां से भी सल्लू के घर आने पर एतराज करता।ऐसे गंवार अनपढ़ जो गंदी बस्ती में रहता हो,वह घर आये यह पुलिन को सदैव अखरता।सरिता जी अपने बेटे पुलिन को समझाती तो पुलिन बोलता तो कुछ नही पर अंदर ही अंदर कुढ़ता रहता।

        समय चक्र घूमता गया। बच्चे बड़े हो गये थे,सल्लू अब साहिल हो गया था,उसकी पढ़ाई लिखाई सब सरिता जी ने ही कराई थी।पढ़ाई पूरी कर उसे एक कंपनी में जॉब भी मिल गया था।पुलिन बिजनेस मैनेजमेंट की पढ़ाई के लिये विदेश गया हुआ था।दो वर्ष पुलिन को गये हुए हो गये थे।

     इन दो वर्षो में साहिल ही सरिता जी का पुत्रवत सहारा रहा।उनके हर सुख दुःख का साथी।एक बार बीमार पड़ी और साहिल ने ही उनकी 24 घंटे तीमारदारी की तो भावुक हो सरिता जी बोली रे सल्लू तू मेरा इतना करता है, क्या तेरा मेरा कोई पिछले जन्म का रिश्ता है तो साहिल बोला पिछले जन्म का तो पता नही पर इस जन्म की मेरी माँ हो आप।

साहिल का उत्तर सुनकर सरिता जी ने साहिल को अपने से चिपटा लिया हां मेरे सल्लू मैं तेरी मां ही तो हूँ।

       पुलिन से वीडियो कॉन्फ्रेंस से बात होती तो सरिता जी के मुँह से अनायास ही बार बार साहिल का नाम निकल जाता कि आज सल्लू मुझे हॉस्पिटल ले गया था,आज सल्लू सारी रात मेरे पास ही बैठ कर मेरा सर दबाता रहा।इन बातों का पुलिन कोई उत्तर नही देता।बाद में सरिता जी सहम जाती कि पुलिन तो सल्लू को पसंद नही करता,तो उसके मुंह से क्यों सल्लू का नाम पुलिन के सामने निकल जाता है?जबसे पुलिन विदेश गया तब से साहिल सरिता जी के आग्रह पर उनके घर की छत पर बने एक कमरे में रहने लगा था,इससे सरिता जी को अपनी बढ़ती उम्र में काफी आत्मविश्वास पैदा हो गया था,अकेलापन महसूस नही होता था।

         आज पुलिन विदेश से वापस आ रहा था।सरिता जी की मानसिक उलझन यही थी कि साहिल को अपने घर मे देख पता नही पुलिन कैसे प्रतिक्रिया देगा,कही साहिल का अपमान न कर दे।बचपन से ही पुलिन सल्लू को पसंद नही करता था,बस उसका यही कहना होता कि इस उज्जड गवार का हमारे यहाँ क्या काम?सरिता जी कभी पुलिन को समझा ही नही पायी कि ममता केवल पेट जाये से ही नही होती,ममता तो सल्लू जैसे मासूम से भी हो जाती है।सरिता जी सोच ही रही थी कि पुलिन की आवाज ने उन्हें चौंका दिया,माँ देखो मैं आ गया,कहकर पुलिन ने मां को अपने हाथों में उठा लिया।

       साहिल ही एयरपोर्ट से पुलिन को लेकर आया था, वह दूर से मां बेटे का यह मिलन देख रहा था।धीरे से साहिल अपने कमरे में आकर अपने कपड़े आदि समेट कर सूटकेस में रख कर नीचे आकर सरिता जी से बोला,माँ अब पुलिन भैय्या आ गये हैं,मैं अब वापस जा रहा हूँ।किंकर्तव्यविमूढ़ सी सरिता जी का जी हलक में आ गया,उन्हें समझ ही नही आ रहा था कि वह साहिल से क्या कहे,बस उनके हाथ साहिल की ओर उठे पर मुँह से कोई आवाज नही निकली।

      तभी पुलिन की आवाज सरिता के कानों में पड़ी वह साहिल से कह रहा था,अरे मेरी माँ को मां भी कहते हो,मुझे भैय्या भी कहते हो और फिर भी पराये की तरह मां को छोड़कर जाने को भी कहते हो।इतना कह पुलिन ने साहिल को खींच कर अपने गले से लगा लिया।अरे सल्लू मेरे भाई क्या तुझे नही मालूम सरिता के दो तट होते हैं।हम अपनी माँ के किनारे हैं रे।तू कही नही जायेगा यही रहेगा अपनी माँ के पास,अपने भाई के पास।

       सरिता जी वहीं खड़ी अपने दो दो किनारों को निहार रही थी एक टक।

        (साहिल और पुलिन तट के पर्यायवाची होते हैं)

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित

#जाहिल 

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